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पांच करोड़ रुपए दिलाने की बिना पर रोहित सरदाना की मृत्यु के जले पर पूरे दिल से नमक छिड़का है रवीश कुमार ने भी

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Positive India:Dayanand Pandey:
मोदी विरोध की आग में जलते हुए अपनी रौशनी फेंकते हुए एक जुगनू रवीश कुमार भी रोहित सरदाना की मृत्यु पर जले पर नमक छिड़कने से बाज नहीं आए हैं। रोहित सरदाना के परिवार को पांच करोड़ रुपए दिलाने की बिना पर पूरे दिल से नमक छिड़का है रवीश कुमार ने। और प्रकारांतर से बताने की कोशिश ही नहीं की है , पूरी स्थापना दी है कि रोहित सरदाना और कुछ नहीं , मोदी के कुत्ते थे। बस यह शब्द कुत्ता नहीं इस्तेमाल किया है। बाक़ी निहितार्थ यही है। कुल मिला कर रोहित सरदाना की मृत्यु पर सारा जश्न ही मोदी वार्ड के मरीज ही मना रहे हैं। अलाने , फलाने से लगायत रवीश कुमार तक। रवीश कुमार रोहित सरदाना को ‘ सरकार का पत्रकार ‘ बताते हुए लिखते हैं :

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रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि। उनके परिवार के बारे में सोच रहा हूँ। कैसे उबरेगा इस हादसे और ऐसे हादसे से भला कौन उबर पाता है। भारत सरकार से माँग करूँगा कि रोहित के परिवार को पाँच करोड़ का चेक दे और वो भी तुरंत ताकि उसके परिवार को किसी तरह की दिक़्क़त न आए। सरकार को अपने पत्रकारों की मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। आज तक में रोहित के सहयोगियों को इस दुखद ख़बर को सहने की ताक़त मिले।

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अब देखिए कि किस तरह सोने के बर्क में लपेट कर अपनी नफरत के नमक को रवीश छिड़कते हैं। और लिखते हैं कि , ‘ सरकार को अपने पत्रकारों की मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। ‘ गरज यह कि बकौल रवीश कुमार रोहित सरदाना आज तक में एंकर भले थे पर पत्रकार सरकार के थे। क्या नैरेटिव है। 2 – 75 करोड़ सालाना पैकेज पर आज तक ने फालतू ही रखा था। इसी बिना पर अगर रवीश कुमार से पूछा जाए अगर रोहित सरदाना सरकार के पत्रकार हैं तो क्या आप सोनिया और राहुल गांधी के पत्रकार हैं ? तो वह क्या जवाब देंगे कि हां ! अरे सोनिया , राहुल की चाटुकारिता में अगर कुछ नया करना ही है तो सीधे नरेंद्र पर हमला बोलिए। यह क्या कि जिस रोहित सरदाना की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई हो , उस लाश का बहाना लेना पड़े। गोदी मीडिया शब्द क्या कम पड़ रहा था जो गिद्धों की तरह रोहित सरदाना की मृत्यु को हथियार बनाना पड़ रहा है। फिर रवीश कोई अकेले जुगनू नहीं हैं। ऐसे जुगनुओं का एक पूरा गुच्छा है , जो सूर्य की रौशनी से मुकाबला करने के लिए निरंतर जल और बुझ रहा है। फुदक रहा है। किसी की मृत्यु , किसी की लाश का सहारा ही सही।

सोचिए कि अपने एजेंडे के लिए , अपने जहर को सींचने के लिए , अपनी नफ़रत को नागफनी में बदलने के लिए आप को एक मृत आदमी का सहारा लेना पड़ रहा है। रवीश कुमार द्वारा रोहित सरदाना पर लिखे श्रद्धांजलि लेख में यही एक कोढ़ नहीं है। कोढ़ और नफरत का एक प्राचीर सिलसिलेवार है। बस समर अनार्य और रवीश कुमार के लिखे में फर्क मात्र इतना है कि रवीश कुमार इनडाइरेक्ट स्पीच में हैं और अनार्य डायरेक्ट स्पीच में हैं। एजेंडा और एप्रोच लेकिन एक ही है। एक नंगा हो कर कह रहा है , एक कपडे पहन कर वही बात कह रहा है , जो नंगा आदमी कह रहा है। समर अनार्य लिख रहे हैं कि ‘ मर जाएं हरामखोर। हत्यारे बाप की औलादें हैं। रहे तो मुश्किल ही करेंगे। ‘ यहां हत्यारा है रोहित सरदाना। और हरामखोर औलादें , रोहित की दो नन्ही बेटियां हैं। रवीश भी काम यही कर रहे हैं। बस अपनी नफरत और एजेंडे को सोने के बर्क में सजा दिया है। और हां , साथ में समर अनार्य जैसों के जश्न पर तंज भी है , नागफनी में लपेट कर। क्या अदा , क्या अंदाज़ है रवीश कुमार का। बस भाषा की मिट्टी अलग-अलग है। भाषा के रेशम और रेशे से मैं भी थोड़ा बहुत परिचित हूं। सो इस की यह तासीर भी खूब समझता हूं। और उस की खुशबू भी। रवीश लिखते हैं :

नोट- जो लोग रोहित के निधन पर अनाप-शनाप कहीं भी लिख रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि फ़र्ज़ इंसान होने का है। और यह फ़र्ज़ किसी शर्त पर आधारित नहीं है। तो इंसान बनिए। अभी भाषा में मानवता और इंसानियत लाइये। इतनी सी बात अगर नहीं समझ सकते तो अफ़सोस।

आप कोई विद्यार्थी तो हैं नहीं , न मैं कोई अध्यापक । जो आप को रवीश के लिखे का भावार्थ समझाऊं। लीजिए रवीश के लिखे में उन के निहितार्थ आप सीधे पढ़ कर , सीधे खुद-ब-खुद निकाल लीजिए :

आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की ख़बर से स्तब्ध हूँ। कभी मिला नहीं लेकिन टीवी पर देख कर ही अंदाज़ा होता रहा कि शारीरिक रुप से फ़िट नौजवान हैं। मैं अभी भी सोच रहा हूँ कि इतने फ़िट इंसान के साथ ऐसी स्थिति क्यों आई। डॉक्टरों ने किस स्तर पर क्या दवा दी? उनके बुख़ार या अन्य लक्षणों पर किस तरह से मॉनिटर किया गया ? मेरा मन नहीं मान रहा। मैं नहीं कहना चाहूँगा कि लापरवाही हुई होगी। मगर कुछ चूक हो सकती है। यह सवाल मैं केवल रोहित के लिए नहीं कर रहा हूँ, मैं अब भी इस सवाल से जूझ रहा हूँ कि घरेलु स्तर पर डॉक्टर लोग क्या इलाज कर रहे हैं जिससे मरीज़ इतनी बड़ी संख्या में अस्पताल जा रहे हैं और वहाँ भी स्थिति बिगड़ रही है। इसे लेकर एक लंबा सा पोस्ट भी लिखा था। इस सवाल का उत्तर खोज रहा हूँ। कई जगहों से डाक्टरों के बनाए व्हाट्स एप फार्वर्ड आ जा रहे हैं। जिनमें कई दवाओं के नाम होते हैं। मैं डाक्टर नहीं हूँ। लेकिन कोविड से गुज़रते हुए जो ख़ुद अनुभव किया है कि उससे लगता है कि डाक्टर सही समय पर ज़रूरी दवा नहीं दे रहे हैं। व्हाट्एस फार्वर्ड और कई डॉक्टरों की पर्ची देख कर एक अंदाज़ा होता है कि सही दवा तो लिखी ही नहीं गई है।

इसलिए मैंने एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव दिया था जहां देश भर से रैंडम प्रेसक्रिप्शन और मरीज़ के बुख़ार के डिटेल को लेकर अध्ययन किया जाता और अगर इस दौरान कोई चूक हो रही है तो उसे ठीक किया जाता। मैं रोहित के निधन से स्तब्धता के बीच इन सवालों से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहा हूँ। बात भरोसे के डाक्टर की नहीं है और न नहीं डाक्टर के अच्छे बुरे की है। बात है इस सवाल का जवाब खोजने की कि क्यों इतनी बड़ी संख्या में मरीज़ों को अस्पताल जाने की नौबत आ रही है?

कई लोग लिख रहे हैं कि आज तक ने रोहित सरदाना के निधन की ख़बर की पट्टी तुरंत नहीं चलाई। मेरे ख़्याल से इस विषय को महत्व नहीं देना चाहिए। आप सोचिए जिस न्यूज़ रूम में यह ख़बर पहुँची होगी, बम की तरह धमाका हुआ होगा। उनके सहयोगी साथी सबके होश उड़ गए होंगे। सबके हाथ-पांव काँप रहे होंगे। आप बस यही कल्पना कर लीजिए तो बात समझ आ जाएगी। दूसरा, यह भी मुमकिन है कि रोहित के परिवार में कई बुजुर्ग हों। उन्हें सूचना अपने समय के हिसाब से दी जानी है। अगर आप उसे न्यूज़ चैनल के ज़रिए ब्रेक कर देंगे तो उनके परिवार पर क्या गुज़रेगी। तो कई बार ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं। इसके अलावा और कोई बात हो तो वहाँ न्यूज़ रूम में खड़े उनके सहयोगी सच का सामना कर रही रहे होंगे। बात भले बाहर न आए, उनकी आँखों के सामने से तो गुज़र ही रही होगी।

ख़बर बहुत दुखद है। कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई। सूचना प्रसारण मंत्रालय उन पत्रकारों के बारे में कभी ट्विट नहीं करता। आप बताइये कि कितने पत्रकार देश भर में मर गए, सूचना प्रसारण मंत्री ने उन्हें लेकर कुछ कहा। उन्हें हर वक़्त प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से फ़ुरसत नहीं है। इस देश में एक ही काम है। लोग मर जाएँ लेकिन मोदी जी की छवि चमकती रहे। आप लोग भी अपने घर में मोदी जी के बीस बीस फ़ोटो लगा लें। रोज़ साफ़ करते रहें ताकि उनका फ़ोटो चमकता रहे। उसे ट्वीट कीजिए ताकि उन्हें कुछ सुकून हो सके कि मेरी छवि घर घर में चमकाई जा रही है।

आम लोगों की भी जान चली गई । प्रभावशाली लोगों को अस्पताल नहीं मिला। आक्सीजन नहीं मिला। वेंटिलेटर बेड नहीं मिला। आप मानें या न मानें इस सरकार ने सबको फँसा दिया है। आप इनकी चुनावी जीत की घंटी गले में बांध कर घूमते रहिए। कमेंट बाक्स में आकर मुझे गाली देते रहिए लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता है। लिखने पर केस कर देने और पुलिस भेज देने की नौबत इसलिए आ रही है कि सच भयावह रुप ले चुका है। जो लोग इस तरह की कार्रवाई के साथ हैं वो इंसानियत के साथ नहीं हैं।

इस देश को झूठ से बचाइये। ख़ुद को झूठ से बचाइये। जब तक आप झूठ से बाहर नहीं आएँगे लोगों की जान नहीं बचा पाएँगे। अब देर से भी देर हो चुकी है। धर्म हमेशा राजनीति का सत्यानाश कर देता है और उससे बने राजनीतिक समाज का भी। ऐसे राजनीतिक धार्मिक समाज में तर्क और तथ्य को समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसलिए व्हाट्एस ग्रुप में रिश्तेदार अब भी सरकार का बचाव कर रहे हैं। जबकि उन्हें सवाल करना चाहिए था। अगर वे समर्थक होकर दबाव बनाते तो सरकार कुछ करने के लिए मजबूर होती।

अब भी सरकार की तरफ़ से फोटोबाज़ी हो रही है। अगर उससे किसी की जान बच जाती है तो मुझे बता दीजिए। जान नहीं बची। आँकड़ों को छिपा लीजिए। मत छापिए। मत छपने दीजिए। बहुत बहादुरी का काम है। बधाई। आप सबको डरा देते हैं और सब आपसे डर जाते हैं। कितनी अच्छी खूबी है सरकार की। घर- घर में लोगों की जान गई है वो जानते हैं कि कब कौन और कैसे मरा है।

रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि। उनके परिवार के बारे में सोच रहा हूँ। कैसे उबरेगा इस हादसे और ऐसे हादसे से भला कौन उबर पाता है। भारत सरकार से माँग करूँगा कि रोहित के परिवार को पाँच करोड़ का चेक दे और वो भी तुरंत ताकि उसके परिवार को किसी तरह की दिक़्क़त न आए।सरकार को अपने पत्रकारों की मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। आज तक में रोहित के सहयोगियों को इस दुखद ख़बर को सहने की ताक़त मिले।

रवीश कुमार

नोट- जो लोग रोहित के निधन पर अनाप-शनाप कहीं भी लिख रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि फ़र्ज़ इंसान होने का है। और यह फ़र्ज़ किसी शर्त पर आधारित नहीं है। तो इंसान बनिए। अभी भाषा में मानवता और इंसानियत लाइये। इतनी सी बात अगर नहीं समझ सकते तो अफ़सोस।
©Ravish Kumar
साभार:दयानंद पांडेय-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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