कोरोनिल के विरुद्ध ऐलोपैथिक चिकित्सक, आयुष मंत्रालय और नेता क्यो हुए लामबन्द?
Why Allopathic doctors, Ayush Ministry and corrupt politicians behind Coronil ?
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
गतांक से आगे:- स्वामी रामदेव ने कोरोनिल दवा पर जो रिसर्च किया है, उसे सोशल मीडिया में ऐसा दर्शाया जा रहा है जैसे लोग कोरोनिल को दवाई के रूप मे नही, बल्कि अपने विचार धारा के तारतम्य में देखना चाह रहे है ।
हद हो गई, अब तो दवाई मे भी राष्ट्रवाद देखा जा रहा है । जो लोग कोरोनिल(Coronil) पर प्रश्न कर रहे हैं, उन्हें ग्लेनमार्क से पूछने की हिम्मत है ? दवाई के विरुद्ध उत्तराखण्ड सरकार व राजस्थान की सरकार ऐसे उतर गई है जैसे बाबा रामदेव ने उनकी पगड़ी ही उछाल दी है । क्या प्लाज्मा थेरेपी(Plasma Therapy) से मौत की खबर नहीं आई है ?
जब कोई बिमारी विकराल रूप धारण कर ले, तो जहां से आशा की किरण दिखाई देती है, तो उधर जाने मे कोई हर्ज नही है । ऐसा भी नही है कि इनको नही मालूम है कि इसके साइड इफेक्ट नही है । अगर कोरोनिल दवा सफल हो गई तो यह देश और यहां के नागरिक क्या गौरवान्वित महसूस नहीं करेंगे?
यह वही आयुर्वेद है, जिस पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ इन्ही दवाइयों पर निर्भर है । लीवर के लिए आज भी आयुर्वेद के दवाईयों का कोई सानी नहीं है । “नीम हकीम खतरे जान” का मुहावरा प्रबुद्ध लोगों द्वारा चिपका दिया जाता है । इनके चिकित्सकों को भी दोयम दर्जे का माना जाता है,जो काफी दुर्भाग्य पूर्ण है । जो लोग अपने चिकित्सा शिक्षा का गुरूर करते है, उन्हे भी एक बार अपने गिरेबा मे झाँकने की आवश्यकता है । चिकित्सकों पर अविश्वास इन्ही लोगों की देन है ।
क्या कारण है कि जिस चिकित्सक को भगवान माना जाता था, आज उन्हे अपनी सुरक्षा के लिए बिल लाने की आवश्यकता पड़ गई है । आज सहसा किसी भी चिकित्सक पर लोग विश्वास नहीं कर पाते है, आखिर क्यो? इसी छत्तीसगढ़ में गर्भाशय कांड हुआ था। कम उम्र की महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए थे । यही हाल मोतियाबिंद के साथ हुआ था । स्मार्ट कार्ड जो गरीबों के लिए लाया गया था, क्या हुआ उसके साथ? इन आपरेशन के साइड इफेक्ट मेरे चिकित्सक मित्रों को तो मालूम ही है ।
आज स्वामी रामदेव(Swamy Ramdev) के दवाईयों पर बवाल मचा हुआ है। किसी एक ने भी इन लोगों का विरोध किया ? कोई भी सामने नहीं आया कि इन लोगों के साथ अन्याय हुआ है ।
एथिक्स और नैतिकता की शपथ नोटो के साथ लाकर मे बंद हो गए थे । यह तो इनकी किस्मत है कि जिस आयुर्वेद(Ayurveda)की पगड़ी उछालने का काम ये करते है, उसी आयुर्वेद के चिकित्सक मुख्यमंत्री ने बात बिगड़ने नहीं दी । शायद इनके लाइसेंस इनको उचित, अनुचित सब करने की इजाजत देते है ।
जब हम एक उंगली दूसरे को दिखाते है तो चार उंगलियाँ अपने तरफ रहती है । मै काफी व्यथित था,इन लोगों की भाषा और अमर्यादित व्यवहार के कारण;जो हर समय इन लोगों में देखने को मिलता है
एक संन्यासी और हमारी पांच हजार साल पुराने आयुर्वेद का मजाक उड़ाने का अधिकार तथाकथित नेताओं, सरकारों तधा दूसरी पैथी के चिकित्सकों को किसने दिया है ? आज इस चिकित्सक बिरादरी को एक दूसरे पर विश्वास नही है । यही कारण है कि अगर किसी ने रायपुर में इलाज कराया है, और अगर वह इलाज के लिए आगे जाता है तो उसकी पुरानी जांचो को सरसरी निगाह से खारिज कर पुनः वहीं जांच करने को कहा जाता हैं ।
चिकित्सक द्वारा पुनः जांच के दो अर्थ निकलते हैं। पहला अपने कलिग पर विश्वास नही है, और दूसरा अपने आर्थिक फायदे के लिए उन मरीजों को पुनः जांच के लिए बाध्य करना । जाँच के नाम पर मशीनों पर लगी पूरी लागत निकालने का पहला ध्येय रहता है । इस बात को चिकित्सक भी दबी जुबान मे स्वीकार्य करते हैं ।
आज ही की न्यूज मे लाॅकडाउन(Lockdown) के समय नर्सिग होमो के बन्द होने के कारण नार्मल डिलीवरी ज्यादा हुई हैं । यह क्या दर्शाता है ? कोई भी चिकित्सा पद्धति खराब नहीं होती। खराब बनाते है हम चिकित्सक । मैं अपने लेखनी को विराम दू, पर यह एक बात कह ही दू कि ” जिनके घर शीशे के बने हो उन्हे दूसरे घरों मे पत्थर नहीं मारना चाहिए “। बस इतना ही
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर (ये लेखक के अपने विचार हैं)