बैरिस्टर ओवैसी साहब कह रहे हैं कि मुसलमानों को अपना नेता चुनना होगा
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
बैरिस्टर साहब कह रहे हैं कि मुसलमानों को अपना नेता चुनना होगा । उन्हें देश की और सर्वसमाज की राजनीति नहीं करनी है । देश भाड़ में जाये ग़ैरमुस्लिम नागरिकों के दुख दर्द से उन्हें कोई लेना देना नहीं, उन्हें सिर्फ़ मुसलमान और उनका भविष्य दिखता है । कहने को वे भारत के नागरिक हैं लेकिन वास्तव में वे केवल मुस्लिम उम्मा के मामूली से बंदे हैं ।
सौ साल से ऊपर हो गये इक़बाल ने अपनी मशहूर नज़्म शिकवा में लिखा था ,
उम्मतें और भी हैं उनमें गुनहगार भी हैं
इज़्ज़ वाले भी हैं मस्ते मय पिंदार भी हैं
उनमें काहिल भी हैं गाफ़िल भी हैं हुशियार भी हैं
सैकड़ों हैं जो तेरे नाम से बेज़ार भी हैं
रहमतें हैं तेरी अग़यार के काशानों पर
बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलमानों पर
इक़बाल को भी मुसलमानों पर ही बिजली गिरती दिखाई देती थी । जलियाँवाला बाग़ में कितने सिख मारे गए इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था । टैगोर ने अपनी सर की उपाधि वापस कर दी तो इक़बाल को मौक़ा मिला और अंग्रेजों ने उनका नाम बढ़ा दिया और सर हो गये । एक शायर ने लिखा,
आबरू मिल्लत की खो दी किसने सर इक़बाल ने ?
लेकिन मुसलमान नेता सिर्फ़ मुसलमानों का हित सोचता है और उन्हीं के वोट लेकर हिंदुओं को ब्लैकमेल करना चाहता है ।
सन ४६ के प्रांतीय असेंबली के चुनावों में मुसलमानों के लिए आरक्षित ९०% से अधिक सीटों पर मुस्लिम लीग जीती और ये सारी सीटें यूपी बिहार बंबई मद्रास बंगाल और केरल से जीतीं । इन्हीं लोगों ने पाकिस्तान बनवाया और फिर गये भी नहीं । ओवैसी तो हैदराबाद के हैं जहाँ रॹाकारों ने खुल कर विलय के विरूद्ध जंग लड़ी । इनसे क्या उम्मीद की जाये । ये भी बैरिस्टर हैं और जिन्ना भी बैरिस्टर थे । इनकी उम्मीदें भी मुस्लिम वोटरों पर ही टिकी हैं ।
यह तो तय है कि अगर जिन्ना की डाइरेक्ट एक्शन कॉल में हिंदू पिट न जाता तो पाकिस्तान बिलकुल न बनता । कलकत्ता और नोआखाली के हिंदू नरसंहार ने नेहरू गांधी को बँटवारा स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया, और फिर जिन्ना की पीठ पर अंग्रेजों का हाथ भी था। हिंदू बेचारे गाँधी नेहरू के भरोसे मारे गए जिनके नरसंहार देख कर हाथ पैर फूल गये थे और उन्होंने घुटने टेक दिये ।
आज न अंग्रेज हैं न गाँधी नेहरू और न सोहरावर्दी की सरकार, कांग्रेसी सरकारों से भी ओवैसी को आशा नहीं है इसलिए वह कह रहे हैं मुसलमानों को अपना अलग नेता चुनना होगा बिलकुल जिन्ना की तरह ।
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती । सबके साथ रहेंगे सबका दुख दर्द समझेंगे तो फ़ायदे में रहेंगे । वरना जिस दिशा में आप मुसलमानों को ले जाना चाह रहे हैं उधर कुछ रखा नहीं है । अभी तो हिंदू तमाम पार्टियों को वोट डालते हैं मगर ध्रुवीकरण होते देर नहीं लगती । अगर मुसलमान अपना नेता चुनेंगे तो हिंदू भी अपना नेता चुनेंगे ।
आख़िर बैरिस्टर साहब आपकी मंशा क्या है ? यह सन ४६ का हिंदुस्तान नहीं है ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)