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मैं विकास दुबे कानपुर वाला के एनकाउंटर का विश्लेषण

Encounter of Vikas Dubey Kanpurwala

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
उज्जैन के महाकाल के परिसर मे विकास दुबे जब पकड़ाया होगा, तो उसने सोचा भी नहीं होगा कि वो सिर्फ चंद घंटों का ही मेहमान है । उसकी वो तरकीब भी काम नहीं आई जिसे उसे कानून के जानकारों ने दी थी । “मै विकास दुबे, कानपुर वाला ” कहने से अपने आप को पकड़वाने के बाद जिंदा रहने की गारंटी मानी जा रही थी ।

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एक बात तय है, विकास दूबे का इस मुठभेड़ मे मारे जाने से करीब करीब सभी जगह खुशी का माहौल है । जब घर वाले ही अपनो से पल्ला झाड़ ले तो बाहर वाले तो बहुत दूर की बात है । पता नहीं जिंदा रहता तो कितना काम आता । क्योकि ये सब लोग पहुंचे हुए है । इनसे अगर बात कबूल भी करवा लेते तो कोर्ट में मुकर जाते । फिर राजनीति के वो शातिर खिलाड़ी जिनकी सांसे इस तोते मे फंसी है, वो सब इसके बचाव के लिए सामने आ जाते । कुल मिलाकर आगे की राह इतनी सुगम तो नहीं थी ।

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आम लोगों को अब न्याय तंत्र पर विश्वास खत्म हो गया है । लंबी चलने वाले प्रक्रिया में कब न्याय मिलेगा, कहना मुश्किल है । इसलिए जब एनकाउन्टर की खबर आई तो लोग खुश हो गये । लोगों को फिर लग रहा था कि कहीं साठ केस मे जमानत पाया हुआ विकास दूबे फिर 61वें मे भी जमानत पाने मे सफल न हो जाये ।

उल्लेखनीय है कि इस तरह के गैंगस्टर के तार बहुत दूर तक रहते है । यही कारण है कि इसने भी सोची समझी रणनीति के तहत आत्म समर्पण किया । वैसे विकास जैसे लोग अकेले नहीं रहते । इनके लिए एक लाॅबी काम करती है, जो कानूनी दांवपेच चलने में माहिर होती है। इन्हीं कानूनी दांव-पेंच के चलते इस तरह के शातिर व दुर्दांत अपराधी छूट जाते थे ।

एक तरफ एनकाउन्टर मे मारे जाने के बाद आम लोग जहां राहत की सांस लेते हैं तो दूसरी तरफ आम लोगों का गुस्सा उन नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स के प्रति फूट पड़ता है, जो ऐसे गैंगस्टर को पालते पोसते हैं । नेता,पुलिस तथा माफिया के इस गठजोड़ के प्रति भरा हुआ आम लोगों का गुस्सा सामने आ जाता है। लोग मिठाईयाँ बांटते है।

एनकाउंटर करने वाली पुलिस का , चाहे हैदराबाद हो या कानपुर, फूल मालाओ से लादकर स्वागत किया जाता है । ऐसा इसलिए, क्योंकि न्याय की लंबी चलने वाली प्रक्रिया से लोग उकता गये है । एक बात साफ है कि दूसरों को मारने वाले यह लोग अपनी मौत के समय मिमियाने से लगते हैं । उस दिन उन्हे मौत क्या होती है,उसका अहसास होता है।

अब वैज्ञानिक समय है, इसलिए जांच-पड़ताल में कोई तकलीफ़ नही होगी । मोबाइल के नंबर से जांच को दिशा मिल जायेगी । बैंक एकाउंट के लेन-देन से भी सबके कच्चे चिट्ठा खुलने लगेंगे । देखो यह जांच कहा तक जाती है और जांच की मांग करने वालो तक पहुंचती है कि नहीं । अब जैसे खबरें आ रही हैं कि एनकाउन्टर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की जा रही हैं । वैसे इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है । बस अपना विरोध और उपस्थिति दर्ज कराने का सिर्फ माध्यम है । हां, अब मानवाधिकार भी अपनी दुकान खोल लेंगे, क्योकि इन्हें अपराधियों और आतंकवादियों के मानवाधिकार व न्याय की कुछ ज्यादा ही चिंता रहती हैं । पर अब यह ट्रेंड बनते जा रहा है, जो चिंताजनक है ।

लोगों मे अब सब्र नहीं रह गया है। न्यायपालिका के प्रक्रिया में कितने साल निकल जायेंगे, पता नहीं, फिर कहीं छूट न जाए, यह भी एक संभावना बनी रहती है । कई बार इसके पक्ष मे बोलने वाले सही लगते है ।

मैंने देखा है कि ऐसे लोगों को, बिल्डरों को, जिन्हे न्याय पालिका का कोई खौफ नहीं है । इसलिए किसी की जमीन हड़प लो, फिर सामने वाला लड़ता रहे । अब न्यायालय को भी अपने कामों मे तेजी लानी होगी ताकि लोगों को महसूस हो कि न्याय मिल रहा है । एक समय पर इन्हे इंसाफ मिलना चाहिए ।

विकास दुबे के एनकाउन्टर से उन लोगों को भी काफी कमी महसूस होगी, जिनके काम वो निपटा दिया करता था । अब इस घटनाक्रम के बाद अगर कोई विकास बनने की भी सोच रहा होगा; तो पूरे गैंग का सफाया कैसे हुआ, यह उसके जेहन में भी होगा ।

योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार को इसके पीछे जितने लोग भी खड़े है, वो चाहे किसी भी दल के हो; उन्हे बेनकाब करने की आवश्यकता है । ये सफेदपोश लोगों का ही कॉकटेल है, जिसने विकास दुबे बनाया । इसके मारे जाने से लोग जहां संतुष्ट है वही शहीद पुलिस के परिवार वाले खुश है । शायद यही इंसाफ का तकाजा हो । बस इतना ही।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर ।

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