Positive India:Satish Chandra Mishra:
पेट्रोल की कीमतों पर हुड़दंग देश के साथ बोला जा रहा सफेद झूठ है। सियासी मीडियाई धोखाधड़ी है, जालसाज़ी है।
आजकल बड़ा शोर है इस बात का कि पेट्रोल बहुत महंगा हो गया है। कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य जिस स्तर पर हैं उस को देखते हुए देश में डीजल पेट्रोल का मूल्य बहुत अधिक है।
उपरोक्त सन्दर्भ में भांति भांति के अर्थशास्त्रियों, आर्थिक विशेषज्ञों विश्लेषकों और सियासी मीडियाई विदूषकों के हाहाकारी विश्लेषणों की आंधी भी इस समय पूरे देश में चल रही है। ऐसा लग रहा है मानो डीजल पेट्रोल को हथियार बना कर सरकार देश के आम आदमी को लूटे ले रही है। लेकिन क्या यह निष्कर्ष सत्य है.?
उपरोक्त निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन दो तथ्यों को जानना समझना होगा।
पहला तथ्य:
देश के आम आदमी पर डीजल पेट्रोल या किसी भी अन्य उपभोक्ता वस्तु के मूल्य में वृद्धि का कितना अतिरिक्त भार/दबाव पड़ा.? जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाए तब तक इस बात का कोई महत्व नहीं होता कि डीजल पेट्रोल या किसी भी अन्य उपभोक्ता वस्तु का मूल्य 75 के बजाए 100 रुपये लिया जा रहा है या 175 रूपये लिया जा रहा है। इसलिये डीजल पेट्रोल के बढ़े हुए मूल्य पर हुड़दंग हाहाकार करने से पूर्व यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि डीजल पेट्रोल के बढ़े हुए मूल्य उपरोक्त कसौटी पर कितना खरे कितने खोटे हैं।
ध्यान रहे कि यह सर्वज्ञात सर्वमान्य तथ्य है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में तीन बातें, रोटी कपड़ा और मकान ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं।
आगे बढ़ने से पहले यह उल्लेख आवश्यक है कि 11 वर्ष पूर्व 2010 में देश के आम आदमी की औसत आय 43749 रुपये थी। अर्थात 3645 रूपये प्रतिमाह। जबकि फरवरी 2021 में यह औसत आय 1.43 लाख रूपये, अर्थात 11916 रूपये प्रतिमाह है। 2010 की तुलना में लगभग 227% अधिक। मार्च 2014 में भी आम आदमी की औसत आय का यह आंकड़ा 5714 रुपये प्रतिमाह ही था। अर्थात मार्च 2014 की तुलना में औसत आय आज 110% अधिक है। इसे एक और तरह से, सबसे निचले स्तर पर भी समझ लीजिए। मनरेगा मजदूरी का रेट मार्च 2010 में 100 रूपये, मार्च 2014 में 142 रूपये था। आज फरवरी 2021 में 220 रूपये है।
उल्लेख आवश्यक है कि अपनी पोस्ट में 11 वर्ष पूर्व (2010) के खाद्यान्नों के मूल्यों की खाद्यान्न के वर्तमान मूल्यों पर तुलनात्मक तथ्यात्मक तार्किक चर्चा साक्ष्यों के साथ विस्तार से कर के यह बता चुका हूं कि पिछले 11 वर्षों में खाद्यान्नों में मूल्य वृद्धि लगभग ना के बराबर हुई है। (उस पोस्ट का लिंक कमेंट में देखें)
अब बात दूसरी आवश्यकता मकान की। सारा देश जानता है और ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स की भरमार है जो यह बताती हैं कि 2016 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबन्दी के माध्यम से देश के भीतर के कालेधन की कमर तोड़ देने के बाद से देश में प्रॉपर्टी के दामों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी हुई है। इसके अतिरिक्त सच यह भी है कि 2014 में जो ईंट 7 रूपये की थी उसका दाम आज भी 6.50-7 के बीच ही है। 2013-14 में सीमेंट की जो बोरी 300 से 330 के बीच थी वो आज 330 से 350 के बीच है। 2013-14 में सरिया 46000 रू प्रति टन था आज 45000 रू प्रति टन है। डेढ़ करोड़ से अधिक गरीबों को सरकार आवास दे चुकी है। 2024 तक सबको आवास देने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है।
कपड़े के बारे में मेरा अनुभव यह है कि गरीब एवं मध्यम वर्ग के द्वारा उपयोग किये जाने वाले कपड़े तो महंगे नहीं ही हुए हैं। साथ ही साथ बड़े बड़े नामी गिरामी महंगे ब्रांड भी अपने कपड़े अब काफी कम कीमत पर बेच रहे हैं।
इसके अलावा एक चौथी आवश्यकता है दवाई। 50 करोड़ गरीबों के लिए 5 लाख तक के मुफ्त इलाज की आयुष्मान भारत योजना को छोड़ दीजिए। देश भर में कई गुना कम दामों पर जेनरिक दवा बेच रहे हजारों जनऔषधि केन्द्रों को भी नजरअंदाज कर दीजिए और जरा पता करिये कि 2014 की तुलना में जीवनरक्षक दवाओं के मूल्य कम हुए हैं या बढ़ें हैं। सच जान कर आप सुखद आश्चर्य में डूब जाएंगे।
आम आदमी की जिंदगी की उपरोक्त 4 सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों के बाद एक और जिक्र जरूर करूंगा। देश में आज 70 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। 2014 में 1 GB डेटा 155 रूपये में मिलता था। आज 60 GB डेटा 600 रुपये में मिलता है जबकि 2014 में 60 GB के लिए 9300 रूपये देने पड़ते। प्रधानमंत्री मोदी को अगर लूटना होता तो पेट्रोल के बजाय 60 GB डेटा का मूल्य अगर 9300 से घटाने के बाद टैक्स लगा कर 1000 भी कर देते तो भी उनकी जय जयकार हो रही होती और सरकार को हर वर्ष लगभग 3-4 लाख करोड़ की अतिरिक्त आय हो रही होती। यह रकम क्यों महत्वपूर्ण इसे दूसरे तथ्य से जानिए।
दूसरा तथ्य:
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि डीजल पेट्रोल की एक्साइज ड्यूटी के नाम पर हुई तथाकथित लूट की रकम कितनी है।
पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज डयूटी से केन्द्र सरकार को कुल 239599 करोड़ रूपये मिले थे। इसमें पेट्रोल पर एक्साइज डयूटी से उसे 93443.60 करोड़ रुपये मिले थे। 101829 करोड़ रूपये डीजल पर एक्साइज ड्यूटी से मिले थे।जबकि वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले 8 महीनों में पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज डयूटी से केन्द्र सरकार को कुल 196342 करोड़ रूपये मिले हैं। मार्च 2021 तक यह आंकड़ा 3 लाख करोड़ को पार कर जाने की सम्भावना है। अर्थात पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में वर्तमान वित्तीय वर्ष में केन्द्र सरकार पेट्रोलियम पदार्थों पर लगभग 25% अधिक (60-65) हजार करोड़ रूपये एक्साइज डयूटी के रूप में वसूलेगी। लगभग इतनी ही या इससे कुछ अधिक राशि राज्य सरकारों द्वारा वसूली जा रही है। अर्थात पेट्रोल डीजल रसोई गैस समेत सभी पेट्रोलियम पदार्थों पर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा लगभग 1 लाख 35-40 हजार करोड़ रुपये अधिक लिए गए हैं।
अब प्रश्न यह है कि जिस केन्द्र सरकार को इसी वित्तीय वर्ष में कोरोना महामारी के संकट से उबरने के लिए अचानक 20 लाख करोड़ रूपये की राशि आनन फानन में एकत्र करनी पड़ी हो, वह भी उस विषम परिस्थिति में जब लगभग 3-4 महीने तक पूरे देश का कामकाज पूरी तरह ठप्प था। इसके बावजूद पहले 2 महीनों के दौरान ही 20 मई तक 33 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि देश के गरीबों के खाते में ट्रांसफर की जा चुकी थी। 80 करोड़ गरीबों को 8 माह तक मुफ्त अनाज दिया गया था। क्या वह केन्द्र सरकार अगर 60-65 हजार करोड़ की अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी ले रही है तो उस टैक्स को हम क्या सरकारी लूट कहेंगे.? क्या उस सरकार को हम लुटेरी सरकार कहेंगे.? क्या पेट्रोल के अलावा क्या किसी अन्य उपभोक्ता वस्तु का नाम बता आप बता सकते हैं जिसका मूल्य इस कठिन दौर में भी बढ़ा हो.?
कोरोना काल में यही स्थिति राज्य सरकारों की भी रही है। उनके आय के साधन ठप्प थे लेकिन राहत के लिए भारी राशि उनको भी खर्च करनी पड़ रही थी।
अतः पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर हो रहा हुड़दंग और उसे करने वाले कितने कृतघ्न निकृष्ट और घृणित हैं.? इसका निर्णय उपरोक्त तथ्यों को पढ़ कर आप स्वयं करिए।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)