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लखीमपुर के किसानों का यह सच बहुत कड़वा है

-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
सत्ता के लिए लार टपकाते घूम रहे राजनीतिक भेड़ियों को रोकना टोकना इसलिए जरूरी है…
लखीमपुर के किसानों का यह सच बहुत कड़वा है लेकिन यही सच उस खतरनाक सच को बता रहा है, जिसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा…
उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जनपद की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 40.6 लाख थी। अब लगभग 45 लाख है। इसमें लगभग 2 से ढाई लाख जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है। शेष 42-43 लाख लोगों का संबंध ग्रामीण क्षेत्रों से ही है। 2011 की जनगणना के अनुसार लखीमपुर में सिक्खों की जनसंख्या 1.06 लाख थी। आज यह अधिकतम लगभग डेढ़ लाख होगी। आप बड़ी सरलता से स्वंय ही यह अनुमान लगा लीजिए कि उत्तरप्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान करनेवाले लखीमपुर में कितने किसान सिक्ख हैं। और कितने किसान गैर सिक्ख हैं.?
अब जरा एक तथ्य पर ध्यान दीजिए….
लखीमपुर में हुए बर्बर हत्याकांड के जो दर्जनों वीडियो अबतक सामने आए हैं। उन सभी वीडियो में हाथ में झंडे डंडे लाठी तलवार पत्थर लेकर हमला कर रहे तथाकथित किसानों में लगभग 80-90 प्रतिशत सिक्ख ही नजर आ रहे हैं.? उस भीड़ में लखीमपुर की शेष 43 लाख जनसंख्या का हिस्सा, गैर सिक्ख किसान क्यों नहीं दिखाई दे रहे.? यह सवाल लखीमपुर में हुए हत्याकांड की जड़ का खतरनाक शर्मनाक सच उजागर कर रहा है। 2 दिन पहले की पोस्ट में विस्तार से लिख चुका हूं, उत्तरप्रदेश की पुलिस और केन्द्रीय खुफिया एजेंसियों के दस्तावेजों में भी दशकों से यह सच्चाई दर्ज है कि लखीमपुर और पीलीभीत के सिक्ख बहुलता वाले ग्रामीण इलाकों में कुख्यात खालिस्तानी आतंकियों के अड्डे रहे हैं। यह सिलसिला लगभग डेढ़ दशक तक बहुत तेजी से चला था। आज भी खालिस्तानी आतंकियों और पंजाब से फरार अपराधियों की इन इलाकों में गतिविधियों के समाचार यदाकदा सामने आते रहते हैं। डंडों तलवारों से पीट रहे हत्यारों के बदन पर दिख रही खालिस्तान की टीशर्ट और उनके अगल बगल लहरा रहे खालिस्तानी झंडे बता रहे हैं कि लखीमपुर में हुआ हत्याकांड किसानों के आक्रोश का नहीं बल्कि खालिस्तानी गुंडों हत्यारों द्वारा किए गए देशविरोधी तांडव का परिणाम है।
सत्ता के लिए लार टपकाते घूम रहे राजनीतिक भेड़िए लखीमपुर हत्याकांड के दोषी अपराधी खालिस्तानी हत्यारों को किसान बताकर उन्हें बचाने का दबाव सरकार पर बना रहे हैं। इसलिए उस दबाव के खिलाफ आवाज़ उठाना, लोगों तक सच पहुंचाना हमारा आपका भी दायित्व है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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