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राखी: भाई-बहिनी के मया के तिहार: लेखक गजेंद्र साहू

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पॉजिटिव इंडिया: रायपुर;
राखी परब म भाई-बहिनी मन अपन मनके मया म बंधा जथे। ए तिहार के बखान ह हमर बेद, पुरान म घलो हे, संगेसंग ए तिहार ह हमर संस्कृति अउ हमर जिनगी म अड़बड बिसेस महता रखथे| हे। अतना बिसेस के कई पइत त आँखी डाहर ले आंसू तर-तर ले बोहा जथे। भाई-बहिनी के ए मया के तिहार ल सावन मास के पुरनिमा के दिन मनाए जाथे।
ए तिहार के दिन बहिनी ह अपन भाई बर बरत रखथे। घर म किसिम किसिम के पकवान बनाथे। एक ठन थारी म गुलाल, कुमकुम, पिलहु चाउर, दीया, दही ,मिठई, नरियर, राखी ल सजा के रखथे। पहिली भाई के आरती उतारथे । ओखर बाद दही चाउर , कुमकुम के टिका लगाथे। कोनो-कोनो छेत्र म कान म कांदी ल घलो खोंचथे। तहाँ राखी ल जवनी कलई म बांध के मिठई खवाथे। नरियर धराए के बाद ओखर आरती ल करथे। भाई ह अपन बहिनी मन ल उपहार सरूप पैसा नईतो कोनो जिनिस देथे। ए दिन बहिनी मन भाई ल रक्छा सूत बांध के ओखर तरक़्क़ी, आरुग स्वास्थ्य के कामना करथे। अउ भाई मन अपन बहिनी के रक्छा करे के बचन देथे।
जउन बहिनी मन के बिहाव हो जाए रथे ,तउन हा ए दिन घर म राखी बांधे बर आथे। घर म सगा-सोदर आथे जाथे। जउन मन एकदम दूरिहा म रहिथे तउन मन हा राखी ल भेज देथे। कोनो- कोनो मन हा जउन के बहिनी नई रहए अउ घर ले दुरिहा म रहिथे तउन हा उंही जघा राखी बहिनी घलो बना लेथे। कोनो जघा म ददा मन ल ओखर नोनी मन हा बांधते। ननद मन हा बिहाव के बाद भाई-भउजी दुनो झन ला बांधते।
ओखर बाद भगवान ल , घर के दरवाज़ा, गाड़ी-मोटर ल , बियापार में बड़का-बड़का जिनिस ल, अउ अब तो रुख मन के रक्छा बर ओला सुरता म राखत रूख- रई मन ल घलो राखी बांधे जाथे।
ए दिन बाज़ार-हाट म अड़बड भीड़ रहिथे। राखी, मिठई , उपहार के जघा-जघा स्टाल बने रहिथे। राखी घलो अड़बड परकार के रथे जइसे रेसम के धागा के, सूत कपड़ा के, सोना-चाँदी रतन के। मिठई घलो आनी-बानी के रथे।
ए तिहार म भाई-बहिनी के मया अउ बाढ़ ज़थे।

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