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अयोध्याजी में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना है।

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
वह अद्भुत दिन था। अयोध्याजी उस दिन एक बार फिर देश की धार्मिक राजधानी हो गयी थीं। देश का हर प्रभावशाली व्यक्ति उस प्रांगण में हाथ जोड़े खड़ा था। वहाँ जुटा देश का संत समाज भाव विह्वल हो कर रो रहा था। सदियों की प्रतीक्षा पूरी हुई थी। राम आ रहे थे।

हमने देखा था एक दिन के लिए हर गाँव को अयोध्याजी हो जाते… हर घर के ऊपर मर्यादा पुरुषोत्तम का ध्वज लहरा रहा था। एक अयोध्या सबके हृदय में बसी थी, एक राम सबके हृदय में विराज रहे थे। समूचा राष्ट्र उत्सव मना रहा था।

देश के हर मन्दिर में उत्सव, हर मुहल्ले में जुलूस, हर गली में जयकारे गूंज रहे थे। उस दिन व्यक्ति नहीं, राष्ट्र उत्सव मना रहा था। जैसे मनुष्य रूप में उतर आयी माँ भारती निश्छल बालिका सी ताली पीट पीट कर उल्लसित हो रही हों।

उस दिन रामायण काल के सारे चरित्र अपने आसपास दिखे थे हमें! अपने बच्चों से बार बार “आ गए रामजी? विराज गए राम जी? ” पूछती दादियों में सबरी दिखी थीं। हाथ में चावल आदि ले कर मन्दिर में पुजारी को दान करने जा रही देवियों में माता अनुसूया दिखी थीं। और विह्वल हो कर चुपचाप देव को निहारती माताओं में माता अहिल्या… हाथों में ध्वज ले कर लहराते चल रहे बालकों में लव-कुश, अंगद-चन्द्रकेतु, तक्ष- पुष्कल, शत्रुघाती- सुबाहु आदि युवराज! दौड़ दौड़ कर उत्सव की व्यवस्था देखते, आयोजन का खर्च देते, बालकों को नियंत्रित करते लोगों में राजा विभीषण या सुग्रीव नहीं उतरे थे क्या? तनिक याद करिए तो…

ईश्वर ने जिस व्यक्ति को प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ का यजमान होने का गौरव दिया था, उसे धीरे धीरे मंदिर की ओर बढ़ते देख कर करोड़ों आंखें तृप्त हो रही थीं। टीवी या मोबाइल से चिपक कर बैठे लोग बार बार भावुक हो रहे थे। आँख में उतर आए पवित्र अश्रुओं को गमछे में पोंछते और फिर दृष्टि गड़ा देते स्क्रीन पर! वे वह दृश्य देख रहे थे, जिसे देखने की चाह लिए असंख्य पीढियां चली गईं थी। पिता, पितामह, परपितामह के स्वप्नों को साकार होते देखते सौभाग्यशाली लोग…
वह भारतीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा का दिन था। वह अधर्म पर धर्म के विजय का दिन था। वह बर्बरता पर सज्जनता की विजय का दिन था। वह विध्वंस की भूमि पर निर्माण का दिन था। वह भारत का दिन था, वह राम का दिन था।

अयोध्याजी में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना है। वह दिन युग युगांतर तक याद किया जाएगा। आने वाली पीढियां उस दिन के आनन्द के गीत गाएंगी। भविष्य उस दिन से प्रेरणा लेता रहेगा।

रामजी द्वारा गढ़ा गया यह देश राममय होने के बहाने ढूंढता रहता है। इसे बस कोई एक अवसर मिले, यह जय जय श्रीराम के उद्घोष में डूब जाता है। उस दिन हम सब डूब गए थे।
आप सब को प्रतिष्ठा द्वादशी की बधाई। शुभकामनाएं। जय हो

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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