Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
मै फेसबुक पर लगातार करीब करीब सभी विषयों पर अपनी राय रख रहा हू । पर मै हर प्रतिक्रिया का स्वागत भी करता हू । हम जैसे लेखक किसी भी पार्टी के लिए प्रतिबद्ध नही है । हमारी कोशिश रहती है कि हम सच के साथ रहे । इसलिए हम लोग दल व नेताओ के कार्यो को देखकर ही, अगर प्रथम दृष्टया नजर में गलत है, तो आलोचना करते हैं। वहीं उनके अच्छे काम की तारीफ कर बधाई देते है । भले ही वो किसी भी दल का हो । हमारा पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ काम पर ही आधारित रहता है ।
पर हमारी निष्पक्ष विवेचना भी कई लोगों के गले नही उतरती है । इसका भी हमे कोई दुख नही रहता क्योकि जरूरी नही कि लोग हमारे विचारों से सहमत ही हो । यह उनका व्यक्तिगत मामला है । जितने लोग भी लिखते हैं वो इस हालात के लिए भी तैयार रहते हैं। स्वस्थ आलोचना से खुशी भी होती है और उसका स्वागत भी करते हैं ।
पर जब मै राजनीतिक दलो के कार्यकर्ताओ का देखता हूँ तो महसूस होता है कि वे पार्टी लाइन से हटना ही नही चाहते। यह उनके लिए लक्ष्मण रेखा रहती हैं, जिसे वो चाहकर भी लांघ नही सकते । यही कारण है कि जब किसी को भी पार्टी की सदस्यता दी जाती हैं, तो गले मे पार्टी का गमछा पहना कर स्वागत किया जाता है । अप्रत्यक्ष रूप से असल मे यह गमछा नही पट्टा होता है, जो पार्टी के सभी नियमो से बांधकर रखता है । यही कारण है कि ये लोग पार्टी और नेताओं की आलोचना और दूसरी पार्टी के नेताओं की प्रशंसा को बर्दाश्त नही कर पाते हैं ।
मेरे विचार से कार्यकर्ताओं को अच्छे शब्दों मे जवाब देकर अपने दल व अपनी गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी होनी चाहिए । इनका आचरण इनके पार्टी की गरिमा को बनाये रखता है । आज सभी दलों के कार्यकर्ताओं के आचरण से कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा है । चलो पुनः विषय पर आया जाए । कोई जरूरी नहीं कि हर नेता हर समय अच्छा काम करे। इस देश के लोकतंत्र में आपको हजारों इसके उदाहरण मिल जायेंगे ।
इतिहास साक्षी है, महात्मा गांधी को भी देश के दो टुकड़े के निर्णय पर न चाहकर भी सहमति तो देनी ही पड़ी । फिर विषय पर, मै, अगर केंद्र सरकार के निर्णय की प्रशंसा करता हूं, उस समय मैं एक आम आदमी के दृष्टिकोण की बात करता हू, जो देश महसूस करता है । उस समय केंद्र वाला दल स्वागत करते हैं, तो विपक्षी दल अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए मज़म्मत करते है । यही हाल राज्य सरकार का है। अगर राज्य के सरकार के निर्णय की प्रशंसा करते हैं, तो इसका उल्टा होता है, जो स्वाभाविक है ।
कोरोना जैसे मामले में आम आदमी को भी लगता है कि देश हित में इन दलों को एक होना चाहिए । पर राजनीति ऐसा करने नही देती । यहाँ तक भी ठीक है,इन सब की राजनीतिक प्रतिबद्धता है । पर किसी विषय मे, जिसमे यह भले सहमत न हो, पर यह जब प्रतिक्रिया देते हैं, तो इनका यह पूछना कि सामने वाले ने क्या दिया, राजनीति नहीं तो और क्या है? क्या हर आदमी बिकाऊ होता है ? इन दलों का क्या यही आचरण है ? क्या यह राजनीतिक दल जो खिलाफ लिखे या बोले उनके मुंह बंद कर देंगे ?
मेरा तो मानना यह है कि उपर के नेताओं को इससे दूर दूर तक लेना देना नही रहता । पर नीचे के पाये अपने दल की प्रतिबद्धता दिखाने के लिए ऐसा कुछ कर गुजर जाते है । जिससे दल के उपर भी गलत प्रभाव पड़ता है । दूसरी बात यह भी है कि हमारे लिखने को भी काफी गंभीरता से लिया जाता है । कारण जो भी हो, इस आचरण पर बंदिश लगनी चाहिए । पार्टियों को भी इन सब पर नजर रखनी चाहिए । कई बार ये कार्यकर्ता इन टिप्पणियों को अपने उपर ले लेते है , जो इनके द्वारा दिए गए उत्तर में दिख जाता है । कुल मिलाकर हमारे लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा होनी चाहिये । अगर आलोचना को सकारात्मक रूप से लिया जाए तो यह पार्टी और नेता के हित में ही होगा । शायद हर लिखने वाला इससे पीड़ित हैं । मै बहुत दिनों से लिखने की सोच रहा था और आज इसका मुहूर्त निकला । मै आशा करता हूँ कि इस पर गंभीरता से विचार किया जाएगा । बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)