हिन्दू और हिंदुत्व से पहले कांग्रेस ने देश और राष्ट्र का खेल क्यों खेला था?
- विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
हिन्दू और हिंदुत्व को लेकर शब्दों का जो सियासी खेल कांग्रेस आरंभ की है, ऐसा ही एक और खेल कांग्रेस पहले भी खेल चुकी है।
वे शब्द हैं: देश और राष्ट्र। भाजपा भले विकास के मुद्दे पर 2014 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई लेकिन उसके विरोधियों को पता था कि भाजपा की राजनीति का केंद्र बिंदु ही देश का सशक्तिकरण है। एक सशक्त देश ही राष्ट्र कहे जाने के योग्य होता है। भाजपा खुले मंच से सशक्त भारत के लिए नारा देती रही। अपने कार्य योजनाओं से भी भाजपा ने सशक्त भारत के रूप में राष्ट्र को जमीन पर उतारने का काम किया।
विरोधियों ने देश के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया का विरोध करना शुरू कर दिया। देश और राष्ट्र में विभेद को राजनीतिक विमर्श में स्थापित करने लगे। रक्षा उपकरणों की खरीद पर प्रश्न उठाना, सेनाओं की जवाबी कार्रवाई पर प्रमाण मांगना, कश्मीर में आतंकवादियों के एनकाउंटर पर आतंकवादियों को शिक्षक का बेटा बताना, टुकड़े टुकड़े करने वाली ताकतों के साथ जाकर खड़ा हो जाना, एक देश एक टैक्स का विरोध करना, हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने पर विरोध करना, प्रधानमंत्री के विदेश दौरे को प्रश्न करना, भारत का इजराइल से संबंध को लेकर प्रश्न करना, असहिष्णुता जैसे मुद्दे को जबरन विमर्श में लाना, तमाम ऐसे उपाय कांग्रेसियों-वामपंथियों ने किया ताकि देश कभी राष्ट्र का रूप ना ले सके।
परिणाम विपरीत हुआ। इस प्रकार के विरोधों ने भारत की जनता के मन में राष्ट्र के प्रति सम्मान पैदा कर दिया। जनता चुनाव दर चुनाव भाजपा को मैंडेट देती चली गई। नरेंद्र मोदी ने दिन प्रतिदिन के अपनी स्ट्रेटेजिक पॉलिसियों से भारत को विश्व पटल पर एक राष्ट्र के रूप में उतार दिया। जब भारत विश्व पटल पर एक राष्ट्र के रूप में उभर कर आया तब वामपंथियों-उदारवादियों को लगा, अब भारत में देश और राष्ट्र के बीच विभेद को स्थापित कर राजनीति नहीं किया जा सकता। परिणाम हुआ कि इस खेल में कोई जान नहीं रह गया। विरोधियों को इस मसले पर शर्मनाक विफलता मिली।
ठीक इसी प्रकार अब हिंदू और हिंदुत्व के बीच खाई को बढ़ाकर राजनीति करने का वक्त आ चला है। जिसका आज स्थापित शुभारंभ रहा। भारत की राजनीति के केंद्र में अब हिन्दू बनाम हिंदुत्व आ चुका है। इस प्रक्रिया में तेजी इस बात पर निर्भर करेगा कि तमाम वामपंथी, उदारवादी, कांग्रेसी अब इस हिंदुत्व के विरोध में अपना कौन-कौन सा एजेंडा किस प्रकार से विमर्श में उतारते हैं। कुंठा और घृणा की राजनीति मुझे लगता है हिंदुओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया को और भी आसान ही कर देगी। देश से राष्ट्र बन जाने की तरह ही हिन्दू से हिंदुत्व तक की सफल यात्रा तय हो जाएगी। तभी जाकर हिन्दू और हिंदुत्व के बीच की राजनीति भी खत्म होगी।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)