Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुर्वेद के विकास का जज्बा किसी मे नही है। हालात यह है इसे कहा से शुरू करे यह भी समझ से बाहर है । पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने महाविद्यालय के जुबली कार्यक्रम मे आयुर्वेद के विकास के नाम से विश्वविद्यालय की स्थापना की बात की थी । एक शोध संस्थान जिससे गंभीर रूप से पीड़ित लोगो का उपचार हो सके । इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की बनाने की बात की गई थी । इसे बनारस आयुर्वेद संस्थान व जामनगर आयुर्वेद संस्थान जैसा बनाने की कल्पना की गई थी । क्या हुआ ? डा. रमन सिंह के समय संसाधन की कोई कमी नही थी । रायपुर मे महाविद्यालय की इतनी बड़ी जमीन , बिल्डिंग सब कुछ था । नही थी तो इच्छा शक्ति, जिसके कारण इस तरह आयुर्वेद के विकास के लिए कदम बढे ही नही । क्योंकि इन सब कामो मे तैयारी, वही विषय पर पकड़ होना जरूरी है । वही असाध्य रोग को आयुर्वेद के माध्यम से ठीक करना, यह भी एक बड़ी चुनौती थी । अभी तो ऐसा है कि संसाधन की कमी का रोना रो सकते है । पर यह सब चीज उपलब्ध हो गई तो बहाना किस बात का ? यहा तो आपको गुणवत्ता ही दिखानी पड़ेगी । यही गुणवत्ता की कमी ही है, जो रायपुर आयुर्वेद महाविधालय को उसके लक्ष्य तक नही पहुंचा पाई है । विगत चार दशको से ज्यादा पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स होने के बाद भी, किसी उल्लेखनीय आयुर्वेद चिकित्सक की कमी आज भी महसूस की जाती है ।
फिर इस तरह के अंतरराष्ट्रीय संस्थान व विश्वविद्यालय बनाने के बाद इस परिसर पर अपना आधिपत्य चढ़ाने वाले लोग शायद बाहर हो जाते। इस डर ने ही आयुर्वेद के लिए बनाई गई पुर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के रूपरेखा पर ही पानी फेर दिया । अगर इस दिशा मे आगे बढे रहते तो केरल के आयुर्वेद संस्थान, बनारस के आयुर्वेद का क्षारसूत्र और चिकित्सा व जामनगर के भी संस्थान की विशेषताऐं मिलती । दुर्भाग्य से हम इन सबसे वंचित हो गये । क्यो नही एक इमानदार कोशिश की गई जिससे रमन सिंह जी अपने वादे को खरा उतार पाते ?
कितनी विडंबना है कि कुछ लोगो के चलते, इतने बड़े संस्थान से, जो यहां पुराने व असाध्य बिमारीयो का एक शोध संस्थान होता; इससे यह प्रदेश फिर से ठगा गया । अब ये जरूर है कि एक नये सिरे से विचार की आवश्यकता है ताकि लोगो के व प्रदेश की भलाई के लिए, इतने बड़े संस्थान का कैसे अच्छा उपयोग हो सकता है, इस क्षेत्र मे काम करने वालो से पूछने की जरूरत है । लेख बड़ा हो रहा है अभी इतना ही, यह क्रमशः आगे भी जारी रहेगा ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)