समाचार पत्र तथा उस में छपने वाले विज्ञापनों के योगदान का विश्लेषण
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
समाचार पत्र की भूमिका आज हमारे जीवन का एक अंग बन गई है । जिस दिन समाचार पत्रों की छुट्टी रहती है, तो उस दिन इसकी काफी कमी खलती है । पूरा दिन अनमना सा और खाली खाली लगता है । ऐसा भी नहीं है कि लोगों को और दूसरे माध्यम से समाचार नहीं मिल रहे है । पर समाचार पढ़ने के बाद जो संतुष्टि मिलती हैं वो कई बार समाचार देखने सुनने में नही मिलती । कुल मिलाकर यह भी चाय जैसे ही एक नशा है । वैसे भी सबेरे सबेरे चाय पीते पीते समाचार पत्रों के पढ़ने में एक अलग ही आनंद है । मेरे विचार से यह क्षण व पल दिन भर का सबसे अच्छा समय रहता है ।
इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि स्वतंत्रता के आंदोलन में इनकी महती भूमिका थी । स्व.बाल गंगाधर तिलक का स्वातंत्र्य आंदोलन में उनके समाचार पत्र “केसरी” की अहम भूमिका रही है । समय बदला, फिर लक्ष्य भी बदल गए । समाचार पत्रों ने आजादी के कुछ समय तक अपनी भूमिका समाज में जागरूकता लाने के प्रयासों में किया । इसमे सफल भी रहे ।
लोगों में जो आज जागरूकता दिखती हैं, इसमें समाचार पत्रों का बहुत बड़ा योगदान है। लोग समाचार पत्र पढ़ सके, इसकी हसरत हर एक गाँव के आदमी की रहती थी । इसलिए कुछ समय पहले तक, एक दो पेपरों से ही पूरा गांव पूरा समाचार जान जाता था । समाचार पत्रों की वजह से कई छोटे जगह के पत्रकार, जब राजनीति में आए तो सफल भी हुए हैं; मंत्री भी बने है ।
फिर विषय पर, जब आज मैंने सुबह समाचार पत्र उठाया तो दोनो समाचार पत्र एक जैसे होने के कारण मुझे ऐसा लगा कि धोखे से हाकर ने एक ही समाचार पत्र डाल दिया होगा । पर जब मैंने ध्यान से देखा, तो समाचार पत्र तो अलग थे, पर मजमून एक था । सहसा मुझे याद आया, जैसे बचपन में किसी परिवार में एक ही तरह के पूरे बच्चों के कपड़े सिलवा दिये जाते थे । या फिर स्कूल के बच्चों का एक ही ड्रेस ! वैसे ही आज समाचार पत्रों का भी ड्रेस एक जैसा हो गया । पेपर का लोगों में कितना विश्वास है कि लोग अपना भाग्य का कालम पढ़ने से नही चूकते । कुछ लोग तो अपना भाग्य देखकर काम करते है । यह विश्वास उस पाठक का है, जिसका अहसास किसी भी समाचारपत्र चलाने वालो को नहीं है । वो भावनात्मक रूप से काम नहीं करते, वो उसे व्यवसायिक रूप मे काम मे लेते है । इन्हे पाठको से तब तक मतलब रहता है जबतक यह पाठक उन्हे नंबर वन बनने तक काम आता है । स्थिति ऐसी है इनके हर समाचार व विज्ञापन इनके लिए अंतिम सत्य होता है ।
उस बंदे को यह नहीं मालूम रहता कि समचार पत्र व्यापार है, इसे उधोगपति अपने विचार धारा के अनुसार चलाते हैं । इसलिए एक समाचार पत्र ने दिल्ली दंगो मे अपने मुखपृष्ठ मे खिड़की से झांकती बच्चे का फोटो छापा तो जागरूक पाठकों को यह समझते देर नहीं लगी कि उक्त समाचार पत्र दिल्ली दंगो की ग्राउंड रिपोर्ट कैसे देने वाला है । यहीं पर पता चलता है कि यह समाचार पत्र किस विचार धारा का प्रतिनिधित्व करते है ।
आज मै इस पर लिख ही रहा हूँ तो पूरे परिपेक्ष्य को प्रस्तुत करने की कोशिश करूँगा । मै उन दो विज्ञापनों को नहीं भूल पाता जो हर समय मुझे उद्वेलित करते हैं । वहीं यह भी महसूस होता है कि समाचार पत्रों में जो संजीदगी होनी चाहिए, उसका नितांत अभाव है । पहला वो विज्ञापन जो एक धर्म विशेष की सभा के लिए था, इस पर भी कोई आपत्ति नहीं । पर जो विज्ञापन दिया गया वह यह था कि अंधे देखने लगेंगे, वहीं लंगडे दौड़ने लगेंगे । इस पर नगर के चिकित्सकों ने विरोध भी किया था । हालात तो ये थे एक शिक्षित परिवार भी अपने यहां लकवा प्रभावित को इसी आशा के साथ ले जाना चाहते थे । मेरे से पूछा तो मैंने मना भी किया । इसके बाद भी कई तकलीफो के साथ और विश्वास के साथ, उस लकवा ग्रस्त को वहाँ ले गये, पर निराशा ही हाथ लगी ।
पता नहीं उस दिन अच्छे होने की लालसा में कितने लोग पहुंचे होंगें। किसी के शारीरिक अपंगता के साथ तो भद्दा मजाक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है। इसे कहते हैं विज्ञापन देकर खुलेआम विश्वासघात करना । उस विज्ञापन से जो भी राशि मिली हो, पर वो किस कीमत पर ?
हमारे देश की खासियत है कि यहां के लोग शिकायत करने से बचते है। उनका सोचना यह है कि कौन झंझट मोल ले । इसी सोच के चलते इनका बार बार उपयोग किया जाता है ।
दूसरा विज्ञापन मेरे को हर समय सालते रहता है। वो है चुनाव जीतने के बाद, जोश मे आकर जो विज्ञापन दिया, भले ही देने की मंशा नहीं रही हो; पर विज्ञापन का मतलब कुछ और कहता है । मै इस विज्ञापन की चर्चा भी नहीं कर सकता, क्योकि यह निहायत ही गैर जिम्मेदाराना है । इससे लोगों की भावनाऐ आहत होगी। विज्ञापन विभाग में बैठे लोगों की यह महती जिम्मेदारी है । दुख इस बात का है कि यह एक आध पेपर मे आता तो कोई बात नहीं, पर अंचल के सभी पेपर वैसे ही रंगे मिलते है,तो सिर्फ अफसोस व्यक्त करने के सिवाय क्या किया जाए?
मुझे उन विज्ञापनों से डर लगता है जो लखपति बनाने का, सभी रोगों के इलाज का, और सुनहरे भविष्य के ज्योतिष परामर्श के बारे में बताता है। इससे पाठको को नुकसान हो या लाभ अपने बला से । वहीं इस क्षेत्र मे काम करने वालो की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती । इसमे वही पत्रकार साधन संपन्न होते हैं, जिनके बारे मे सब लोग जानते है । यह बात जरुर है कि ये लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर हमारे लिए समाचार लाते है । पर कुछ सालो से देखने में आ रहा है यह समाचार पत्र पाठको को आकर्षित करने के लिए उपहार ला रहे हैं । यह इनके क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा का ही परिणाम है । चलो इससे ग्राहकों का फायदा होता है । बस इतना ही
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)