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बांग्लादेश में गिरफ्तार चिन्मय कृष्ण दास की मांग है कि हिंदुओं को प्रताड़ित न किया जाए

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से -

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
ये चिन्मय कृष्ण दास जी हैं, कंगलादेश में हिंदुओं के प्रमुख धर्मगुरु! फिलहाल उस देश में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे धार्मिक जन के अग्रणी नेता हैं वे। बुरा यह है कि कल उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।

चिन्मय कृष्ण दास का अपराध बस इतना है कि कंगलादेश जैसे देश में हिन्दू होने के बावजूद वे सुखमय जीवन जीने का अधिकार मांग रहे हैं। वे मांग रहे हैं कि उनके मन्दिर न जलाए जाँय, उनके लोगों को प्रताड़ित न किया जाय, उनका धन न लूटा जाय। वहां की सरकार के साथ साथ बहुसंख्यक प्रजा भी उन्हें यह अधिकार देना नहीं चाहती। वहाँ के कट्टरपंथी इस्कॉन मंदिरों को बन्द कराने पर तुले हुए हैं।

चिन्मय प्रभु कब तक छूटेंगे, छूटेंगे भी या नहीं, इसपर कोई बात नहीं कही जा सकती। वहां की सत्ता उन्हें रोकने के लिए कुछ भी कर सकती है। फांकिस्तान और कंगलादेश में ऐसा होता ही रहा है।

आप वहाँ की बहुसंख्यक आबादी से शांति और सहजीविता की उम्मीद कर रहे हों तो मूर्ख हैं आप। कुछ ही महीने पहले की तो बात है, उन्हें अपनी ही शीर्ष नेता के वस्त्र लूटने में लज्जा नहीं आयी तो वे दूसरों को कैसे छोड़ देंगे?

कंगलादेश में हिन्दू प्रजा को कैसा नरकीय जीवन जीना पड़ रहा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। यह संसार जानता है। वहाँ की हिन्दू जनता का समर्थन कर देने के अपराध के कारण विश्वप्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन को दशकों से भारत में शरण लेना पड़ा है।

भारत सरकार हर बार की तरह इस बार भी नाराजगी जता चुकी है। कड़वे बयान जारी हो चुके हैं। पर उन्हें इन बयानों की न कल फिक्र थी, न आज है। वे जानते हैं कि भारत बयान जारी करने के अलावे और कुछ नहीं करता है…

भारत में इस विषय पर बहुत कम चर्चा है। इस विषय पर चर्चा होनी चाहिये। कल ही किसी मित्र की वाल पर पढ़े थे, “या तो आप युद्ध मे हैं, या भरम में हैं।” यह बात बिल्कुल गलत भी नहीं। इतना तो याद रखिये ही कि हम कंगलादेश से बहुत दूर नहीं रह रहे हैं।

मैं नहीं जानता कि इससे क्या लाभ होगा, फिर भी मुझे लगता है कि इनकी तस्वीर हर हिन्दू की फेसबुक वाल पर होनी चाहिये। यदि हम उनके लिए और कुछ नहीं कर पा रहे तो कम से कम इतना ही सही… एक सभ्य देश के सभ्य नागरिक के रूप में यही हमारा विरोध है।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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