चला बालीवुड नोएडावुड बनने।
ये वही बॉलीवुड है जो अपने देश को गाली देता है।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
बालीवुड धीरे-धीरे नोएडावुड की तरफ रूख कर रहा है । बालीवुड(Bollywood)दो भागों में विभाजित हो गया है । पहले कलाकारो मे दो भाग हो गये, फिर राजनीतिक रूप से दो भागों में विभाजित हो गया । सुशांत सिंह केस ने पूरे बालीवुड को न सिर्फ हिला कर रख दिया है बल्कि दो भागों में बांट दिया है। नये कलाकारों को लगने लगा है कि उनका शोषण हो रहा है। कुछ परिवारो का आधिपत्य और तथाकथित स्टार कलाकारों की दादागिरी की चर्चाये आम है । यह तो बालीवुड के गासिप मे एक तरह से शामिल है। इनके पिछले एवार्ड फंक्शन इन तथ्यों की पुष्टि करते है कि इन बातों मे सच्चाई है ।
धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़े और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम से एक धर्म की बार बार विशेषकर हिंदू धर्म को निशाना बनाना, हिंदुओं को एक अरसे से चुभ रहा था । अपनी एक लाॅबी बनाकर जहां पाकिस्तान के गायकों और कलाकारों को जिस तरह कालीन बिछाकर स्वागत किया जाता था, वहीं देश के कलाकारों को काम विहीन करना और उनकी तौहीन कर उनकी खिल्ली उड़ाना, एक तरह से इनके विशेषाधिकार मे शामिल हो गया था।
क्या कारण है कि बालीवुड का अंडरवर्ल्ड कनेक्शन है ? बॉलीवुड कलाकार इस देश का खाते और कमाते हैं, उसके बाद देश विरोधी ताकतों के साथ गलबहियाँ करते है, यही बात इस देश की जनता को नागवार गुजरी। तथाकथित धर्म निरपेक्षता के नाम से और सांप्रदायिक सद्भाव के नाम से इन्होने जो कार्ड खेला उसकी पोल ही खुल गई है ।
ये वही बॉलीवुड है जो अपने देश को गाली देता है, खुले आम हमारे काश्मीर जैसे मुद्दे पर पाक के साथ खड़ा दिखाई देता है। और तो और पकिस्तान की सत्ता के साथ अपने प्यार का इज़हार करता है। ऐसा करना अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष रूप से देश की जन भावना का अनादर करना ही है । यही कारण है कि सोशल मीडिया मे अब खुले तौर पर इन लोगों के बायकाट का एक तरह से मुहिम सी चल पड़ी है। अब इन लोगों के अंदर एक भय सा समाया हुआ है। सल्तनत स्टार की जो चमक दमक थी वो औंधे मुंह गिर गई है । इनके टीवी शो की रेटिंग सबसे निचले पायदान पर आ गई है ।
दिन में ही इन स्टार परिवार को तारे नजर आने लगे है। यही कारण है कि एक बंदा जो देवताओं का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आया था, वो नवरात्रि की शुभकामनाएं दे रहा है। एक बंदा तो अपने बंगले की बिकने की नौबत आने की बात कर रहा है । कुछ नहीं, लोगों मे जागरूकता आ गई है। पहले राजनीतिक रूप से सफाई की। अब यह निश्चय दिख रहा है कि सामाजिक व सांस्कृतिक गंदगी भी दूर करने मे लोग लगे हुए हैं। अपना एकाधिकार खत्म होते देख बौखलाहट तो लाजिमी ही है ।
किसी समय मुश्किल से चालीस जनरल प्रैक्टिसनर के रायपुर मे आज चार सौ छोटे बडे नर्सिंग होम है । पहलें भी चल रहे थे और आज भी चल रहे हैं। फिर नोएडावुड खुलने से कौन सी आफत आ जाएगी। जहां बालीवुड मे इनके अनुसार दिव्या भारती, जिया खान ,दिशा सालियान, सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली, कम से कम इनके जैसे कलाकारों के पास नोएडावुड जाने का विकल्प तो रहेगा। इस तरह की कम उम्र में असामयिक मौत तो नहीं होगी।
बॉलीवुड में जो लोग हीरो हीरोइन बन कर घूम रहे थे, ये तो सब नशे के सौदागर निकले! पहली बार कोई बंदा मुंबई आया, जिसने कलाकारों को भगवा शाल तुलसी की माला, तुलसी दास जी रामचरितमानस और राम का सिक्का देकर बड़े कलाकारों का स्वागत किया । समझने वालो को इशारा ही काफी है। पांच सौ एकड़ मे स्थापित बालीवुड के मुकाबले हजार एकड़ से ज्यादा नोएडावुड मे जिस गंभीरता से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी काम कर रहे है, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह बालीवुड का जल्दी ही विकल्प बन कर खड़ा हो जाएगा।
जिन कलाकारों के साथ शोषण हो रहा है, जिनका वहां के तथाकथित धर्मनिरपेक्षता मे दम घूंट रहा है, जिनके प्रतिभा का दमन नेपोटिजम और उस तथाकथित लाॅबी के कारण आज तक हो रहा है, जिसकी वजह से प्रतिभावान कलाकारों की असामयिक मौत हो रही है; ऐसे लोगों के लिए नोएडावुड संजीवनी साबित होगी।
अगर नोएडावुड बालीवुड की बी टीम बन रही है तो फिर इतनी असुरक्षा क्यो महसूस हो रहा है। जिनको इस देश मे रहने मे डर लग रहा था ऐसे लोगों के निकल जाने से इनका भी डर खत्म हो जाएगा। साहब आने वाले दिनों में यह बालीवुड वाले शरण मांगते दिखे तो कोई आश्चर्य नहीं, पर यह हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। अब महानायक, बादशाह, चॉकलेटी हीरो और परफेक्ट की परिभाषा लोग बदलते दिखेंगे। यह नौबत इन्होंने ही बुलवाई है।
उत्तर भारत के कलाकारों के साथ अन्याय व शोषण व संस्कृति का दीमक की भांति क्षरण ने ही नोएडावुड बनाने के लिए मजबूर किया। आने वाले दिनों में अगर बालीवुड गये जमाने की बात हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। यह समय राजनीतिक, सांस्कृतिक परिवर्तनों का समय है, तो बालीवुड इससे कैसे बच सकता है। नोएडावुड को अनेक शुभकामनाएँ सहित । बस इतना ही।
डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर