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पुष्पा जैसी सबसे अधिक कमाई करने वाली अधिकांश फिल्में हिंसा से भरी हुई है

- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से -

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों की लिस्ट देखिये, उनमें से अधिकांश हिंसा से भरी हुई फिल्में हैं। आर आर आर, एनिमल, गदर2, पठान, पुष्पा… फिल्में ही नहीं, वेव सीरीज भी वही चल रही है जिसमें क्रूरता है, गाली गलौज है, असभ्यता है… बीच बीच में कभी ठंढी हवा का झोंका बन कर पंचायत जैसी सीरीज आ जाती है, वरना पर्दे पर चलती हिंसा ही है।

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आप ऐसा भी नहीं कह सकते कि यह बिल्कुल नया ट्रेंड है। पहले भी ऐसी फिल्में खूब देखी जाती रही हैं। सत्तर के दशक से ही ऐसी फिल्मों का बोलबाला है। धर्मेंद्र, अमिताभ, मिथुन, सन्नी, संजय दत्त आदि की मार धाड़ वाली फिल्में खूब देखी गयी हैं। शोले, मिस्टर इंडिया, गदर जैसी फिल्मों की सफलता तो ऐतिहासिक है।

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वस्तुतः आदमी सभ्य होने से पूर्व अपने मूल चरित्र में क्रूर ही है। बिल्कुल पशु की तरह… आप पशुओं को देखिये, उनमें यह हिंसा सामान्य है। अपने से कमजोर को मार देना, काट लेना ही उनकी दिनचर्या होती है। मनुष्य को धर्म का अनुशासन इस तरह के अत्याचार से दूर करता है, अन्यथा यह दुर्गुण उसमें भी प्राकृतिक रूप से भरा हुआ है।

भरोसा नहीं हो रहा? अच्छा तो पड़ोसी देश को देख लीजिये। जिस तरह वे झुंड बना कर हिंदुओं को लूट और मार रहे हैं, वह क्या है? कुछ दिनों पूर्व फिलिस्तीन के सामान्य लोग जिस तरह पार्क में अपने बच्चों के साथ खेल रहे यहुदियों को क्रूरता से मारने लगे, स्त्रियों को बंधक बना कर उनपर अत्याचार किये, वह यही था। जहां धर्म नहीं है, वहाँ का आदमी पशु की तरह हिंसक ही होगा…

आप कह सकते हैं कि इन देशों में दो समुदायों या दो राष्ट्रों के बीच बैर है, सो यह हिंसक झड़पें हो रही है। तब सीरिया की ओर देख लीजिये। मध्य एशिया के अधिकांश देशों में यही पशुवत क्रूरता हावी है। वहाँ तो राष्ट्र या समुदाय का भेद नहीं है। पर वहाँ भी आपसी हिंसा में करोड़ों लोग जान गंवा चुके है।
आपको स्पष्ट मानना ही होगा कि धर्म का अनुशासन न हो तो आदमी भी अन्य जीवों की भांति क्रूर ही होगा… धर्म ही उसे कोमल बनाता है। उसमें क्षमा, दया, करुणा, धैर्य आदि के संस्कार भरता है। धर्म ही उसे मनुष्य बनाता है।

आप अपने देश को देखिये, यह धर्म का अनुशासन ही है कि ईरान से भाग कर आये सौ डेढ़ सौ पारसी न केवल हजार वर्ष से सुखमय जीवन जी रहे हैं, बल्कि टाटा के रूप में सबसे बड़े व्यवसायी और भाभा के रूप में सबसे बड़े वैज्ञानिक बन जाते हैं। सोच कर देखिये, यदि वे भाग कर दूसरे अरब देश में गए होते तो बचते?

अब प्रश्न यह बनता है कि भारत के विशुद्ध धार्मिक परिवार के बच्चों को भी क्रूरता क्यों पसन्द आती है? तो भइया! यह अवगुण उसे प्रकृति से मिला हुआ है। धर्म और संस्कार इस अवगुण को दबाते हैं, ढंकते हैं। पर यह अवगुण समाप्त नहीं होता, समय समय पर उछाल मारता रहता है।

सामान्य लोग अत्याचार करते नहीं तो अत्याचार देख कर ही आनन्दित होते हैं। यह चलता रहेगा। हाँ, धर्म इस विकृति को एक हद तक रोक कर रखता है। शायद इसीलिए धर्म मानवता की पहली शर्त है।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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