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अखिलेश यादव द्वारा उत्तरप्रदेश की जनता को आगाह करने, सावधान करने पर हंगामा है क्यों बरपा?

उत्तरप्रदेश में समाजवादी सरकार के रक्तरंजित चरित्र और चेहरे की कहानी।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
अखिलेश यादव द्वारा उत्तरप्रदेश की जनता को आगाह करने, सावधान करने पर हंगामा है क्यों बरपा.?
पता नहीं क्यों भूल जाते हैं हम.?
मुरादाबाद में पत्रकारों पर समाजवादी पार्टी के गुंडों के हमले के लिए अखिलेश यादव को कोसिए मत। हंगामा मत करिए। समाजवादी पार्टी के गुंडों से पत्रकारों पर भयंकर हमला करा के अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश की जनता के स्मृतिपटल पर जम रही समय की धूल को झाड़ पोंछ कर चमका दिया है। बिल्कुल ताजा कर दिया है।
लोगों को याद आ गया है कि…
1994 में उत्तरप्रदेश में सपा बसपा गठबंधन की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उस समय राजधानी लखनऊ में देश के दो सबसे बड़े हिन्दी समाचारपत्रों दैनिक जागरण और अमर उजाला पर भयानक हमला हुआ था। हॉकरों को मारा पीटा जा रहा था। उनसे छीन कर दोनों अखबारों के बंडलों को सड़कों पर खुलेआम जलाया जा रहा था। लखनऊ के आसपास के अन्य जिलों तक इन दोनों अखबारों को ले जाने वाली टैक्सियों को रास्ते में रोक कर उनके ड्राइवरों को मारा पीटा जा रहा था और अखबारों के बंडल उनसे छीन कर आग के हवाले किए जा रहे थे। प्रेस की स्वतंत्रता पर यह हमले समाजवादी पार्टी के गुंडे कर रहे थे। यह समाजवादी रावणलीला लगभग दस बारह दिन तक बेखौफ जारी रही थी। वह रावणलीला कोई अपवाद मात्र नही थी। बल्कि समय के साथ इतनी अधिक वीभत्स होती गयी थी कि 2015 में शाहजहांपुर में एक पत्रकार जगेन्द्र सिंह को जिंदा जला कर मौत के घाट उतार दिया गया था। उस समय उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी। मुख्यमंत्री का नाम अखिलेश यादव था। उस पत्रकार ने अस्पताल में मृत्युशैया पर अपनी अंतिम सांसे गिनते हुए दिए गए अपने मृत्युपूर्व बयान में अखिलेश यादव की सरकार के कैबिनेट मंत्री को नामजद किया था। लेकिन बयान देने के तत्काल बाद अस्पताल में ही मर गए जगेन्द्र सिंह की मौत के साथ उस केस की भी दिनदहाड़े हत्या हो गई थी। अदालत में यह सिद्ध कर दिया गया था कि जगेन्द्र सिंह ने खुद ही आग लगा ली थी।
उत्तरप्रदेश में समाजवादी सरकार के रक्तरंजित चरित्र और चेहरे की कहानी केवल इतनी ही नहीं है।
मार्च 2012 में मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने बाद ही अक्टूबर में अखिलेश यादव की सरकार ने उत्तरप्रदेश की जेलों में बंद कई दुर्दान्त आतंकवादियों की बिना शर्त रिहाई के आदेश दे दिए थे। मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव की कृपा जिन आतंकियों पर बरसी थी, वो कितने मासूम थे। इसे इन तथ्यों से समझिये।
रामपुर में सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर 31 दिसंबर 2007 की रात ढाई बजे आतंकी हमला कर 7 जवानों को मौत के घाट उतारने वाले जिन आतंकवादियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। उनका मुकदमा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने वापस लेने के लिये बाकायदा पत्रचार किया गया था।
लखनऊ वाराणसी फैजाबाद और गोरखपुर में अलग अलग किए गए आतंकी बम विस्फोटों में तीन अलग अलग अदालतों से उम्रकैद की तीन सजाएं पा चुके आतंकी तारिक कासमी और उसके आतंकी साथियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की बिना शर्त वापसी के आदेश
को पत्र भेजा था। इन आतंकियों की बिना शर्त रिहाई के सपा सरकार के पक्ष में विशेष अदालत में विशेष लोक अभियोजक अपर जिला शासकीय अधिवक्ता ने कहा था कि व्यापक जनमानस व सांप्रदायिक सौहार्द के मद्देनजर आरोपियों पर से मुकदमा वापस लिया जाना न्यायोचित होगा।
न्यायालय ने यदि बहुत कड़ी फटकार के साथ अखिलेश सरकार के उस तुगलकी फैसले को मई 2013 में रद्द नहीं कर दिया होता तो सजा ए मौत और उम्रकैद की सजा पाए आतंकवादी आज खुलेआम बाहर घूम रहे होते और निर्दोषों के खून से होली खेल रहे होते।
मुरादाबाद में पत्रकारों पर हमला करा के अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश की जनता को आगाह किया है, सावधान किया है और यह याद दिलाया है कि समाजवादी पार्टी का चरित्र और चेहरा बिल्कुल नहीं बदला है, आज भी उतना ही भयानक है.?
आभार: सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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