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सेल्यूलर जेल की सलाखें भी क्रांतिकारियों के हौसलों को पस्त नहीं कर पाईं ।किस्त 4

सेल्यूलर जेल की वो सलाखें तथा काल कोठरिया क्रांतिकारियों तथा देशभक्तों की कुर्बानी को बयां कर रही हैं।

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Credit:Positive India
काला पानी के शहीद इंदुभूषण रॉय

Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
कालेपानी की सेल्यूलर जेल के उन क्रांतिकारियों से मै परिचय कराऊंगा, शायद जिनके नाम से देश वाकिफ नही है । ये तो कुछ ही नाम है, पर ऐसे ही कितने नाम है जिनके बलिदानो से, दुर्भाग्य से देश अपरिचित है । कभी न हम लोगों ने, न कभी देश ने इसे जानने की सुध ली। दुर्भाग्य से जिनको खरोंच तक नही आई, उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बना कर उनका महामंडन कर दिया गया ।

कई बार तो ऐसा महसूस होता है कि अहिंसक आंदोलन करने वालों ने अपने भूमिका की मार्केटिंग तो की ही, इसके साथ ही इन अहिंसक वादियो ने क्रांतिकारियों को देश के इतिहास में नेपथ्य मे डालने का कुचक्र भी किया, जिसमे वे सफल भी हुए । पर सच सामने आ रहा है। इसलिए इन तबको में घबराहट भी महसूस की जा रही है ।

काला पानी की सेल्यूलर जेल की वो सलाखें तथा काल कोठरिया क्रांतिकारियों तथा देशभक्तों की कुर्बानी को बयां कर रही हैं। मैं देश व आप लोगो से पुनः नये सिरे से क्रांतिवीरों की वीर गाथा को मेरे माध्यम से ला रहा हूँ । शायद मैं भी यह न कर पाता, पर बृहन महाराष्ट्र मंडल ने इस पावन धरा मे आने का सौभाग्य प्राप्त कराया । मैं जब भी इन शहीदो के मूर्ति के नीचे नमन करने के लिए खड़ा हुआ, आंखे नम हो गई । हर क्रांतिकारी की अलग अलग कहानी और उनके अपने रोमांचकारी तेवर, जो हर भारतीयो मे सिहरन पैदा कर दे । अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता का यह आलम था कि किसी को बात करते देख ले, तो चमड़ी उधडते तक कोड़े मारे जाते थे । वहीं किसी अंग्रेज अधिकारी से बहस ही क्रांतिकारियों को कोड़े की सजा सुनाने के लिए काफी थी। इस माहौल मे ये लोग रहते थे ।

आज मैं शहीद इंदूभूषण राय के बारे मे बताऊंगा । शहीद इंदूभूषण राय के पिता का नाम तारकनाथ राय था । ये खुलना के रहने वाले थे, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है । इन्हे अलीपुर बमकांड मे दस वर्ष की कड़ी सजा के तहत अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल मे निर्वासित किया गया । जेल की पाशविक तथा बर्बरता पूर्वक शारीरिक एवं मानसिक यातना ने इनको ध्वस्त कर दिया । अंततोगत्वा 29 अप्रैल 1912 को यह क्रांतिवीर देश के लिए शहीद हो गया । नमन प्रणाम ।

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर

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