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आर्टिकल 15 की फिल्मी नहीं, आईन-कथा

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Positive India:Kanak Tiwari:
संविधान का आर्टिकल 15 इस तरह हैः-राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। कोई नागरिक केवल, धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान पर इनमें से किसी के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के सम्बन्ध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा। अनुभव सिन्हा की बेहद अच्छी फिल्म आर्टिकल 15 में कई सवालों का जवाब नहीं दिया जा सकता था। आर्टिकल 15 अपनी बड़बोली भाषा के बावजूद धर्म, जाति, क्षेत्रीयता, भारतीयता, भाषा आदि के खांचों में फंसकर अभी तक कराहता रहा है।

आर्टिकल 15 का जन्म संविधान सभा में 29 नवंबर 1948 को हुआ। कई संवेदनशील और गंभीर तकरीरों की वजह से संविधान की स्लेट पर आर्टिकल शिलालेख की तरह खुद गया। प्रमुख समाजविचारक सदस्य प्रोफेसर के.टी. शाह ने मजबूत सवाल उठाए। आजाद भारत में हर तरह की लोकजनीन संस्था स्कूल, अस्पताल, आश्रम, मंदिर, थियेटर, होटल, रेस्टोरेंट वगैरह का हर नागरिक को उपयोग करने का अधिकार हो। बहाना किया जाता है अमुक संस्था किसी दानशील व्यक्ति या संस्था द्वारा सशर्त स्थापित की गई है कि उसका लाभ किसी खास जाति के लोगों को ही मिलेगा। ऐसे प्रतिबंध मंजूर करना संविधान का अपमान होगा। अंगरेजों के वक्त वे गोरों के लिए क्लब, अस्पताल, स्कूल वगैरह महफूज रखते थे। उन्होंने कहा बंबई के एक बड़े अस्पताल में प्रतिबंध है। वह जाति विशेष के लोगों के लिए उसी जाति के दानदाताओं द्वारा बनाया गया है। यदि राज्य से ऐसी लोक संस्थाओं को किसी भी तरह की आर्थिक मदद, अन्य सहायता, प्रोत्साहन या सुरक्षा मिलती है। तो देश के हर नागरिक को इस्तेमाल का मूल अधिकार होगा।

बिहार के सदस्य मोहम्मद ताहिर ने करुणा के स्वर में कहा देश में कुछ सड़कें ऐसी हैं जिन पर अनुसूचित जातियों और अन्य नीची जातियों के लोगों को चलने नहीं दिया जाता। कुछ कुओं से यदि दलित पानी भरते हैं तो उनकी हत्या तक की जाती है। इसी अनुच्छेद में अपराधों की सजा भी शामिल कर लेनी चाहिए। इसी आधार पर आरक्षण की वकालत करते के. टी. शाह ने कहा मुनासिब आरक्षण भी दिया जाए। बिलकुल समझा जाए यदि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है तो वह अगड़ों को भी मुनासिब तरक्की के लिए कोई माहौल नहीं मिल सकता।

मद्रास के अनुसूचित जाति के एस. नागप्पा ने बार बार गांधी जी की याद करते पूछा मुझे बताया जाए अनुच्छेद में ‘दूकान‘ शब्द का क्या अर्थ है। ‘यदि मैं नाई की दूकान में हजामत के लिए जाता हूं। तो मैं उसका श्रम खरीदता हूं। यही हाल धोबी की दूकान के लिए भी है।‘ वहां हर नागरिक को सुविधा का अधिकार होगा। फिर पूछा क्या यही अधिकार कब्रिस्तान या श्मशान घाट के लिए होगा अथवा नहीं। पंजाब के सरदार भूपेंद्र सिंह मान ने धर्म का सवाल उठाते कहा अक्सर हिन्दुस्तानी जिंदगी में देखा गया है आम जनता के लिए बने पूजा घरों में पुजारी उनके दरवाजे पब्लिक के लिए बंद कर देते हैं। गांधी ने मंदिरों के दरवाजे अछूतों के लिए खुलवाए थे। मजहबियत की जो दीवारें हिन्दुस्तान में एक दूसरे को जुदा किए हुए हैं, हमको उनको उखाड़ना ही होगा। मोहम्मद ताहिर ने फिर कहा सार्वजनिक उपयोग के स्थानों में होटलों के अतिरिक्त धर्मशाला और मुसाफिर खाना भी लिखना चाहिए।

उत्तरप्रदेश के शिब्बनलाल सक्सेना ने याद दिलाया सैकड़ों हिन्दू होटलों में गैर हिन्दुओं को प्रवेश नहीं मिलता। उन्हें भी ऐसे होटलों में जाने का संवैधानिक अधिकार दिया जाएगा। तो इसे अमल में लाने के लिए हमें लोगों को तैयार भी करना होगा।

बहस को समेटते अंबेडकर ने कहा इस अनुच्छेद का उल्लंधन करने पर सजा देने संसद को अलग से अधिनियम बनने का अधिकार होगा। वह अलग अलग राज्यों को नहीं दिया जाना चाहिए। यह भी कहा इस प्रावधान का मकसद नहीं है कि अलग से लोक संस्थाएं केवल दलितों के लिए बना दी जाएं। एस. नागप्पा के सवाल का जवाब देते अंबेडकर ने कहा दूकान शब्द में धोबी और नाई की दूकान तो शामिल है ही। उन्हें प्रत्येक ग्राहक की सेवा के लिए तैयार रहना होगा। कब्रिस्तान और श्मशान को लेकर अंबेडकर ने कहा कि वे स्थान जनता के सहयोग से अमूमन चलाए जाते हैं। नगरपालिकाओं, लोकल बोर्ड और सरकारों और ग्राम पंचायतों द्वारा ऐसे श्मशान और कब्रिस्तान का रखरखाव नहीं होता। वहां स्थिति अलग होगी।

अंबेडकर ने साफ किया नदियों, झरनों, नहरों आदि के उपयोग को आर्टिकल 15 के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। उन्हें आर्टिकल 17 के तहत शामिल होने से इन कुदरती जल स्त्रोतों के लिए सबको आजादी होगी। आर. के. सिधवा को अंबेडकर ने कहा इस अनुच्छेद में लोक या पब्लिक का अर्थ है यदि पूरी तौर पर या अंशतः राज्य की मदद से संचलित किया जा रहा हो। दिलचस्प यह है कि शिब्बनलाल सक्सेना द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब नहीं मिला। एक तथाकथित रामभरोसे हिन्दू शाकाहारी होटल में यदि कोई मांसाहारी मौलाना शाकाहारी भोजन के लिए जाए तो क्या उसे मना किया जा सकता है? आर्टिकल 15 ज्ञान और नीतिशास्त्र का एक मासूम कथावाचक है या उसकी नसीहतों से कोई व्यापक फेर बदलाव सामाजिक संरचना में हो चुका है? या कछुआ गति से होते जाने की संभावनाओं को उनमें देखा तो जा सकता है?
साभार:कनक तिवारी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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