बूढ़ा होते बूढ़ा तालाब को कब तक निचोड़ेगी राजनीति और अफसरशाही
सिमटता बूढ़ा तालाब, प्रफुल्लित होते तथाकथित समाजसेवी।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आज विश्व पर्यावरण दिवस है,परंतु आज मै बहुत दुखी हू। आज पूरे सोशल मीडिया में सिर्फ़ बूढ़ा तालाब की चिंता, हर के चेहरे पर व पोस्ट में देख रहा हूँ । पर यह उन कोशिशों को नजरअंदाज कर रहे है जो अभी बूढ़ा तालाब के संदर्भ में लिया गया है ।
बूढ़ा तालाब बूढ़ा हो गया है, इसलिए कुछ समाज सेवियों ने नए साज सज्जा के साथ इसे युवा बनाने का प्रण लिया है । इनके जज्बे को सलाम। कब तक हम उन्नीसवीं सदी मे जीते रहेंगे । बूढ़ा तालाब किसी समय नहाने के काम आता था। आज लोग स्वीमिंग पूल मे नहाते है। बूढ़ा तालाब भी कई बार नाराज हो जाता होगा ।
आज रजबंधा तालाब मुंह बांये खड़े होकर चिढ़ा रहा होगा । वो रजबंधा मैदान, जो कभी तालाब था, जहां शहर के बीच मे होने के कारण वहाँ मीना बाजार लगता था । बचपन मे सर्कस भी देखने जाते थे । दीपावली के फटाको के लिए उपयुक्त जगह था रजबंधा तालाब । वो यादें भूली बिसरी हो गई है । समय ने करवट ली, आज यहा गगनचुंबी इमारतें है ।
पत्रकारिता के माध्यम से व्यापार करने वाले उद्योगपतियों के चलते अब रजबंधा तालाब प्रेस काम्पलैक्स में तब्दील हो गया है । जिस तालाब को अपने फायदे के लिए मैदान में तब्दील किया गया; वहां से होली के समय पानी बचाने की सलाह दी जाती हैं । यह कीमती सलाह रजबंधा मैदान बनने के बाद ही तो मिल पाई है ।
आज शास्त्री बाजर की रौनक और दिन भर की चहल पहल, निश्चित ही बूढ़ा तालाब के मन को उद्वेलित कर देती होगी । उसके साथ यह सौतेला व्यवहार, उसे उसके बूढ़ा होने के कारण विचलित करता होगा । आज शहर के बीच मे इतना बड़ा भूभाग ऐसे ही पड़ा है, जो कथित समाजसेवियो की चिंता का विषय है ।
दो तालाबो का उद्धार करने के बाद, नये रंग रोगन के साथ, इनके व्यवसायिक बदलाव के फायदे लोगों ने देख लिए हैं । तो फिर कुछ समाजसेवियो का आना स्वाभाविक है । ऐसे नेक काम मे टांग अड़ाना, यह भारतीयों की आदत ही है । कोई अच्छा काम देखा ही नही जाता । भाई राजनीति समाज सेवा का अंग है । जिस तरह इतने साल सेवा की है, तो अगर इस भूभाग की सेवा करने मौका मिल रहा है, तो कैसे हाथ से जाने दे ? मै आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आने वाले समय में बूढ़ा तालाब इतनी गगनचुंबी इमारतों से आच्छादित हो जायेगा कि आप अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाएंगे। सप्रे स्कूल, दानी स्कूल कन्या महाविद्यालय और तो और कालीबाड़ी स्कूल तक का प्रांगण तथाकथित समाजसेवियों की वक्र दृष्टि में आ चुका है। मैंने धन नहीं लिखा। धन तो सहयोग के लिए मिल ही जायेगा । किसी भी शहर मे हर समय इतने समाजसेवियो का बार बार मिलना फख्र कीं बात है । ऐसे में किसी काम मे मीन मेख निकालने की आदत उन्ही लोगों मे होती है, जो खुद तो नही कमाते, दूसरे को भी कमाने नही देते । लोगों का अंदाज यह होना चाहिए जियो और जीने दो ।
बूढ़ा तालाब के लिए आप लोग संघर्षरत रहे, नये आयाम लाने का संकल्प हमेशा जीवित रखे । आपका कारवां अपने आप बनता चला जाएगा । इसे आप पूरा करे। आपके इंतजार में कंकाली तालाब और राजातालाब भी पलक पांवडे बिछाये खड़े है । बस इतना ही।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर (ये लेखक के अपने विचार हैं)