वात्स्यायन के कामसूत्र, कामशास्त्र, हिन्दू धर्म तथा इस्लाम का विश्लेशण।
खजुराहो में जो नग्न मूर्तियां हैं वह क्यों है?
Positive India:
इस्लाम में एक बात है कि वह अपने बच्चों को मजहबी शिक्षा जरूर देते हैं अगर गरीब मुस्लिम है तब वह मदरसे में भेजेगा अगर पैसे वाला मुस्लिम है तब वह घर पर ही मुफ्ती को बुलाकर अपने बच्चों को कुरान और मजहब का ज्ञान देता है
लेकिन हम हिंदू अपने बच्चों को हिंदू धर्म के बारे में ज्ञान नहीं देते हैं इसलिए ऐसे मूर्ख लोग अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते रहते हैं !!
खजुराहो में जो नग्न मूर्तियां हैं वह क्यों है वह इन मूर्खों को नहीं पता।
खजुराहो के मंदिरों के बनाने के अलग-अलग कारण बताए जाते हैं। एक मत है कि ये मूर्तियां यहां अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के सिद्धांत का हिस्सा हैं। इस विषय में यह भी कहा जाता है कि ये प्रतिमाएं भक्तों के संयम की परीक्षा का माध्यम हैं। मोक्ष के कई मार्गों में से एक है काम। सनातन हिन्दू धर्म ने जिंदगी को 4 पुरुषार्थों के हवाले किया है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। एक-एक सीढ़ी और एक-एक सफलता और इन चारों पुरुषार्थों का समन्वय है खजुराहो के मंदिरों में।
उक्त काल में बौद्ध धर्म के प्रभाव के चलते गृहस्थ धर्म से विमुख होकर अधिकतर युवा ब्रह्मचर्य और सन्यास की ओर अग्रसर हो रहे थे। उन्हें पुन: गृहस्थ धर्म के प्रति आसक्त करने के लिए ही देशभर में इस तरह के मंदिर बनाए गए और उनके माध्यम से यह दर्शाया गया की गृहस्थ रहकर भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
कोणार्क, पुरी, खजुराहो- इन मंदिरों की दीवारों पर मैथुन-मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों का संदेश है कि संसार मैथुनमय है। संसार में मन्मथ भाव की प्रधानता है। यह द्वैत में अद्वैत का आनंद देती है। हिन्दू धर्म में काम को कामदेव और कामेश्वर माना गया है।
धर्म के अनुसार काम करते हुए अर्थोपार्जन और कामोपभोग के बाद मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने की अवस्था आती है। प्राचीन हिन्दू परंपरा के वाहक ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में भी काम के प्रति अनेक प्रकार के रुझानों के दर्शन होते हैं। अपनी मूल प्रकृति में हिन्दू धर्म और परंपरा वर्जनावादी नहीं है।
हिन्दू जीवन-दर्शन में काम की भूमिका एवं उसके महत्व को सहज भाव से स्वीकारा गया है। उसे न तो गोपनीय रखा गया और न ही वर्जित करार दिया गया। इतनी महत्वपूर्ण बात, जिससे सृष्टि जन्मती और मर जाती है, से कैसे बचा जा सकता है? इसीलिए धर्म और अर्थ के बाद काम और मोक्ष का महत्व है।
वात्स्यायन के कामसूत्र का आधार भी प्राचीन कामशास्त्र और तंत्रसूत्र है। शास्त्रों के अनुसार संभोग भी मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन हो सकता है, लेकिन यह बात सिर्फ उन लोगों पर लागू होती है, जो सच में ही मुमुक्षु हैं।
प्रश्नोपनिषद कहता है कि काम के बिना जीवन नहीं है। कामतृप्ति मनुष्य की स्वाभाविक कर्म पशुवृत्ति है। बार्हस्पत्य सूत्र में लिखा है- ‘काम एवैकः पुरुषार्थः’। मनुष्य के मन में कामवृत्ति है और कामतृप्ति के उपाय ढूंढने की उसकी प्रवृत्ति है। मनुस्मृति साफ-साफ कहती है- ‘न मांस भक्षणे दोषो, न मद्ये न च मैथुने’। मतलब यह है कि मांस, मदिरा और मैथुन में कोई दोष नहीं है। यह मनुष्य की प्रवृत्ति है। ‘प्रवृत्ति ऐशा भूतानाम्’। हमारी परंपरा कहती है कि मनुष्य अपनी स्वाभाविक वृत्ति का पालन करते हुए उससे ऊपर उठ जाता है। लेकिन वे लोग इसके अधिकारी नहीं हैं जिनमें संकल्प और संयम नहीं है जिन्होंने यम और नियम को नहीं समझा है और जिन्होंने योग के चित्त वृत्ति निरोध: को नहीं जाना है।
साभार:सुजीत तिवारी-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)