Positive India:Dayanand Pandey:
एम ए , बी एड , पी एच डी। इस तरह बहुत से लोगों को अपनी पी एच डी धोते हुए अकसर देखता रहता हूं। एक जनाब ने तो एम ए , बी टी सी , साहित्य रत्न , विशारद , बी एड , पी एच डी आदि एक साथ लिखे हुए थे घर की नेम प्लेट पर। पढ़ाते थे जूनियर क्लास के बच्चों को। लेकिन अपने नाम के आगे प्रोफेसर लिखते थे। और तो और हिंदी में एम थे पर प्रिंसिपल को मक्खन लगा कर अंगरेजी की क्लास पढ़ाते थे। इस से उन को लाभ यह था कि अंगरेजी पढ़ने उन की कोचिंग में स्कूल के बच्चे आते थे। स्कूल के बाहर के बच्चे भी।
लेकिन रिटायर होते ही उन की कोचिंग बंद हो गई। पर नेम प्लेट नहीं बदला। एक बार उन्हें टोका कि पी एच डी लिखने के बाद बाकी डिग्रियां लिखने की क्या ज़रुरत है ? यह सुनते ही वह बिगड़ गए। बोले कि बहुत मेहनत से यह डिग्रियां हासिल की हैं। तो उन से कहा कि मिडिल , हाई स्कूल , इंटर , बी ए आदि की डिग्रियां क्या बिना मेहनत के मिली हैं ? इन्हें भी लिखिए। वह और भड़क गए। बहुत से ऐसे मास्टरों को देखा है जो पढ़ाते तो जूनियर क्लास को हैं पर बड़े फख्र से अपने नाम के आगे प्रोफेसर धड़ल्ले से लिखते हैं।
अभी फेसबुक पर पोस्ट एक लेखिका की किताब पर छपे परिचय पर एम ए , बी एड , पी एच डी लिखा देखा तो वह मास्टर साहब लोग याद आ गए। और तो और एक डाक्टर साहब का बोर्ड देखा है। लिखा है डाक्टर यस सिंह , एम बी बी यस। ऐसे एम बी बी यस लिखे कई डाक्टरों को भी देखता रहता हूं। देखने के लिए अभिशप्त हूं। भगवान जाने कैसे यह लोग एम बी बी एस भी किए होंगे। यह और ऐसे तमाम किस्से हैं इन लोगों के।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)