अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां आनी शेष हैं
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India: Dayanand Pandey:
पिटाई हुई यह तो अब हक़ीक़त है। पर पिटाई हुई क्यों ? स्वाति मालीवाल ने न किसी बयान , न किसी ट्वीट आदि या एफ आई आर में यह बात बताई है। पीटा विभव ने यह बताया है एफ आई आर में पर अरविंद केजरीवाल के इशारे पर पिटाई हुई कि सुनीता केजरीवाल के इशारे पर। क्यों हुई ? इस दोनों बिंदु पर ख़ामोश क्यों हैं स्वाति मालीवाल। यह तो वही जानें। बार-बार हिटमैन भी वह किसे कह रही हैं , बहुत साफ़ नहीं है। राजनीति में महिलाओं की यह करुण कथा कोई नई नहीं है। लेकिन आम आदमी पार्टी में नई है। अब तो आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्य योगिता भवाना आज कह रही थीं कि यह आम आदमी पार्टी नहीं , एंटी औरत पार्टी हो गई है। स्वाति मालीवाल भी आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्य रही हैं।
तो क्या शीश महल में सौतिया डाह में पिट गईं , राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल। कि अपनी राज्य सभा सदस्यता बचाने की ज़िद में पिट गईं स्वाति मालीवाल। कि कोई तीसरी कहानी है , तीसरा-चौथा एंगिल भी है , इस पिटाई के पीछे। जो भी हो अरविंद केजरीवाल का जेल से बाहर आना उन के लिए बहुत भारी पड़ गया है। अरविंद केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल को पिटवाया है तो कोई नई बात नहीं है। अपने चीफ सेक्रेटरी को भी इसी शीश महल में वह पिटवा चुके हैं और उन का कुछ नहीं हुआ। चीफ सेक्रेटरी मतलब आई ए एस अफ़सर और दिल्ली प्रदेश सरकार का सब से बड़ा अफ़सर। वह तो अभ्यस्त हैं। योगेंद्र यादव , प्रशांत भूषण , आनंद कुमार आदि पर भी वह बाउंसरों की ताक़त आजमा चुके हैं। तो अगर अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा भेजने के लिए स्वाति मालीवाल की सदस्यता की बलि लेने के लिए पिटवा दिया है तो केजरीवाल के लिए यह सामान्य बात है। हां , अगर सुनीता केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल की पिटाई करवाई है तो कहानी बड़ी है। कोई औरत किसी औरत को एक ही वज़ह से पिटवा सकती है , वह सौतिया डाह ही है , कुछ और नहीं। फिर तो अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां भी आनी शेष हैं। अभी तो शुरुआत है। साढ़े चार घंटे दिल्ली पुलिस अगर स्वाति मालीवाल के घर रह कर लौटी है तो ख़ाली हाथ तो नहीं ही आई। विभव कुमार के ख़िलाफ़ एफ आई आर का कागज़ ले कर एफ आई आर दर्ज कर दी है। मेडिकल हो गया है। मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी। शीश महल में पुलिस की पड़ताल भी। विभव ने भी एफ आई आर की तहरीर दे दी है। पुलिस को जब स्वाति मालीवाल ने फ़ोन कर बताया कि उन्हों ने मुझे पिटवाया है। यह ‘ उन्हों ने ‘ कौन है। अरविंद कि सुनीता। इस का स्पष्टीकरण भी शेष है। वैसे भी स्वाति मालीवाल का ट्वीट बताता है कि स्वाति मालीवाल अभी बहुत संभल कर चल रही हैं।
जो भी हो अमर मणि त्रिपाठी की याद आ गई है। अमर मणि त्रिपाठी मधुमिता शुक्ला को अपनी रखैल बनाए हुए। उस की बहन को भी। लोग अभी तक यही जानते हैं कि अमरमणि त्रिपाठी ने मधुमिता की हत्या करवाई। पर सच यह है कि अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी ने मधुमिता शुक्ला की हत्या करवाई थी। अमरमणि की पत्नी का नाम भी मधुमणि है। हुआ यह कि तमाम एबॉर्शन और एहतियात के बावजूद मधुमिता शुक्ला फिर गर्भवती हो गई थी। और अब की वह गर्भ गिराने को तैयार नहीं थी। अमरमणि की रखैल बन कर रहने को अब और तैयार नहीं थी। पत्नी का हक़ मांग रही थी और संपत्ति में हिस्सा भी। यह बात अमरमणि की पत्नी तक जब पहुंची तो वह भड़क गईं। अमरमणि के चेलों से कह कर , अमरमणि की सहमति से हत्या करवा दी। बस सत्ता की सनक में सब कुछ खुल्ल्मखुल्ला करवा दिया। फिर हरिशंकर तिवारी ने तुरंत व्यूह रचना कर दी। राजेश पांडेय जैसे ईमानदार और साहसी पुलिस अफ़सर के हाथ यह जांच आ गई। राजेश पांडेय ने चूल से चूल मिला कर कील-कांटा ऐसे दुरुस्त कर दिया पुलिस दस्तावेज में कि कोई छेड़छाड़ नहीं कर पाया। हरिशंकर तिवारी ने मधुमिता की बहन निधि शुक्ला के मार्फ़त सुप्रीमकोर्ट तक लड़ाई लड़वाई। अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास हो गया। अलग बात है हरिशंकर तिवारी के निधन के बाद निधि को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक मदद समाप्त हो गई। अमरमणि छूट गए।
जेल से कुछ दिन के लिए ही सही छूट कर तो अरविंद केजरीवाल भी आए हैं। आए हैं तो शीश महल में सत्ता के लिए मुगलियाकाल का सत्ता संघर्ष भी ले कर आए हैं। शीश महल , यानी रंग महल की कहानियों का पिटारा ले कर आए हैं। सिर्फ़ भ्रष्टाचार की कालिख में ही नहीं , लंपटता की कालिख में भी सराबोर हैं। सत्ता जाने क्या-क्या सुख , जाने क्या-क्या कालिख ले कर सर्वदा उपस्थित रहती है। सूर्पणखा से राम ही बच सकते हैं , हर कोई नहीं। अभी की कुछ समय पहले की क्लिपिंग्स में आतिशी मार्लेना , अरविंद केजरीवाल के साथ जिस नज़ाकत और अंदाज़ में उपस्थित दिखती हैं , बार-बार दिखती हैं , सब के ही लिए अचरज और रश्क का विषय होता है। उन का सौंदर्य दिखाने की ललक , देखते बनता है। उन के लटके-झटके भी। मार्लेना मतलब मार्क्स और लेनिन की मिली-जुली रचना। तिस पर नाम भी आतिशी। गौरतलब है कि आतिशी के माता-पिता वामपंथी हैं। जाने विवाह भी किया है कि नहीं। राम जाने। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते रहे हैं। मार्लेना तक तो समझ में आता है पर आतिशी ? ऐसे ही है जैसे कुछ लोग बेटियों का नाम कामिनी रखते हैं। ख़ैर , अब जब जेल से आने के बाद केजरीवाल दिल्ली में कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर गए तो वामपंथियों की यह संतान आतिशी भी क़दमताल करती गई हनुमान मंदिर। तो आतिशी के लिए सत्ता सुख ने वामपंथियों की थीसिस धर्म अफीम है की बात भुला दी गई। वैसे एक बात यह भी हुई कि जेल से वापस आने के बाद केजरीवाल के साथ आतिशी की वह अटक-मटक देखने को नहीं मिली है। तो क्या सुनीता केजरीवाल ने इस पर भी केजरीवाल को टाइट कर दिया है ?
क्या पता !
याद कीजिए आतिशी के पहले कभी इसी आतिशी की धज में कभी स्वाति मालीवाल भी केजरीवाल के आगे-पीछे उपस्थित रहती थीं। यही लटके-झटके। और यही नाज़ो-अदा-अंदाज़। तब के दिनों स्वाति मालीवाल को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया था केजरीवाल ने। लेडी सिंघम बना और बता रखा था केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल को। स्वाति मालीवाल के पति नवीन जयहिंद एक समय केजरीवाल के ख़ास दोस्त हुआ करते थे। अब स्वाति का नवीन से तलाक़ हो चुका है। पर जब स्वाति के साथ शीश महल में पिटाई हुई तो वह खुल कर स्वाति के साथ खड़े हो गए।
अच्छा तो क्या अरविंद केजरीवाल जेल जा कर भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा इस लिए नहीं दिए कि इस के उत्तराधिकार में कई पेचोख़म हैं। स्वाति मालीवाल भी मुख्य मंत्री पद की दावेदार रहीं ?
और आतिशी मार्लेना ?
जिस तरह बन-ठन कर अदाएं दिखाते हुए आतिशी मार्लेना अरविंद केजरीवाल के आगे-पीछे वह मंडराती रहती वह देखी जाती रही हैं , उसी को देखते हुए आतिशी को भी मुख्यमंत्री पद का हक़दार माना जाने लगा था। पर हर कोई स्त्री लाख कुर्बानी दे दे जयललिता और मायावती की क़िस्मत ले कर तो नहीं ही पैदा होती। आंध्र में लक्ष्मी पार्वती भी नेता बनीं तो एन टी रामाराव की दूसरी पत्नी बन कर ही। अलग बात रामाराव के दामाद चंद्र बाबू नायडू ने लक्ष्मी पार्वती को ऐसे ध्वस्त किया कि लोग अब उन का नाम भी भूल गए हैं। याद कीजिए एक समय कांति सिंह लालू यादव के आगे-पीछे बनी रही थीं। पर बिहार की कमान उन्हें नहीं मिली। केंद्र में मंत्री बन कर ही समाप्त हो गईं। अब तो लोग कांति सिंह को भूल ही गए हैं। मुलायम सिंह यादव के आगे-पीछे डोलने वालियों की भी लंबी फ़ौज थी।
जो भी हो अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां भी आनी शेष हैं। अभी तो शुरुआत है।
अकसर दहाड़ने वाले अरविंद केजरीवाल बिहार की बोली में लखनऊ में क्यों नरभसा गए। हुआ यह कि लखनऊ में अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस करते हुए अरविंद केजरीवाल से पत्रकारों ने उन के दिल्ली के शीश महल में राज्य सभा सदस्य स्वाति मालीवाल की पिटाई के बाबत सवाल पूछ लिया था। सवाल सुनते ही अरविंद केजरीवाल नरभसा गए। मतलब नर्वस हो गए। जैसे सांप सूंघ गया हो। एक चुप तो हज़ार चुप। ऐसे जैसे कोई हत्यारी लग गई हो। अरविंद केजरीवाल की मुश्किल देखते हुए अखिलेश यादव ने माइक संभाला। पर वह भी लड़बड़ाते रहे। फिर माइक संभाला संजय सिंह ने। संजय सिंह मणिपुर , पहलवान आदि की भूलभुलैया में घूमते रहे। एक मिनट में ही अरविंद केजरीवाल उठ खड़े हुए। प्रेस कांफ्रेंस ख़त्म।
दिलचस्प यह कि केजरीवाल अपने आरोपी पी ए विभव को ले कर लखनऊ आए थे। अंदर प्रेस कांफ्रेंस हो रही थी बाहर कार में विभव सिर झुकाए बैठा था। कार को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता चारो तरफ से घेरे रहे ताकि मीडिया के हत्थे न चढ़ जाए। एयरपोर्ट पर भी विभव केजरीवाल के साथ फ़ोटो में कैप्चर हो गया था। विभव को लखनऊ में केजरीवाल के साथ देखते ही स्वाति मालीवाल भड़क गईं। उन के सब्र का बांध टूट गया। दिल्ली में स्वाति मालीवाल ने विभव के ख़िलाफ़ एफ आई आर दर्ज करवा दी है। अब केजरीवाल ज़रूर पछता रहे होंगे कि जेल से बाहर आए तो आए ही क्यों ? क्या इसी तरह नरभसाने के लिए ?
समझ नहीं आता कि अंबेडकर और भगत सिंह की फोटुओं के बीच बैठ कर बयान न अरविंद केजरीवाल जारी कर रहे हैं , न सुनीता। संजय सिंह ने जब प्रेस कांफ्रेंस कर स्वाति मालीवाल के पक्ष में बात की और पिटाई की निंदा की पर आतिशी ने प्रेस कांफ्रेंस कर स्वाति मालीवाल को साज़िशकर्ता बताते हुए भाजपा का मोहरा बता दिया है। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने स्वाति मालीवाल को गद्दार का सर्टिफिकेट देने की होड़ मची हुई है। तिस पर कपिल मिश्रा का कहना है कि स्वाति मालीवाल ने भी अरविंद केजरीवाल को थप्पड़ मारा है। जो भी हो अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की संगत में हैं आजकल। और कांग्रेस में महिलाओं को इसी दिल्ली में तंदूर में जला कर मार देने की पुरानी परिपाटी रही है। इसी लिए इस पूरे प्रसंग पर कांग्रेस सहित समूचा इंडिया गठबंधन सिरे से ख़ामोश है।
एक सवाल यह भी है कि विभव के पास आख़िर कितने राज़ हैं अरविंद केजरीवाल के हरम के ? जो अरविंद केजरीवाल विभव के आगे मुर्गा बने बैठे हैं। कुमार विश्वास का कहना है कि विभव केजरीवाल के डर्टी गेम का बड़ा राज़दार भी है और केजरीवाल के डर्टी गेम का सरदार भी। औरंगज़ेब याद आता है। क़िस्सा है कि औरंगज़ेब की दो बहनें थीं। जहांआरा और रोशनआरा। औरंगज़ेब ने अपनी अकड़ के चलते इन दोनों बहनों की शादी नहीं की। बड़ी बहन ने चुपचाप अपने महल में नौ नौजवान रख लिए। अपनी यौन पिपासा शांत करने के लिए। बाद में छोटी बहन को जब पता चला तो वह भी बड़ी बहन को ब्लैकमेल कर इन नौजवानों की साझेदार बन गई। फिर दोनों बहनों में किसी बात पर अनबन हो गई तो इन नौ नौजवानों की ख़बर औरंगज़ेब तक पहुंची। औरंगज़ेब ने नौ नौजवानों की बेरहमी से क़त्ल करवा दिया।
मतलब हिटमैन के क़त्ल अभी और भी बाक़ी हैं। कहानी तो ख़ैर बहुत सारी हैं। कहा भी जा रहा है कि अब की दोनों यानी केजरीवाल और विभव साथ-साथ तिहाड़ जाएंगे।
सवाल एक यह भी है कि अरविंद केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने के लिए संविधान खामोश है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत की एक शर्त यह भी लगा रखी है कि मुख्यमंत्री आफ़िस नहीं जाएंगे। कोई फ़ाइल नहीं साइन करेंगे। पर विधान सभा बुला सकते हैं कि नहीं , सुप्रीम कोर्ट ख़ामोश है। तो क्या केजरीवाल क्या विधान सभा बुला कर चिर-परिचित विष-वमन कर सकते हैं ? जैसा कि वह करते रहे हैं। विधान सभा में कही किसी बात पर कोई अदालत , कोई क़ानून कुछ नहीं कर सकता। इसी लिए राहुल गांधी संसद में बम फोड़ने की बात भी एक समय पूरी मूर्खता के साथ करते रहे थे। तानाशाह से निपटने के लिए केजरीवाल कुछ भी कर सकते हैं।
बस एक धक्का और दो !
साभार: दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)