Positive India:Rajkamal Goswami:
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
ब्रहमसूत्र(Brahmasutra) का यह पहला सूत्र है ! अब ब्रह्म की जिज्ञासा शुरू होती है ! जिज्ञासा ज्ञान की पहली सीढ़ी है ! जिज्ञासा ही ज्ञान तक ले जाती है । प्रबल जिज्ञासा हो तो जिज्ञासा ही पर्याप्त है । न्यूटन को किसी गुरु ने गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान नहीं दिया ! सेब के गिरने से उत्पन्न जिज्ञासा ने उनके मनोमस्तिष्क को मथ डाला । निरंतर चिंतन मनन और गुणा भाग से उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज डाला । आइंस्टाइन का सापेक्षिकता का सिद्धांत भी ब्रह्माण्ड के रहस्यों के प्रति उनकी सहज जिज्ञासा का ही परिणाम था !
जब यह जिज्ञासा सृष्टि के रहस्यों के प्रति होती है तो विज्ञान की पर्तें उघड़ने लगती हैं और जब यही जिज्ञासा अंतर्यात्रा पर निकलती है तो चेतना के रहस्य उद्घाटित होते हैं ।
बादरायण का ब्रह्मसूत्र सनातन धर्म की आधारशिला है । और यह आधारशिला किसी अंधविश्वास और मान्यता पर नहीं रखी है । यह ब्रह्म को खोज कर जानने की बात करती है । ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और उपनिषद तीनों मिलकर प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं ।
ब्रह्मसूत्र के छोटे छोटे सूत्र विराट रहस्यों को समेटे हुए हैं । इनका भाष्य लिख कर लोग शंकराचार्य हो गये रामानुजाचार्य हो गये । वेदांत में मुक़ाम हासिल करने के लिए ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखना अनिवार्य है !
जिज्ञासा शांत होने पर या तो आप मोक्ष को उपलब्ध हो जाते हैं या फिर मृतकवत् हो जाते है यानी धरती पर बोझ । या फिर अपनी अक़्ल कहीं किसी के पास गिरवी रख कर किसी के गुलाम हो जाते है ।
जन्माद्यस्य यतः यह दूसरा सूत्र है । यानी ब्रह्म वह है जिससे संसार का जन्म होता है , जिसमें इसकी स्थिति होती और जिसमें इसका लय होता है ।
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय
नमस्ते चिते सर्वलोकाश्रयाय
नमोऽद्वैत तत्वाय मुक्तिप्रदाय
नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)