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भारतीय रेलवे 2030 तक खुद को ज़ीरो’कार्बन उत्सर्जन वाले जन परिवहन नेटवर्क के रूप में बदलने के लिए मिशन मोड पर निर्णायक कदम.

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पॉजिटिव इंडिया: दिल्ली; 7 जुलाई 2020.

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रेलवे बिना उपयोग वाली अपनी भूमि पर 2 गीगावॉट की सौर परियोजनाओं के लिए के लिए निविदाएं जारी कर चुका है व्यापक परीक्षण और प्रयोग के साथ बीना में पायलट प्रोजेक्ट जल्द ही संचालित होगा इसके पीछे मिशन आत्म निर्भर भारत प्रेरक बल सौर ऊर्जा के माध्‍यम से भारतीय रेल को परिवहन का हरित माध्‍यम बनाने की तैयारी
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के निर्देशानुसार अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर होने के प्रयास तथा अक्षय ऊर्जा (आरई) परियोजनाओं के लिए अपनी खाली भूमि का उपयोग करने के साथ ही भारतीय रेल एक नए दौर में प्रवेश करने जा रही है। रेलवे अपनी कर्षण शक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने के साथ ही जन परिवहन का एक हरित माध्‍यम बनने के लिए प्रतिबद्ध है।

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रेल मंत्रालय ने बडे पैमाने पर अपनी खाली भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया है।सौर ऊर्जा के उपयोग से रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल के उस अभियान को गति मिलेगी जिसके तहत रेलवे को जीरो कार्बन उत्‍सर्जन वाला जन परिवहन माध्‍यम बनाने का लक्ष्‍य रखा गया है।

भारतीय रेलवे की ऊर्जा मांग को सौर परियोजनाओं द्वारा पूरा किया जाएगा, जिससे यह पहला ऐसा जन परिवहन माध्‍यम बन जाएगा जो पूरी तरह से ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होगा। इससे भारतीय रेलवे को परिवहन का हरित माध्‍यम बनाने के साथ ही पूरी तरह से ‘आत्म निर्भर’ भी बनाया जा सकेगा।
भारतीय रेलवे हरित ऊर्जा खरीद के मामले में अग्रणी रहा है। इसने एमसीएफ रायबरेली (यूपी) में स्थापित 3 मेगावाट के सौर संयंत्र जैसे विभिन्न सौर परियोजनाओं से ऊर्जा खरीद शुरू की है। भारतीय रेलवे के विभिन्न स्टेशनों और भवनों पर लगभग 100 मेगावाटवाले सौर पैनल पहले से ही चालू हो चुके हैं।
इसके अलावा, बीना (मध्य प्रदेश) में 1.7 मेगावाट की एक परियोजना जो सीधे ओवरहेड ट्रैक्शन सिस्टम से जुड़ी होगी, पहले ही स्थापित हो चुकी है और वर्तमान में व्यापक परीक्षण के तहत है। इसके 15 दिनों के भीतर चालू होने की संभावना है। भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) के सहयोग से भारतीय रेलवे द्वारा शुरू की गई दुनिया में यह अपनी तरह की पहली परियोजना है। इसमें रेलवे के ओवरहेड ट्रैक्शन सिस्टम को सीधे फीड करने के लिए डायरेक्ट करंट (डीसी) को सिंगल फेज अल्टरनेटिंग करंट (एसी) में बदलने के लिए अभिनव तकनीक को अपनाया गया है। सौर ऊर्जा संयंत्र को बीना ट्रैक्शन सब स्टेशन (टीएसएस) के पास स्थापित किया गया है। यह सालाना लगभग 25 लाख यूनिट ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है और रेलवे के लिए हर साल लगभग 1.37 करोड़ रुपये की बचत करेगा।

भारतीय रेलऔर भेल के अधिकारियों ने इस अभिनव परियोजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अथक प्रयास किया है। यह परियोजना भेल द्वारा अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) योजना के तहत शुरू की गई थी। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उपकरणों और मानव संसाधन की उपलब्‍धता में काफी कठिनाई आने के बावजूद भारतीय रेल और बीएचईएल ने मिलकर केवल 8 महीने में इस मिशन को पूरा करने के लिए 9 अक्टूबर, 2019 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस परियोजना की सबसे बडी चुनौती सोलर पैनल से उत्पन्न डीसी पावर को सिंगल फेज 25 केवी एसी पावर में बदलना था जिसका इस्‍तेमाल रेलवे ट्रैक्शन सिस्टम में किया जाता है। इसके लिए एकल चरण आउटपुट के साथ उच्च क्षमता वाले इनवर्टर के विकास की आवश्यकता थी जो बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं थे।

इसके अतिरिक्त, भारतीय रेलवे की विद्युत कर्षण ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भूमि आधारित सौर संयंत्रों की योजना के लिए दो पायलट परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। उनमें से एक भिलाई (छत्तीसगढ़) की खाली पड़ी अनुपयोगी भूमि पर 50 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र है, जो केंद्रीय पारेषण उपयोगिता (सीटीयू) से जुड़ा होगा और 31 मार्च, 2021 से पहले चालू करने का लक्ष्य है। दीवाना में 2 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र हरियाणा) जो राज्य ट्रांसमिशन उपयोगिता (एसटीयू) से जुड़ा होगाके 31 अगस्त, 2020 से पहले चालू होने की उम्मीद है।

रेलवे ऊर्जा प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (आईएमसीएल) मेगा पैमाने पर सौर ऊर्जा के उपयोग को आगे बढ़ाने के लिए अथक प्रयास कर रही है। यह पहले से ही भारतीय रेलवे के लिए 2 गीगावॉट की सौर परियोजनाओं के लिए अप्रयुक्त रेलवे भूमि पर स्थापित करने के लिए निविदाएं जारी कर चुका है। भारतीय रेलवे भी परिचालन रेलवे लाइनों के साथ सौर परियोजनाओं की स्थापना की एक अभिनव अवधारणा को अपना रहा है। यह ट्रैक्शन नेटवर्क में सौर ऊर्जा के सीधे इंजेक्शन के कारण अतिक्रमण को रोकने, गाड़ियों की गति और सुरक्षा को बढ़ाने और बुनियादी ढांचे की लागत को कम करने में मदद करेगा। रेलवे पटरियों पर 1गीगावाट केसौर संयंत्रों की स्थापना के लिए एक और निविदा भी आरईएमसीएल द्वारा जल्द ही जारी करने की योजना है।

इन मेगा पहलों के साथ, भारतीय रेलवे जलवायु परिवर्तन की चुनौती के खिलाफ भारत की लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है और एक शून्य कार्बन उत्सर्जन परिवहन प्रणाली बनने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने और भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।

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