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डॉ त्रिपाठी की कृषि पद्धति को माना जा रहा है भविष्य की खेती का मॉडल

देश का पहला सर्टिफाइड ऑर्गेनिक हर्बल फार्म

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Positive India:कोंडागाव:डॉ त्रिपाठी की कृषि पद्धति को माना जा रहा है भविष्य की खेती का मॉडल। इसी हफ्ते राजाराम त्रिपाठी अपने अफ्रीका दौरे से लौटे हैं । उन्होंने बताया कि विश्व हेरिटेज मोजांबिक अफ्रीका के प्रगतिशील किसानों के आमंत्रण पर उन्होंने विगत हफ्ते अफ्रीका के किसानों के समूह जिसमें ज्यादातर महिलाएं शामिल थी को जैविक/हर्बल खेती का प्रशिक्षण प्रदान किया। उन्होंने बताया कि यह प्रशिक्षण मोजांबिक के निवाला प्रांत थी प्रगतिशील किसानों के समूह को प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि वहां अधिकतर अफ्रीका की मूल आदिम जनजाति निवास करती है तथा उनका रहन-सहन एवं संस्कृति बस्तर की जनजातीय समुदायों से आश्चर्यजनक रूप से बहुत ज्यादा साम्य रखता है। डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि अफ्रीका जनजाति के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया तथा उन्हें ऐसा एहसास होने ही नहीं दिया कि वह अपने घर बस्तर से कहीं बाहर हैं। बस्तर की तरह ही मोजांबिक में भी महिलाएं खेती के कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। बस्तर की ही तरह अपने दूध पीते बच्चों को पीठ से बांधकर खेतों में महिलाओं को काम करते होते हुए देखना यहां भी बेहद आम दृश्य है। मोजांबिक के पेड़, पौधे,जलवायु काफी हद तक बस्तर की जलवायु से मिलती-जुलती है। यहां पर काजू का घना वृक्षारोपण किया गया है। साथ ही कसावा तथा मक्के की बड़े पैमाने पर खेती होती है।
दरअसल हमें “विश्व हेरिटेज” घोषित हो चुके देश मुताबिक के आदिम जनजातियों से भी उनके लाखों साल के संचित अनुभवजन्य, परंपरागत अनमोल ज्ञानकोष से बहुत कुछ सीखना बाकी है।
बस्तर संभाग अंतर्गत कोंडागांव जिले के उच्च शिक्षित प्रगतिशील किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी पिछले तीन दशकों से खेती में किए गए अपने नए-नए प्रयोगों तथा वैज्ञानिक विधि से, जैविक खेती के अनूठे तरीके ईजाद करने एवं सफेद मूसली MDB 13,14 ,काली मिर्च MDBP 13,14,16,, स्टीविया MDS 16, एवं आस्ट्रेलियन टीक MDAT 13,14,16 जैसी उच्च लाभदायक फसलों की नई किस्में तैयार करने के लिए जाने जाते रहे हैं। इसके अलावा या किसान अपनी कृषि आय को लेकर भी देश विदेश में चर्चित हैं।

पिछले दिनों राजाराम की वार्षिक आय देखकर खुद देश के आयकर विभाग के सर्वोच्च अधिकारी प्रधान आयकर महानिर्देशक केसी घुमरिया स्वंय चलकर उनके खेत तक पहुंच गए। उन्होंने राजाराम से कहा कि आप इतनी अधिक कृषि आय कैसे लेते हैं। राजाराम उन्हें अपने हर्बल, काली मिर्च के खेतों में लेकर गए और उन्हें खुद पैदावार का आंकलन करने के लिए कहा। घुमरिया जी ने एक एकड़ में लगभग ८० लाख रुपए की पैदावार का न सिर्फ आंकलन किया बल्कि हंसते हुए यह तक कह गए कि रिटायरमेंट के बाद वह भी खेती करने कोंडागांव आएंगे।

राजाराम का कहना है कि इस पद्धति से खेती करने पर देश में प्रतिवर्ष 3 लाख 50 हजार करोड़ से अधिक के रासायनिक खाद की खपत पर भी कमी लाई जा सकती है। वह विस्तार से वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर बताते हैं कि किस तरह से यह खेती पद्धति भविष्य की खेती पद्धति है तथा यह इजराइल से कृषि पद्धति से भी कई मायनों में बेहतर है।

इत तरह लेते हैं इतनी पैदावार:

किसान राजाराम ने बताया कि उन्होंने आकेशिया मैंजियम प्रजाति के मूल से आस्ट्रेलियन टीक MDAT 16 प्रजाति का का पौधा विकसित किया तथा इस पर चढ़ाने के लिए कालीमिर्च की विशेष प्रजाति MDBP 16 पौधा भी तैयार किया है। इस पौधे की खासियत यह है कि यह 300 प्रतिशत तक प्राक्रतिक नाइट्रोजन को अवशोषित करता है। इसकी बदौलत जहां सामान्य कालीमिर्च के एक पौधे की पैदावार 5-10 किलोग्राम है वहीं आस्ट्रेलियन टीक 35-40 किलोग्राम तक उत्पादन दे देता है।

लगभग 20 देशों के सैकड़ों विशेषज्ञ दल , भारत सरकार के कृषि मंत्रालय उद्योग मंत्रालय सहित,
भारत सरकार की मेडिसिनल प्लांट बोर्ड ,स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, तथा 20 से अधिक विश्वविद्यालय के शोध छात्रों की टीम इनके फार्म पर आकर जड़ी बूटियों की जानकारी प्राप्त कर चुकी है। हाल में ही मसाला बोर्ड के वैज्ञानिक ने भी इस फार्म का भ्रमण किया, तथा यहां के काली मिर्च के तथा औषधि पौधों की खेती में किए गए नवाचारों को सराहा।
केरल राज्य मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। वहां के किसान एक एकड़ खेत में कालीमिर्च की फसल से अधिक से अधिक 5-6 लाख रुपए तक का उत्पादन ले पाते हैं। राजाराम के द्वारा 40 लाख रुपए तक के उत्पादन का दावा करने के बाद वहां से किसानों के कई दल भी दौरा करके जा चुके हैं।

डॉ राजाराम त्रिपाठी को हरित योद्धा , किसानों का मसीहा, हर्बल किंग आफ इंडिया, देशरत्न , विद्वत भूषण, आदि कई उपाधियों से नवाजा जाता है,मगर इनकी सबसे मजबूत छवि है “यूथ आइकॉन” की , दरअसल आज देश का उच्च शिक्षित युवा किसान इन्हें अपने ‘रोल मॉडल’ के रूप में देखता है। कितनी नौजवानों ने इनके पगचिह्नों पर चलते हुए उच्च पदों वाली नौकरियों को छोड़कर उच्च लाभदायक जैविक खेती-किसानी को अपनाया है, इन्हें अपना गुरु मानते हैं। इनकी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर पर किसानो के लिए जैविक खेती औषधीय पौधों की खेती तथा उच्च लाभदायक बहु स्तरीय खेती के आए दिन प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं, यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, आज तक जितने भी प्रशिक्षण दिए हैं, वह सारे प्रशिक्षण निशुल्क हैैं, हां प्रशिक्षार्थियों को अपने आने जाने रुकने खाने का व्यय स्वंय उठाना होता है।

काली मिर्च MDBP 13’14,16 ऑस्ट्रेलियन टीक MDAT 16 आदि की ऐसी नई प्रजातियां तैयार की जो कि, अति विषम जलवायु वाले क्षेत्रों को छोड़कर लगभग पूरे भारत में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं ‌। रोग प्रतिरोधी, तथा अधिक उत्पादन देने वाली इन प्रजातियों ने इन फसलों तथा इनके किसानों की तस्वीर बदल दी है। इन्होंने वर्ष में 1996 में इस मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की स्थापना की तथा देश के हर्बल पौधों की खेती तथा जैविक खेती करने वाले किसानों को देश तथा विदेशों में उचित बाजार दिलाने के लिए सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया चैम्फ संस्था का भी गठन किया। इसे 2005 में कृषि मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा जैविक किसानों के राष्ट्रीय संगठन की मान्यता दी गई है।

डॉक्टर त्रिपाठी ने आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति के ऊपर न केवल गहन शोध किया है बल्कि 25 से अधिक देशों में बस्तर के आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति से संबंधित शोध पत्रों को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सेमिनार , कॉन्फ्रेंस तथा वर्कशॉप्स में पढ़ा है तथा इन विषयों पर व्याख्यान भी दिया है। डॉक्टर त्रिपाठी ने कोंडागांव , बस्तर तथा छत्तीसगढ़ का नाम , न केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भी ऊंचा किया है।

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