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अर्नब बनाम दलाल बिकाऊ मीडिया तथा वाम ब्रह्मास्त्र का विश्लेषण

देश तथ धर्म विरोधी वाम प्रचार प्रसार तंत्र की मारक क्षमता को समझने की क्यो है आवश्यकता?

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Positive India:Suresh Mistry:
सुबह के 9 बज रहे है और में अपनी दूसरा कप चाय खत्म कर कुछ अर्ध व्यग्र सा खिन्न अपनी डेस्क पर बैठा हूं…

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कुछ है जो अंगूठे से होता हुआ इस डिजिटल साधन के माध्यम से सोशल मीडिया के पटल पर उतरना चाहता है…

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पिछले तीन चार माह से देश मीडिया महा समर प्रांगण बना रहा है…राष्ट्रवाद विरूद्ध परंपरागत अभिजात्य वर्ग के अधिकार वाले शासन व्यवस्था के बीच स्पष्ट भेद वाली विभाजन रेखा…अर्नब बनाम दलाल बिकाऊ मीडिया के रूप में अब सहज देखा जा सकता है… फर्क यह नहीं है कि आज देश पक्ष से सत्य की आवाज बनता एक अर्नब सफलता का इतिहास रच रहा है, फर्क यह समझ जाए कि आज देश का बहू संख्यक बल एकजुट होकर वैश्विक बाजार वाद से अधिग्रहीत भारतीय प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिकाऊ दुकानों के जूठ और धोखे को अस्वीकार कर “राष्ट्र प्रथम” के परम ध्येय के साथ खड़ा दिख रहा है…

यह बहुत बड़ी असली वजह हे…इस गौरवान्वित राष्ट्र के उज्जवल और शसक्त भविष्य के प्रति आशान्वित होने की….

किन्तु अभी… जिस सोशल मीडिया को पूर्णतः स्वतंत्र मानने की एक अव धारणा हमारे मन में बैठा दी गई है उसे समय समय पर जांचने की भी आवश्यकता है…?

सीधा मुद्दे कि बात पर आता हूं…

देश विरोधी शक्तियां सता संघर्ष में एक व्यापक शस्त्र रखती है… प्रचार प्रसार का बहुत ही बड़े सर्व स्तरीय व्यवस्था के रूप में…वह प्रभाव प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वर्षों से जितना वर्चस्व रखती आई हे…. उतना ही एक छद्म प्रभाव सोशल मुड़िया के समस्त माध्यमों फेब, ट्विटर, इंस्टा, इत्यादि पर जन अवधारणा को प्रेरित और निरुत्साहित करने में भी ही रखती है…

एक उदाहरण समझे…

हाथरस के बनावटी प्रकरण को एक रात में ही नहीं महज चंद घंटों में पूरे देश के हर मीडिया में ऐसा गुंजायमान कर दिया जाता है कि उस से पूर्व के चल रहे सारे आंदोलन और न्याय संघर्ष पार्श्व में चले जाते है…. यूं कहिए हंसिए पर रखवा दिए जाते है…

जब दूसरी तरफ… राजस्थान में एक हिंदू मंदिर के पुजारी को आग से जला कर मार दिया जाता है…. लेकिन आज उस प्रसंग को कई दिन व्यतीत होने के पश्चात भी कोई एकल दोकल आवाज ही हम सभी हुई सुन पा रहे है…?

बात सामान्य है… वह जिस मुद्दे को चाहते है… हमारे मस्तिष्क हमारे मुख में रख देते है… इतना शसक्त प्रभाव रखते है और वह जिस मुद्दे को अनचाहा कर दे… वह बात चाहे एक हिंदू पुजारी की हत्या की हो या किसी हिंदू बच्ची की बलात्कार की….या किसी बड़े से बड़े घोटाले की..हमारे जहन में उस मुद्दे को नगण्य बना कर रख देते है…?

यह वास्तव में उनकी बहुत बड़ी ताकत है… और जागृत होकर अंगड़ाई लेे रहे राष्ट्रवाद के इस पुण्य प्रभात में…आज एक सबसे घातक मारक विरोधी शक्ति का शस्त्र है…

जो बड़ी मुश्किल से एकजुट होकर साथ खड़ी होते बहू संख्यक हिंदू के सगठित बल को छिन्न भिन्न करने की महारत रखता है… स्वर्ण दलित, आरक्षण, अनारक्षण, जाती भाषा के नाम पर आपसी कलह में उलझा देने का करीगरी रखता है…यह वही वाम ब्रह्मास्त्र है जिसने आजादी से आज पर्यत हिंदू को एकजुट नहीं होने दिया…अपने ही देश धर्म और संस्कारो पर लज्जित रखा…

अगर हम देश धर्म विरोधी इस वाम प्रचार प्रसार तंत्र की मारक क्षमता को समझने से अभी रस्प्रद या सक्षम नहीं है तो यही उनकी वास्तविक जीत की उम्मीद है और हमारी सबसे बड़ी शिकस्त…

इतना लंबा और थोड़ा नीरस लेख पढ़ने तक साथ बने रहने के लिए आभार… अगर अपनी बात रखने में थोड़ा भी सफल हुआ हूं तो एक लाइक कमेंट से जुड़ते और प्रोत्साहित करते चले…

सक्रिय प्रेरणा बल देती है…

धन्यवाद🙏

साभार:✍️सुरेश-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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