ऐ मेरे प्यारे वतन , तुझ पे दिल कुरबान
तात्या टोपे की स्मृति में भोपाल में तात्या टोपे नगर बसाया गया है , लेकिन अंग्रेजों की भाषायी जूठन चाटते हम उसे टी.टी. नगर कहते शर्माते नहीं हैं।
10 मई 1857 मेरठ में भारतीय क्रांति का विस्फोट। मंगल पांडे जैसे रणबांकुरों की शहादत की लाल- कथा पिछली सदी का इतिहास लिखने को बेताब। नानासाहब पेशवा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मौलवी अहमदुल्ला शाह, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह, राणा बेनी माधो सिंह जैसे विप्लव नायकों की हुंकार आज भी गूंज रही है। चट्टान दिखने वाला अंग्रेजी किला वीरों की गर्जना से दरक गया था।
छत्तीसगढ़ को गौरव है कि मंगल पांडे के एक बरस पहले सोनाखान के जमीदार नारायण सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत को ललकारा था। नारायण सिंह ने अपनी अकाल पीड़ित प्रजा के लिए साहूकारों के अनाज गोदामों को खुले आम लूटने का आह्वान किया था। अगली फसल से उनकी पाई पाई चुकाने को तत्पर भी था। अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया और उसे रायपुर के जयस्तंभ चौक पर मृत्युदंड दिया गया। एक अज्ञात बहादुर अंग्रेज सेना के मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह ने ब्रिटिश सार्जेन्ट की हत्या कर दी। हनुमानसिंह का पता न गोरों को चला और न ही भारतीय इतिहासकारों को। उसके भी पहले बस्तर का भुमकाल आन्दोलन हुआ और राजनांदगांव के निकट डोंगरगांव में विद्रोह हुआ।
1857 की क्रांति को गदर कहना अपमान है। वह स्वतंत्रता का पहला युद्ध था। क्रांति के सूत्रधार थे नानासाहब पेशवा जिन्हें अंग्रेज जीवित पकड़ ही नहीं पाए। तात्या टोपे की स्मृति में भोपाल में तात्या टोपे नगर बसाया गया है , लेकिन अंग्रेजों की भाषायी जूठन चाटते हम उसे टी.टी. नगर कहते शर्माते नहीं हैं। झांसी की रानी का बुत ग्वालियर के किले के नीचे आज भी प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़ा है। सुभद्रा कुमारी चौहान की लेखनी सरकारों की नीयत से बेहतर साबित हुई।
बैसवारे के राणा बेनी माधोसिंह और बिहार के जगदीशपुर के बुजुर्ग क्रांतिकारी कुंवरसिंह अपने अपने इलाकों में दंत कथाओं के नायकों की तरह हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने जगदलपुर में नारायणसिंह विश्वविद्यालय की स्थापना का ऐलान किया था। इन्दिराजी का नाम भी उस घोषणा से जोड़ा गया था। पता नहीं नारायण सिंह के वंशजों का क्या हुआ? उनकी जब्तशुदा जायदाद जिस मालगुजार ने खरीदी थी उसके वंशज दुर्ग जिले की राजनीति में खूब फले फूले।
क्रांति के अग्निमय नायक मशालों की तरह हमारे चरित्र का अंधेरा दूर करने को आज भी जल रहे हैं। मृत्यु तक को उनके पास आने में डर लगता था। हमारी आजादी का श्रेय चाहे जिसे मिले, जंगल में शेर की दहाड़ के सामने अच्छे अच्छों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। हम जिस दक्षिण कोसल में रहते हैं, वहां वीरांगना दुर्गावती के किस्सों का जखीरा यादघर में सुरक्षित है।
साधनों, सूचनातंत्र, शिक्षा, संचार माध्यमों के अभाव में भारत माता के सिंह शावकों ने जिस तरह अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। हम उनकी यादों को छाती से चिपटाए तो बैठे हैं। लेकिन अंग्रेजियत से लड़ने में हांफ रहे हैं। हमारे क्रांतिकारी अमर कथाओं के विप्लवी हस्ताक्षर हैं। बोलिविया के मशहूर विचारक रेगी देब्रे ने कहा है कि क्रांति की गति चक्रीय होती है। वह मूल्यों का पुनर्मूल्यांकन करती रहती है। लक्ष्मीबाई की शहादत का अर्थ स्त्री शक्तिकरण वर्ष में स्त्रियों को अधिकाधिक अधिकार सम्पन्न बनाना है। क्रांतिकारियों के चित्र सरकारी दफ्तरों में क्यों नहीं टांगे जा सकते? क्या वे लोगों में बगावत के शोले सुलगाएंगे? वे असली भारत रत्न हैं। भारत मां की कोख के कोहिनूर हीरे। आज का दिन उनकी याद में नम और फौलाद होने का है। ‘इलाही वे सूरतें किस देस वस्तियां हैं। जिनके देखने को आंखें तरसतियां हैं।‘
साभार:कनक तिवारी-फेसबुक ।