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अमित शाह के तेवर से काश्मीर के अलगाववादियो में मची खलबली

काश्मीर के नेताओ मे घबराहट आने लगी है । चुनाव के पहले परिसीमन ने उनके होश अभी से उड़ा दिये है.

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
नये गृहमंत्री अमितशाह का असर अब दिखाई देने लगा है । काश्मीर के नेताओ मे घबराहट आने लगी है । वहीं चुनाव के पहले परिसीमन ने उनके होश अभी से उड़ा दिये है । उन्हे मालूम चल गया है कि पुराने दिन लद गये है । यही के अलगाववादी नेता थे जो सब अपराध करके भी शाही जिंदगी जी रहे थे । जिस थाली मे खा रहे थे उसी मे छेद कर रहे थे ,इसके बाद भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियो मे लिप्त थे । सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का? इसलिए वहा के एक नेता ने पाक जाकर आमरण अनशन करने की जुर्रत की । जब शासन ही लचर हो तो क्या कहने ? उन्हे मालूम था कितनी भी गुस्ताखियाँ कर लो कोई कुछ नही करने वाला है । काश्मीर मे कोई कुछ नही कर सकता पर ये महोदय लोग देश भर मे घूम घूम कर स्थायी संपत्ति बना सकते हैं । काश्मीर के लिए शहीद होने वाले के लिए तीन फुट की जगह भी नही मिलेगी, वहीं ये पूरे देश मे कही से भी चुनाव लड़ सकते हैं परन्तु अफसोस यहाँ का कोई भारतीय वहाँ चुनाव नही लड़ सकता । कुल मिलाकर हिंदुस्तान इनका है पर काश्मीर हमारा नही है। है भी तो सिर्फ वहाँ पर इस देश का संसाधन खर्च करने के लिए। कुल मिलाकर पूरा दोगलापन ही है जो विगत सात दशक से चालू था । हालात तो ये है कि इन अलगाववादियो को घाटी मे हिंदू भी नही चाहिए । यहाँ के मुस्लिम के लिए आंसू बहाते है। है हिम्मत कि इनको वहाँ का बाशिंदे बनाये । अगर ऐसा हुआ तो इनकी तथाकथित काश्मीरीयत खत्म हो जाएगी । मोदी जी के आने बाद इन सब मे लगाम लग गया है । पुरानी वाली स्वतंत्रता गये जमाने की बात हो गई है । अब अमित शाह के तेवर पूरे चुनाव के समय इस मुद्दे पर देश ने देख लिया है । इस देश का जनादेश भी मोदी जी को इसी मुद्दे के लिए मिला है । वहीं भाजपा का ये ऐजेंडा आज का नही भारतीय जनसंघ के समय का है । इसी मुद्दे पर स्वर्गीय श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जहा अपने प्राण गंवाये और शहीद हुए। ऐसे स्थिति मे भाजपा इस जनादेश की अवहेलना कैसे कर सकती है ? यही कारण है वहाँ के नेताओ के सुर बदल गये है। अब काश्मीर पंडितो से मुनहार की जा रही है कि वे आ जाये। क्या वहाँ के नेता इनका सब कुछ लौटा सकते है ? वही जिस तरह सन 84 खुल रहा है वैसे ही 90 भी खुलना चाहिए । इन लोगो की जगह जेल है । गुजरात के लिए तो बहुत आंसू बहा लिए पर कभी-कभार इनके लिए कोशिश की है ? कभी दुख जताया है ? सात दशक से पूरा खेल वोटो की राजनीति के तहत ही बुना गया है, जिसका खामियाजा आज देश भुगत रहा है । जिनको आज तक गोडसे वाली पार्टी बोलते थे वो तो सत्ता मे आ गए । पर इनके चलते इनका तथाकथित गांधीवाद भी खारिज हो गया । इस देश को आशा है कि यह जोड़ी अब काश्मीर समस्या का हल करके ही रहेगी ।
लेखक:डॉ चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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