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भारत माता की जय का नारा सब से पहली बार भरी अदालत में भगत सिंह ने लगाया था

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
हम तो कभी सरस्वती शिशु मंदिर नहीं गए पर आप लगता है अभी तक 72 हूरों की फ़िराक़ में मदरसे में ही जमे बैठे हैं। बाहर निकलिए इस जहन्नुम से। मदरसे से बाहर की दुनिया बड़ी ख़ूबसूरत है।

मदरसा सुनते ही इस क़दर तड़कना , इतना तड़पना अच्छा लगा। लेकिन इतना अंधा , बहरा और कुंठित हो जाना गुड बात नहीं है। मदरसा नहीं जानते , नहीं सुने , 72 हूर ही सुने ? बहरहाल हम तो मनुष्यता के पंथी हैं। आप रहिए अपने मदरसे में , उस की निरक्षरता और मनहूसियत के साथ।

गाय ही नहीं , गंगा और भारत भी हमारी माता है। कोई शक़ ?

जब कोई तर्क नहीं मिलता तो कुतर्क के तौर पर हत्यारा गोडसे याद आता है , आप जैसे मित्रों को। अच्छा इंदिरा गांधी भी संघी थीं ? लालक़िला पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर अपने भाषण में भारत माता की जय और जय हिंद दोनों बोलती थीं। पटेल और शास्त्री जैसे तमाम नेता भी भारत माता की जय बोलते थे। बस आप का आदर्श यह लतीफा गांधी ही नहीं बोलता , भारत माता की जय ! भुगत रहा है।

नहीं जानते तो अब से जान लीजिए कि भारत माता की जय का नारा सब से पहली बार भरी अदालत में भगत सिंह ने लगाया था। 1905 में अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का पहला चित्र बनाया था। बंगला के सुप्रसिद्ध साहित्यकार किरन चन्द्र बन्दोपाध्याय का नाटक ‘भारत माता’ सन् 1873 में सबसे पहले खेला गया था। नाटक ‘भारत माता’ बंगाल में अकाल की कहानी थी। इसके बाद बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ में इसका गुणगान किया जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है- जब मैं सभाओं में जाता हूूं तो ‘भारत माता की जय’ के नारे लगते हैं। मैं लोगों से पूछता हूं यह भारत माता कौन है। फिर बताता हूं कि यह भूमि तो भारत माता है ही, लेकिन सच्चे अर्थों में यहां के लोग भारत माता हैं। इसकी जय का मतलब इस भूमि के लाखों लोगों की जीत का संकल्प है।

भारत माता मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के प्रांगण में है। इसका निर्माण डाक्टर शिवप्रसाद गुप्त ने कराया और उद्घाटन सन् 1936 में गांधी द्वारा किया गया। इस मंदिर में किसी देवी-देवता का कोई चित्र या प्रतिमा नहीं है बल्कि संगमरमर पर उकेरी गई अविभाजित भारत का त्रिआयामी भौगोलिक मानचित्र है। इस मानचित्र में पर्वत, पठार, नदियां और सागर सभी को बखूबी दर्शाया गया है। लोग दंत मंजन करते हैं। आप बुद्धि मंजन कर लीजिए। बहुत ज़रुरी है। ताकि भारत माता के प्रति आप और आप जैसे मित्रों नफ़रत ख़त्म हो।

[ मेरी पोस्ट पर एक मित्र के कमेंट के प्रतिवाद में यह कुछ टिप्पणी ]

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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