Positive India:दयानंद पांडेय:
आंदोलनजीवियों का आंदोलन पहले हिंसा के जंगल में खो गया। फिर राकेश टिकैत के आंसुओं पर दुबारा सांस मिली तो लोकसभा में राहुल गांधी के क्रांतिकारी भाषण में ध्वस्त हो गया। वैसे भी नरेंद्र मोदी के लोकसभा में भाषण ने इन को इन की इन की ज़मीन दिखा दी थी। रही-सही कसर राहुल गांधी के क्रांतिकारी भाषण ने पूरी कर दी और तंबू कनात राहुल गांधी ने उखड़वा दिए। अब क्या सिंघू बार्डर , क्या टिकरी बार्डर , क्या ग़ाज़ीपुर बार्डर , हर कहीं अंगुलियों पर गिनती के लोग दिख रहे हैं।
आख़िर राहुल गांधी को वैसे ही तो नहीं , भाजपा का स्टार प्रचारक कहा जाता है। लोकसभा में राहुल गांधी को बजट पर बोलने के लिए समय मिला था। बजट पर बोलना था लेकिन वह किसान आंदोलन पर बोलने लगे। लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें टोका भी कि बजट पर बोलिए। राहुल बोले , बजट पर भी बोलूंगा। फिर कांग्रेस सदस्यों को देखते हुए बोले , अभी फाउंडेशन बना रहा हूं। लोकसभा अध्यक्ष ने फिर टोका कि आसन को एड्रेस कीजिए। लेकिन राहुल घूम-घूम कर कांग्रेस सदस्यों को संबोधित करते रहे। अंतत : बजट पर बोले बिना वह निकल गए। अपने भाषण में किसान आंदोलन को राहुल गांधी ने इतना फोकस किया कि आंदोलनजीवी परजीवी भी समझ गए कि अब आंदोलन से फूट लेना ही बेहतर है।
लालक़िला पर 26 जनवरी को उपद्रव मचाने वाले , तिरंगे को अपमानित करने वाले दीप संधू और उस से जुड़े अन्य लोग अब पुलिस के हाथ आ चुके हैं। अभी और आएंगे। तो यह भी एक फैक्टर भी है। पर मुख्य फैक्टर राहुल गांधी ही हैं। किसान राहुल से बच कर निकल गए। क्यों कि अब हो यह भी सकता था कि बार्डर पर पहुंच कर जबरिया गले मिल कर वह आंख भी मार सकते थे। लालक़िला से निकल कर राहुल गांधी के जाल में यह आंदोलनजीवी परजीवी अब फंसने को तैयार नहीं थे।
साभार: दयानंद पांडेय-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)