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बैंकों की मार से आम जनता परेशान

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
बैंको के काम करने का तरीका भी अजीबोगरीब है । जितना छोटा लोन उतनी ही बड़ी फारमेलटीज । और जितना बड़ा लोन शून्य व्यवहारिकता और घर पहुंच सलाम के साथ सेवा । जितना छोटा लोन उससे दस गुना मॉर्टगेज । बड़े लोन मे कोई मॉर्टगेज नही सिर्फ जबान ही काफी है । यही कारण है इनके लोन मे ये लोग कभी नही डूबते । डूबता तो बैंक है, बैंक भी नही, जनता डूबती है ।

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पर बैंक वाले लोग राजनीति के पक्के खिलाड़ी होते है । इसलिए छोटे उपभोक्ताओ के साथ तो दबाव और आदि तरीके से वसूली करने मे ये बैंक वाले अपने को बहादुर समझते है । अपने पूरे अधिवक्ताओ की फौज खड़ी कर देते है । पर कई मामले मे तो यह महानुभाव लोग ऐंबोडसमैन तक की बात नही मानते । पर बड़े लोन मे पूरी छूट के साथ यह महानुभाव लोग एक टांगपर खड़े रहते है । यही कारण है कि बड़े लोन सिर्फ डिफाल्ट करने के लिए ही लिये जाते है ।

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उल्लेखनीय है, एक समाज मे अगर कोई बंदा दिवालिया है तो वो सामाजिक रूप से उतना ही बड़ा आदमी है । ऐसे लोग जीते है शान से । आज बैंको मे मर्जर हो रहा है, जिससे जो धोखाघड़ी हो रही है वो न हो सके, पर ऐसा कुछ नही है । जब छोटे लोन मे हर बैंको की एन ओ सी लगती है तो फिर बड़े लोन मे मनमर्जी कैसे चलती है? यहाँ तो फोन ही काफी है । ऐसे मे इन पर बंदिश संभव ही नही है ।

कोआपरेटिव बैंक बड़े बैंकों का हिस्सा बनकर ही काम करते है । यही कारण है पहले नागपुर के लक्ष्मी बैंक, रायपुर का प्रियदर्शनी बैंक, अब पंजाब और महाराष्ट्र के कापरेटिवह बैंक दिवालिया हो गए । पर कुल मिलाकर क्या हुआ? कोई एक भी जिम्मेदार नही हुआ । भुगता कौन? एक आम आदमी जिसकी मेहनत की कमाई भ्रष्टाचार की भेंट चढ गई ।

किसी मे भी ये हिम्मत नही कि गुनाहगार को कटघरे मे खड़ा कर सके । बस हम एक ही चीज सुनते है, कानून अपना काम करेगा । इसके बाद भी मेरा मानना है ऐसे लोगो को गरीब आदमी की आह जरूर लगेगी । पर दुख होता है जिनको सीखचो के पीछे रहना चाहिए वो बड़े ठाठ से रहता है । लोगो के आर्तनाद से क्या लेना-देना ? निम्न व मध्यम वर्ग तो लूटने के लिए ही है । इन्हे न किसी के गंभीर बीमारी से मतलब, न इन्हे किसी लड़की की शादी की चिंता, न इन्हे किसी के वृद्धावस्था के सहारे के खत्म होने की चिंता ? ऐसे संवेदनहीन लोग अपने अंजाम मे सफल हो जाते है । दुर्भाग्य यह है कि यहाँ सब राजनीति के हिसाब से ही तय होता है ।

यह जरूर है कि हर आम उपभोक्ता को कभी भी इंसाफ नसीब नही होता । जब तक ऐसे मामलो मे जवाब देही तय नही होगी तब तक ऐसे मामलो को ये देश देखता रहेगा और गरीब लुटता रहेगा ।

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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