लोकतंत्र के नाम पर देश और धर्म की बोटियां नोचने वाले #सफेदपोश_बगुलों का विश्लेषण
मार्च 1938 तक किसी ने वंदेमातरम् का विरोध क्यों नही किया?
Positive India:Ajit Singh:
यूपी सहित सात राज्यों का चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है…वैसे वैसे लोकतंत्र के नाम पर देश और धर्म की बोटियां नोचने वाले #सफेदपोश_बगुलों की भाषा,हरकते बद से बदतर होती जा रही हैं…आज बात करते है हैदराबादी रजाकारों की औलाद यानी #भड़काऊ_भाईजान और उसके रक्तबीजों की….भगवा को देख कर भड़कने वाले मिक्स प्रजाति के रहनुमाओं के चाल,चरित्र और चेहरे को देख कर आपको मान लेना चाहिये कि मवेशी की पार्टी कोई राजनैतिक दल नही बल्कि ये देश के विभाजन की जिम्मेदार #मुस्लिम_लीग का आधुनिक संस्करण है…राष्ट्रविरोधी तत्वो का मंच है…PFI और उसके पॉलिटिकल विंग SDPI वाली विचारधारा का ही एक अंग है….जिसकी मंशा एक और विभाजन करने की है…तभी तो बंटवारे के समय ये रोके गये और हमारी धरती पर एक उद्देश्य से रूके है….हमारी कमजोरी के कारण अब ये कहने लगे हैं कि हम किरायेदार नही बल्की भागीदार हैं…हमारा भी खून यहां की मिट्टी मे शामिल है….जिस पर सेकुलर दोगले ताली पीटते हैं…..!!
फिर कह रहा हूं कि सजग रहिये इनके अलतकिया वाले भ्रमजाल से कि कुछ अच्छे हरे टिड्डे भी होते हैं…कोई अच्छा नही होता है…सब कई ग्रुपों मे बेहद संगठित तरीके से बंटे है…एक मैदान मे उतरता है…दूसरा उसको धन और ताकत से समर्थन करता है…तीसरा उसका बचाव मुमह मे चाशनी घोल कर करता है…बस इसी पर सूतिये हिंदू लहालोट हो जाते हैं…यह इनके देशद्रोही मानसिकता के साथ हिंदू विनाश की बिछाई गई बिसात है…यह मै पूरे भरोसे से कह रहा हूं…साथ ही यह भी कह रहा हूं कि चाहे पाकिस्तान की ISI हो…या अलकायदा हो…या तालिबान हो….या फिर हमारे देश मे मवेशी,कादरी,रहमानी जैसे अनेक दीमक हो जो बिल बना कर रह रहे हैं….बाहर चाहे जितना जूतम पैजार करें…लेकिन अंदरखाने मे ये सब मजहब के नाम पर एक ही हैं…इन सबका लक्ष्य,उद्देश्य,मंतव्य,मंशा और सोच एक ही है…और वो है गजवाये हिंद…….जो काम सदियों से उनके धर्मांतरित पुरखे नही कर पाये उस ख्वाब को पूरा करना ही इन पंचर पूतों की सोच है….बाकी टीवी पर बेसिरपैर की बहस करने वाले दो कौड़ी के उनके चिलगोजे तो सनातन विरोधी उस विचार या मानसिकता का प्यादे भर है जो मोदीराज मे मुस्लिम प्रताडना का चेहरा बन कर अपने को दीन हीन और कमजोर हो रहे मजहब का चेहरा बनाकर योजनाबद्ध तरीके से सुर्खियां बटोर कर सरकार को बदनाम करना चाहते है…वन्देमातरम नही कहने का,राष्ट्रगान पर न खड़ा होना,प्रभू राम के मंदिर का विरोध करना तो केवल बहाना है…इस पर सवाल पूछने पर मजहब को खतरे मे आ जाने की बात करना….फंसने पर विक्टिम कार्ड खेलना….ये सब एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है…..!!!!
दरअसल यह सब मजहबी साजिश केवल #कांगी और #वामपंथ की जयचंदी मानसिकता की तुष्टीकरण के कारण पनप पाई है……..यह भी वैचारिक रूप से विकलांग हो चुके विपक्ष द्वारा पर्दे के पीछे किये जाने वाला एक बड़ा षडयन्त्र है…जिसका मूल लक्ष्य जनता के अंदर राष्ट्रवाद की बढती मुहिम को थामना है…और मोदी पर लगाम लगाना है…क्योंकि सनातन राष्ट्रवाद की विचारधारा से इन सबका मूल लक्ष्य बाधित हो रहा है….इसीलिये ये कौम और इसके संरक्षण दाता यानी खद्दरधारी बगुले व्याकुल,बेचैन और हताश है….!!
1882 मे आनन्दमठ अर्थात वन्देमातरम की रचना हुई…..1896 मे टैगोरजी ने इसे स्वर दिया,
मार्च 1938 तक किसी ने वंदेमातरम् का विरोध नही किया…कहने का मतलब कि इतने साल तक वंदेमातरम्….शब्द से किसी के मुंह और तशरीफ मे सूजन नही आई….वास्तव मे वन्देमातरम,बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा लिखे गये #आनन्द_मठ मे अत्याचारो से पीडित,राष्ट्र की सोई हुई चेतना को जगाने के लिये लिखी गई कालजयी काव्य रचना है..!
1938 मे मुस्लिम लीग की साजिश से जिन्ना ने घोषणा की कि वन्देमातरम गाना इस्लाम विरोधी है…बस तब से कौवा कान ले गया सुन कर मजहबी टिड्डे कौवे के पीछे भागे पडे है…कहते हैं कि अल्लाह के सिवा किसी की पूजा हराम है,जबकि विश्व के 21 मुस्लिम देशों के राष्ट्रगीत मे वहां की धरती को पूजा गया है,वहां कोई विवाद नही….वंदेमातरम् का भी मतलब तो मातृभूमि की वंदना ही तो है…फिर उससे परहेज क्यों….दरअसल यह कौम कभी भारत को मातृभूमि माना नही है….वो तलवार के दम पर धर्मांतरित है,यह भूल कर……….वो तो उस रेगिस्तान की धरती को अपना मानता है…जहां के लोग यहां के मुसुरमानो को हेय और तुच्छ नजरों से देखते हैं…..!!
फिलहाल, विरोध का असली कारण जान लीजिये..वन्देमातरम गीत के शब्द नही है,वरन् रचना का कारण और साजिशो की वो परिस्थितियां है..जिससे भारत को इस्लामी मुल्क बनाने का षडयंत्र बर्बाद होता दिखने लगा….!!
…मैं भी #आनंद_मठ को पढ़कर समझा कि मुस्लिम विरोध का असल कारण आनंदमठ उपन्यास स्वयं है, जो कि हिन्दू सन्यासियों द्वारा मुस्लिम साम्राज्य मे शासकों के अत्याचार और गुलामी से आजादी के लिए लड़ाई की कहानी है, यह अंग्रेजों से लड़ाई की नहीं है (यह बात कांग्रेस और कम्युनिस्टों के नेता और उनके पेड इतिहासकार कभी नही बताते है)
…..और मुस्लिम अत्याचार से आजादी के लिए लिखे गए उपन्यास का एक गीत जब देश के हर क्रांतिकारी के जुबान पे चढ़ने के बाद आज राष्ट्रगीत भी बन जाये….जिसके लिखे जाने का कारण भी विधर्मी बर्बरता हो तो मुसलमान ऐसे गीत का विरोध तो करेंगे ही….. उस गीत का विरोध करेंगे ही जो मुस्लिम साम्राज्य को भारत से उखाड़ फेंकने का प्रतीक चिन्ह बन चुका हो।
……आनंदमठ के विश्लेषण में एक बात कहना चाहूंगा कि यदि आपने दुनिया की सारी किताबे पढ ली हो…किन्तु #आनन्द_मठ और रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखी गई #संस्कृति_के_चार_अध्याय नही पढा तो सनातन की पीडा और राष्ट्रवाद के विषय मे कुछ नही पढा..जरा सोचिये केवल एक शब्द #वन्देमातरम अपने आपमे कितना शक्तिशाली है जिसको सुनकर भूतकाल मे अंग्रेजो के साथ साथ, वर्तमान काल के कुटिल मजहबी दंभियों का दम ही नही निकल जाता है..वरन् तत्काल ही अमन पसंदो का अस्तित्व खतरे मे आ जाता हो…तो सोचिये ऐसे राष्ट्रगीत को गुनगुनाने मे हमारा स्वाभिमान,आत्मसम्मान,आत्मगौरव कितना हर्षित होता है..कुल मिलाकर समझिये कि किसी का काला चिट्ठा खोलने पर जोर देंगे तो वो बिलबिलायेगा ही..बस भगवा और वन्देमातरम के विरोध का यही कारण और आधार है!!!!!!!!!!
मेरा तो मानना है कि हम सबको तो आत्मगौरव और राष्ट्राभिमान को ध्यान मे रखते हुये चिंघाड और दहाड़ कर #वन्देमातरम का सिंघनाद करना चाहिये…जिससे देश और धर्म से चिढ़ने वाली काली ताकतो का कलेजा दहल जाये…!!
#वन्देमातरम्
#Ajit_Singh
साभार:अजीत सिंह-(ये लेखक के अपने विचार हैं)