आयुर्वेद का क्रांतिकारी बिल बनाम आईएमए की देशव्यापी हड़ताल
आयुर्वेद के विकास में आईएमए में बाधक क्यों?
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
ग्यारह दिसंबर को पूरे देश में एमबीबीएस डाक्टर आईएमए के बैनर तले हड़ताल पर जा रहे है । पर देशवासियों को यह हड़ताल क्यो हो रहीं हैं, यह शायद ही मालूम हो । मै आपको यह बात आसानी से बताने जा रहा हूँ । नरेंद्र मोदी की सरकार ने एक बिल पास किया है जिसमे आयुर्वेद के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाये गये है। उल्लेखनीय है कि पिछले सत्तर साल से या यूं कहे आजादी के बाद से ही आयुर्वेद चिकित्सक उपेक्षित ही थे । यह भी कटु सत्य है कि देश के चिकित्सा की रीढ़ भी आयुर्वेद चिकित्सक ही रहे है । चाहे किसी की भी पार्टी की सरकार रही हो, सबने इसकी महत्ता समझी है । आज सुदूर इलाको में यही चिकित्सक है जो कम से कम उन इलाको में चिकित्सीय सुविधाऐं मुहैया कराने का काम करते हैं। स्वास्थय के लिए अंतिम व्यक्ति तक कम से कम यही चिकित्सक पहुंचते हैं। इसलिए इंटीग्रेटेड चिकित्सा (समन्वित चिकित्सा) पद्धति पूरे देश में लागू कर दिया गया था । पर जब तक इन लोगों को इनके व्यवसाय मे फर्क नहीं पड़ रहा था तब तक इन्होंने कोई आपत्ति नहीं उठाई, फिर धीरे से इंट्रीग्रेटेड कोर्स बंद करवाया। फिर चिकित्सा पद्धति के रोक पर अपनी पूरी ताकत लगवा दी।
चिकित्सा राज्य का विषय है, इसलिए यही कारण था कि छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यो ने ऐलोपैथी के चिकित्सकीय अधिकार के लिए एक आरडिनेंस लाकर चिकित्सको को अधिकार प्रदत्त किये । दो साल पहले छत्तीसगढ़ मे ही अवैध क्लीनिक चलाने के नाम से आयुर्वेद चिकित्सको को प्रताड़ित किया गया। जिसे बाद मे शासन ने फिर वैधानिकता प्रदान की । अभी तक देश भर मे आयुर्वेद चिकित्सक की मांग कुछ ज्यादा नहीं थी । उनकी बहुप्रतिक्षित मांग यही थी कि उन्हे ऐलोपैथी के चिकित्सकीय अधिकार भी दिया जाए । पर इन लोगों की लाॅबी काफी सशक्त होने के कारण आयुर्वेद के चिकित्सकों को हर समय कानूनी अड़चने आई । अभी भी सर्वोच्च न्यायालय मे यह केस चल ही रहा है।
दुर्भाग्य से एमबीबीएस डाक्टरों ने आयुर्वेदिक चिकित्सको को झोला छाप चिकित्सक की श्रेणी में रखा हुआ था। मुझे इस बात का अफसोस होता है कि गलत बातों मे भी आईएमए एक बंदा भी कुछ नहीं बोलता। आयुर्वेद की महत्ता को विद्वान ऐलोपैथी चिकित्सक भी अपनाते हैं और मैंने इनको इस चिकित्सा पद्धति का लाभ अपने मरीजो को भी देते हुए देखा है। आज मैं अपने बड़े भाई जैसे मित्र स्व. डा . प्रदीप पांडे का जरूर उल्लेख करूंगा। मेडिकल कॉलेज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत डा. प्रदीप पांडे आयुर्वेद के बहुत बड़े मुरीद थे । जब मैंने अपने बड़े भाई के लिए उनसे पाइलस फिसचूला के लिए संपर्क किया।, तो देखने के बाद उन्होंने मुझे कहा कि किरण (मेरा निक नेम किरण है ) बड़े भाई को क्षार सूत्र के लिए बनारस विश्व विद्यालय के आयुर्वेद विभाग के शल्य चिकित्सा विभाग में ले जाओ। मैंने वैसा ही किया । वहां के क्षार सूत्र से आज भी मेरे भाई अच्छे है। उसी समय डा.प्रदीप पांडे जी क्षार सूत्र सीखने बनारस पहुचे और उन्होंने वहां सीखा और उसे अपने चिकित्सकीय जीवन मे उपयोग किया।
इतना ही नही, कई नामी चिकित्सक अपने चिकित्सकीय जीवन मे इसका उपयोग कर रहे है। मैंने कई ऐलोपैथी चिकित्सको को कोविड मे गिलोय के उपयोग की सलाह दी।
फिर विषय पर, जब यह बात मोदी सरकार के सामने आई तो उन्होंने न सिर्फ हमारी मांगो पर गौर किया बल्कि हमारे सभी विशेषज्ञता के द्वार, जो अभी तक बंद जैसे स्थिति में थे, उसे पूरी तरह से खोल दिया । अभी नए बिल मे शल्य शालाकय प्रसूति आदि विषयों पर पूरे अधिकार देने की अनुमति ही प्रदान कर दी । इसके कारण लोगों को भी एक सामानांतर विकल्प मिल जाएंगा। वहीं जहां आयुर्वेद मे पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उदासी थी, वो पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। यह विषय पूरी तरह से रोजगार उन्मुखी हो जाएंगा। बड़े-बड़े कारपोरेट हास्पीटल को डर है कि यह विशेषज्ञ कल निकलेंगे तो कहीं सर्जरी के लिए आकर्षित न कर ले । अगर एक बार चल पड़ी तो इनके इंफ्रास्ट्रक्चर का क्या होगा ? और तो और कम कीमत में विश्वसनीय विकल्प का खतरा हर समय बना रहेगा ।
सबसे बड़ी तकलीफ उन लोगों को हो रही है जो लोग चालीस लाख देकर एमबीबीएस बनाते है । पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए 75 लाख और कमाऊ विषयों पर एक करोड़ का खर्च अनुमानित है। वो कहां से निकलेगा ? आज स्थिति यह है कि हर बड़े चिकित्सक और नर्सिंग होम वाले अपने बच्चो को चिकित्सक ही बनाते हैं। फिर कितना भी खर्च हो जाए । फिर ऐसे लोग सेवा करने क्यो लगे ? उन्हे तो अपनी रकम निकालनी है । कुछ लोग तो एजुकेशन लोन से बनते है फिर तो उन्हे अपने किश्त की चिंता रहेंगी । आज वैसे ही चिकित्सा बहुत महंगी है। सामान्य वयक्ति के पहुंच से बाहर है। कहीं यह विकल्प मिलता है तो क्या बुरा है ? निश्चित ही मोदी जी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने जो संकल्प लिया है उसे वो एक एक कर पूरा कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति का उत्थान तभी संभव है जब हमारी विरासत की सबसे बडी धरोहर आयुर्वेद का पूर्ण विकास हो । वो दिन दूर नहीं जब देश को हमें आचार्य सुश्रुत और आचार्य चरक फिर से मिलने लगे । पर यह जरूर है कि इससे बाजार वाद खत्म होगा जो यह बड़ी कंपनियां नहीं चाहतीं। वहीं महंगे जांच भी प्रभावित होंगे । इन्हे भी मालूम है कि इस विरोध का कोई मायने नहीं है। जो बंदा धारा-370 और 35-A जैसे संवेदनशील मुद्दे को छू सकता है तो यह बिल तो उनके सामने कुछ नहीं है। जनता का समर्थन पहले बिल मे भी मिला था वो अब भी मिलेगा। यह सब लागू होने के बाद और विकल्प मिलने के बाद मेडिकल में इतनी फीस देकर कोई नहीं जाएगा। पेमेंट सीट के लिए बंदे मिलना मुश्किल हो जाएंगे । पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए इतनी राशि देकर विशेषज्ञ बनने के लिए भी लोगों को सोचना पड़ेगा। वही विदेशों में जाकर जो लोग एमबीबीएस करते है उसमे काफी कमी आएगी।
जिस आयुर्वेद के लिए विदेश वाले भी इतना जानने को उत्सुक रहते है, उसी शिक्षा पद्धति को विकसित करने का कोई रूप रेखा अभी तक नहीं थी । वैसे भी मोदी जी के गुजरात के जामनगर मे आयुर्वेद का संस्थान विश्व प्रसिद्ध है। कोई एक ऐसा विकल्प की परिकल्पना होने के कारण ही इस बिल को अनुमति मिली होगी ।
वैसे भी इन ऐलोपैथी के चिकित्सकों को डरने की कोई बात नहीं है। अगर ये देशी चिकित्सक योग्य नहीं होंगे तो जनता उन्हे वैसे ही खारिज कर देगी। नहीं तो अपने कार्य प्रणाली में इतना बदलाव लाना पड़ेगा कि यह चिकित्सा भी खर्च के मामले में समतुल्य दिखाई देने लगे। पर मै आज भी इससे सहमत हूँ कि मॉडर्न मेडिसिन का कोई सानी नहीं है। आपातकाल चिकित्सा के लिए यही ज्यादा उपयोगी है। मेरा तो मानना है कि हम चिकित्सा पद्धति से लड़ने के बजाय जनता के हितों मे, जिस भी पद्धति मे जो अच्छे उपचार है, उन्हे अपनाने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।
अगर सरकार आयुर्वेद के माध्यम से पोस्ट ग्रेजुएशन के द्वारा आयुर्वेद को पुनरोद्धार कर रही है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। इस देश में आज से दो सौ साल पहले आयुर्वेद ही एक चिकित्सा का विकल्प था । हमने जरूर ऐलोपैथी को महत्व दिया है पर इसका मतलब यह भी नहीं कि हम आयुर्वेद को भूल जाए । जो लोग यह विरोध कर रहे है क्या वो यह सुनिश्चित करेंगे कि अपनी पैथी से अंतिम व्यक्ति तक चिकित्सा पहुंचायेंगे, जो उनका एक संवैधानिक अधिकार है । कितने एमबीबीएस चिकित्सक आज सुदूर अंचल में जाकर अपनी सेवाएं देने को तैयार है ? अन्यथा शासन जो विकल्प ढूंढ रहा है कम से कम उसमे बाधाएं नहीं डालनी चाहिए। फिर से एक बार ” मोदी जी है तो मुमकिन है ” । इस क्रांतिकारी बिल को लागू करने के लिए साधुवाद । बस इतना ही ।
डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)