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बिहार चुनाव विश्लेषण: न तुम हारे न मैं हारा

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Positive India:Dr Chandrakant Wagh:
बिहार चुनाव एक मायने से न कोई हारा है न जीता है । चलो चुनाव में सभी दलों की बात एक एक कर की जाए । पहली बात भाजपा की की जाए। मोदी जी के अथक परिश्रम से ही आज बिहार में एनडीए सत्ता मे वापसी की है । इस तरह से भाजपा बिहार मे जीती है । पर दूसरें नजरिये से देखा जाए तो भाजपा हारी भी है । गठबंधन का बड़ा दल होने के बाद भी इसका मुख्यमंत्री पहले की गई घोषणा के कारण आज चाह के भी नहीं बना सकते । यहां तो इनके ही प्रवक्ता अब बार बार कह रहे है कि ” प्राण जाए पर बचन न जाए ” । फिर भाजपा को राजद से एक सीट कम मिलने का भी मलाल रहेगा। सीटों के हिसाब से राष्ट्रीय जनता दल सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी है।

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अब जनता दल यूनाइटेड ने चुनाव जीता और मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार ही बनने वाले है, यह भी जदयू की बडी जीत है । पर वास्तविक मे जदयू ने कम सीट पाने से यह उसकी नैतिक हार ही है। वहीं बिहार की बड़ी पार्टी के कारण जिस ठसके से नीतीश जी रहते थे, अब वो बात नहीं रह गई है। अब यह पद उन्हे भाजपा के तरफ से रहमोकरम मे मिले तोहफा के समान होगा। अब वो रुतबा नहीं रहेगा जो पहले था ।

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एनडीए मे एक दल था और वो था लोजपा यानि लोक जनशक्ति पार्टी। कुछ समय पहले ही रामविलास पासवान जी नहीं रहे । इसके कारण दल की कमान चिराग पासवान के पास आ गई। चुनाव मे तो वे नरेन्द्र मोदी जी के हनुमान बताते रहे । पर जदयू से उनका राजनीतिक छत्तीस का आंकड़ा था । एक तरह से इस चुनाव में उनका सुपड़ा ही साफ हो गया; जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अच्छा नहीं था
यह उनकी व्यक्तिगत हार है । पर राजनीतिक दृष्टि से उनका जो ध्येय था कि नीतीश कुमार को राजनीतिक नुकसान पहुंचाना, उसमें वो पूरी तरह से सफल भी हुए। यह उनकी राजनीतिक जीत थी ।

चलो अब यूपीए के घटक दलों की तरफ रूख करे ।

राष्ट्रीय जनता दल की भी जीत ही है । तेजस्वी यादव की तारीफ करनी होगी कि इतने बड़े नेताओं के होने के बाद भी उसने अपने राजनीतिक वजूद को सबसे बड़ी पार्टी बनकर दिखा दिया। यह उसकी व्यक्तिगत जीत कहा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पर दल बड़ा होने के बाद भी सरकार न बना पाना यह भी एक महत्वाकांक्षा की हार है । इस बात का हर समय उन्हे अफसोस रहेगा कि वो कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने के सुनहरे अवसर से व॔चित हो गए ।

अब कांग्रेस पर आया जाये। जितनी उसकी राजनीतिक साख नहीं थी, पर गठबंधन मे ज्यादा सीटें लेकर उसने अपने राजनीतिक वजूद का अहसास कराकर अपनी एक राजनीतिक जीत तो हासिल कर ही ली। उन्नीस सीट जीतकर भी जितना मिल जाये यह उनके लिए जीत से कम नहीं था । पर सरकार न बनने से और कम सीट आने से यह उनकी राजनीतिक हार थी।

अब ओवैसी फैक्टर पर भी आया जाये। पांच सीट पाकर अपने बिहार में राजनीतिक अस्तित्व का परिचय देते हुए एक जीत हासिल कर ली है। अब धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारो के लिए भी वोट काटने के कारण दूसरे धर्म निरपेक्षत दलों के लिए भी खतरा बन गए है । परंतु जितने मुसलमान मतदाता है उस हिसाब से सीट का न मिलने का दुख और हार दोनों है ।

कुल मिलाकर बिहार चुनाव न तुम हारे न मैं हारा बनकर रह गया है । बस इतना ही

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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