मोदी राज के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष की उपलब्धियों का विश्लेषण
भारत ने पीओके पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh: मोदी जी के दूसरे कार्यकाल मे यह पहला साल है । इस समय कोरोना का काल चल रहा है । इसीलिये सभी बातें नेपथ्य मे चले गए है । मोदी जी के दूसरे साल के पहली सालगिरह मे काफी वो काम हो गये है, जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती थी। सबसे पहले ट्रिपल तलाक का कानून पास करवाया । यह वह कानून था, जिसके लिए बुढ़ापे में शाहबानो सर्वोच्च न्यायालय तक की लड़ाई लड़ी, वहाँ उन्हे न्याय भी मिला । पर वो उनकी खुशी ज्यादा दिन नहीं था । उस समय कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी ने दबाव में आकर लोकसभा मे इस फैसले को निरस्त कर दिया ।
उल्लेखनीय है इसके विरोध मे अभी के केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने तब केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दिया । लंबे समय से चल रहे मुस्लिम महिलाओं के इस पर अंततः मोदी जी ने कानून बनाकर, उन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान कर, उनके अनिश्चितता के माहौल को खुशहाली की जिंदगी में बदल दिया ।
संसद मे वो दिन ऐतिहासिक था, पांच अगस्त को धारा 370 को समाप्त कर मोदी जी ने काश्मीर को इस धारा से मुक्त कर दिया । अब सही मायने मे काश्मीर भारत का अंग बना है । इस देश के लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि यह धारा कभी समाप्त होगी । काश्मीर के अलगाववादी नेताओं और वहां के क्षेत्रीय दलो की धमकियों के बाद भी, इस धारा को समाप्त कर, अपने घोषणापत्र में किये गए वादो को मोदी जी ने अमलीजामा पहनाया ।
उल्लेखनीय है कि काश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल कर वहां के दलो के मंसूबों पर ही पानी फेर दिया । काश्मीर के लेह और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील होने से, इनके पर ही कतर डाले गए हैं । इस मामले में इस देश का भारतीय गर्व कर रहा है । इस धारा के समाप्त होने पर पाकिस्तान में भी मातम पसरा हुआ है ।
विपक्ष जनमानस के आकांक्षाओं से परिचित नहीं है, ऐसा नहीं है । दुर्भाग्य से इस उपलब्धि का सेहरा मोदी जी को देने मे अभी भी उन्हे संकोच हो रहा है।
मोदी जी के छै साल की सबसे बडी उपलब्धि जो विगत पांच सौ सालों से लंबित थी,वह है राम मंदिर का निर्माण । मोदी जी ने सर्वोच्च न्यायालय के सहयोग के चलते राममंदिर का फैसला दिलवाकर एक बहुत बड़े समस्या का हल किया है । इस फैसले मे सभी की स्वीकार्यता ने इस फैसले को मान बढ़ा दिया । मोदी जी ने इस फैसले के बाद खुशी और जीत से परहेज करने को कहा, जिससे सांप्रदायिक सौहार्दता बनी रही । मोदी जी ने इस मुद्दे को बहुत अच्छे से सुलझाया जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र है ।
इसके बाद सीएए को भी संसद से पास करवाया गया । दूसरे मुल्कों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात थी, जिसका बहुत विरोध किया गया । शाहीन बाग में असंवैधानिक रूप से आंदोलन किया गया । सौ दिन चले आंदोलन का कुछ भी नतीजा नहीं निकला । इस बीच कोरोना के कारण आंदोलन को हटाना पड़ा ।
कोरोना से लड़ने के मामले मे भी लाॅकडाउन कर देश को अच्छे दिशा में ले जाने का प्रयास किया । इतने बड़े देश मे कोरोना से संक्रमित होने वाले की संख्या अभी भी कम है। मौत के आंकड़े भी दूसरे देश की तुलना में कम ही है ।
मोदी जी का व देश का दुर्भाग्य है कि वो कोरोना के समय भी राजनीति का शिकार हो गए । लाखों को खाना खिलाने का दंभ भरने वालो ने अपने राज्य की जो जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी उससे उन लोगों ने किनारा कर लिया । उनके मन में दहशत पैदा कर उन्हे उस राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने भाग्य पर छोड़ दिया । यही चाल दूसरे राज्यों ने भी चली । जिसका नतीजा यह हुआ कि मजदूरों को अपने ही संसाधनों से अपने घर लौटना पड़ा । अपना संसाधन मतलब ग्यारह नंबर की बस, मतलब पैदल ही चलने को मजबूर होना पड़ा । यही कारण है कि उनकी अकाल मृत्यु हुई । मौत चाहे रेल पटरियों पर हुई हो, क्या वहां की सरकारों की कोई जिम्मेदारी नहीं ? कुल मिलाकर यह देश कोरोना के मामले में राजनीति का शिकार हो गया ।
अगर राज्य सरकारें इमानदारी से लाॅकडाउन मे सहयोग देती तो अभी तक यह देश कोरोना के मामले में मुक्त हो जाता । कोरोना के मामले में, जो अभी विधवा विलाप कर रहे है,वे दिल से ये नही चाहते कि मोदी जी कोरोना के मामले में सफल हो । अगर सफल हो जाते, तो राजनीति के वनवास का डर था । इसलिए जितनी भी सरकारें है सबने हाथ खड़े कर लिए; और कोविड19 का संक्रमण पूरे देश में फैल गया । जो छत्तीसगढ़ कोरोना के मामले में दहाई के अंक मे था वो अब सैकडों मे तब्दील हो गया है ।
पुनः विषय पर आया जाये। देश की सीमाओं पर भी काफी तनाव चल रहा है । पाकिस्तान से तो तनाव तो कोई नयी बात नहीं । पर इस बीच, नेपाल ने भी अपने नक्शे में चीन के शह के चलते, भारत के भूभाग को भी अपना बताने की हिमाकत की।
भारत ने पीओके पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है, जिससे पाक मे हड़कम्प मचा हुआ है । अब लद्दाख में चीन सामने है । उसे भी डोकलाम याद ही है । इस मामले में भारत की सख्ती के चलते,चीन अब बात से मामले को हल करने की बात कर रहा है । अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए चीन भी इस बात को समझ रहा है । आने वाले दिनों में चीन वापस लौट जायें तो कोई बडी बात नहीं है । आने वाले दिनों में मै विदेश नीति पर लिखूंगा । बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)