एक मुख्यमंत्री, दो बीएएमएस चिकित्सक कैबिनेट मंत्री – फिर भी आयुर्वेद महाविद्यालय बदतर!
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुर्वेद महाविधालय से बीएएमएस करने के बाद कई लोग राजनीति मे भी सफल हुए है । पुराने मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ के समय भी यहां से पढे भूतपूर्व छात्रो का राजनीति मे अच्छी दखलअंदाजी रही है । इनके बनने से आयुर्वेद जगत मे एक खुशी की लहर दौड़ जाती थी । पर जितना आमूलचूल परिवर्तन दिखना चाहिए, दुर्भाग्य से यह क्षेत्र वंचित ही रहा । यहां हर समयहर फोरम पर लोगो ने अपनी कोशिशे जारी रखी, पर एक आश्वासन के सिवाय कुछ भी नही मिला । वही जिन लोगो ने राजनीति मे प्रवेश कर लिया, उन्होंने वैसे भी इस चिकित्सा क्षेत्र को करीब करीब अलविदा ही कह दिया । उनका संबंध पढ़ाई करने के कारण से नाम के आगे डा. लिखने तक ही सीमित रहा । वैसे मैने जितने बार इनके मुख्य अतिथि मे आयोजन देखा है, उसकी खासियत रही है स्वागत, स्वागत और स्वागत और इतना स्वागत की मंत्री जी हार के बोझ से सिर उपर उठा ही न सके । इसी तरह के एक पुराने कार्यक्रम मे एक समाचार पत्र ने भी यही बाते लिखी ।
हो सकता है संबंधो की दुहाई देकर किसी के व्यक्तिगत काम हो गये हो, पर एक आयुर्वेद स्नातक का प्रेक्टिस के लिए मौलिक अधिकार के लिए आज भी उतना लड़ाई लड़नी पड रही है । सबसे ज्यादा आशा पूर्व मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह से ही थी । डा.रमन सिंह ने, जब वो विपक्ष के मध्यप्रदेश मे विधायक थे, उन्होंने इंट्रीग्रेटेड चिकित्सकको के लिए विधेयक रखा था, जिससे वे सुरक्षित हो जाते । पर एक विपक्ष के रखे हुए विधायक का विधेयक मायने नही रखता था । पर एक चिकित्सक से नेता बने डा. से उम्मीद जगी । हम लोग उस समय ज्यादा खुश हुए कि हमारे बीच का ही आदमी मुख्यमंत्री बना । कितना दुर्भाग्य था कि उन्ही के कार्यकाल मे बीएएमएस चिकित्सकको के यहां झोला छाप चिकित्सक के नाम से छापे भी पड़े । फिर उन्होंने एक शासकीय प्रपत्र निकालकर उसे रुकवा दिया । पर जो विधेयक उन्होंने मध्यप्रदेश विधानसभा के पटल मे रखा था उसे क्यो विस्मृत कर दिया, आज तक समझ मे नही आया । देखते देखते तीन कार्यकाल निकल गए । पर ये चिकित्सक फिर ठगे से रह गए । दुर्भाग्य से आयुर्वेद की समस्या का मतलब सिर्फ शिक्षको की समस्या तक सीमित कर दिया गया । आज भी कांग्रेस के सरकार मे दो बीएएमएस चिकित्सक कैबिनेट मंत्री है । पर अब चिकित्सकको की आशा खत्म हो गई है । कुल मिलाकर नेताओ के आश्वासन ही यहां के चिकित्सको को मिले है । भले इनकी पृष्ठभूमि यही की रही है फिर किसी ने भी कुछ नही किया । काम के नाम से हुआ है तो मात्र सम्मान । वैसे भी इनसे ज्यादा उम्मीद करना ही व्यर्थ है । नीमा आल इंडिया पर सर्वोच्च न्यायालय मे कानून विद श्री हरीश साल्वे के साये मे अपनी कानूनी लड़ाई लड़ रहा है । जब कार्यपालिका और नेताओ से वो भी अपने लोगो से समाधान न मिले तो सिर्फ न्यायालय से ही उम्मीद रहती है । अंत मे जीत सत्य की होती है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ( यह लेखक के अपने विचार हैं)