कृषि सुधार अधिनियमों पर किसान संगठनों ने जताया विरोध
आईफा राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने किसान संगठनों की परिचर्चा संचालित की।
Positive India:14 June 2020:
कोरोना संक्रमण की वजह से देश की पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगातार एक के बाद एक कदम उठाये जा रहे हैं. इसी क्रम में हाल ही में केंद्र सरकार ने कृषि सुधार के नाम पर पांच अध्यादेश पारित किये हैं. अब इन अध्यादेशों को लेकर किसान संगठनों के बीच आलोचना होने लगी है. अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) का सीधा मानना है कि इन अध्यादेशों से किसानों को कम और कारपोरेट्स को ज्यादा फायदा होगा. इसी क्रम में अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) द्वारा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों सहित मीडिया के प्रतिनिधियों के साथ आभाषी परिचर्चा आयोजित की गई. जिसमें 34 किसान संगठनों तथा 20 से अधिक मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
इस परिचर्चा को संचालित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अध्यादेश जो कि कृषि में सुधार के लिए किये जाने का दावा करते हुए पारित किया गया, यह एक प्रकार से किसानों के हितों के प्रतिकूल है और इससे कृषि तथा खाद्यान्न बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार हो जाएगा. यह गतिविधि एक प्रकार से किसानों के दिलों में सरकार की नीयत के प्रति शंका पैदा करता है. आश्चर्यजनक रूप से खेती किसानी से संबंधित इन सुधारों को लागू करने के पूर्व सरकार ने किसान संगठनों के बजाय उन व्यापारिक संगठनों से इन अधिनियमों को लेकर राय मशविरा किया है, जिनका खेती या कृषि से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए आज ज्यादातर किसान संगठन इन सुधारों के बारे में यही समझ पा रहे हैं कि यह सुधार तथा अधिनियम दरअसल पूरी तरह से कारपोरेट के पक्ष में हीं गढ़े गए हैं, तथा सरकार देश की खाद्यान्नों के बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार देने जा रही है.
डॉ. त्रिपाठी की बातों से सहमति जताते हुए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत ने कहा कि आजकल कॉट्रैक्ट फार्मिंग को प्रोत्साहन देने की खूब चर्चा होती है. इस अध्यादेश के आने के बाद इलेक्ट्रानिक्स चैनलों पर फिक्की या फिर सीआईआई जैसे उद्योग-व्यापार संगठन के प्रतिनिधि कांट्रैक्ट फार्मिंग की वकालत करते हुए दिखते हैं. लेकिन अब तक अनुभव यह बताते हैं कि कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान को इसे लेकर बड़ा कड़वा अनुभव है. उन्होंने कहा कि करार जब बराबरी के स्तर पर होता है तो वह दोनों पक्षों के लिए हितकर होता है लेकिन जब करार करने वाले में जब एक पक्ष कमजोर होता है तो नुकसान भी कमजोर पक्ष को ही उठाना होता है. अध्यादेश में कांट्रैक्ट फार्मिंग की बात कही गई है लेकिन इसमें किसानों के हितों की सुरक्षा को लेकर कोई दिशानिर्देश नहीं है.
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णवीर चौधरी ने कहा कि इस अध्यादेश को पारित करने के पहले अगर किसान संगठनों से राय मशविरा करती तो शायद यह न केवल किसानों की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम होता बल्कि वास्तविक अर्थों में यह कृषि सुधार की ओर बढ़ता कदम होता.
भारतीय कृषि व खाद्य परिषद के अध्यक्ष डॉ एमजे खान* ने कहा कि इस अध्यादेश ने किसानों के मन में सरकार के प्रति शंका के बीज बोये हैं. किसानों को लगता है कि इस अध्यादेश से उन्हें कोई लाभ नहीं होगा. इसलिए सरकार को चाहिए कि अध्यादेश के माध्यम से वह कैसे कृषि सुधार करना चाहती है तथा किसानों के जीवन स्तर पर कैसे बदलाव लाना चाहती है. इस बात को वह किसानों तक पहुंचाये.
अंतरराष्ट्रीय किसान संगठन के युद्धवीर सिंह ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारें जब कोई नीति बनाती है तो वह जमीनी हकीकत की तहकीकात किये बगैर ही नीतियां बना देती है, जिसका लाभ वास्तविक लाभार्थी को नहीं मिल पाता. आज की स्थिति ऐसी है कि सरकार द्वारा महज 10 प्रतिशत ऐसी फसले हैं जिसे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद रही है बाकि किसान अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने के लिए बाध्य है. खेती का सीजन है, उन्हें बीज-खाद, खेतों की जुताई-बुआई के लिए नकदी की जरुरत है. ऐसे में उनके पास कोई विकल्प नहीं है औऱ वे नुकसान उठा रहे हैं. सरकार को तात्कालिक जरूरतों को देखते हुए किसानों को तात्कालिक राहत दे कर दीर्घकालिक कृषि सुधार की नीतियां बनानी चाहिए.
जसबीर भाटी अध्यक्ष राष्ट्रीय किसान संगठन हरियाणा ने कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिंग की नीति फौरी तौर पर किसानों को राहत तो जरूर दे देती है लेकिन दीर्घकालिक अवधि में यह किसानों को मालिक से गुलाम बनाने की एक नीति है. डॉ संजीव जैविक विशेषज्ञ ने कहा कि जैविक खेती करने वाले जो छोटे-छोटे किसान है उनकी दिक्कते जैविक प्रमाणीकरण को लेकर है. सरकार इस प्रक्रिया को इतना जटिल व खर्चिला बना रखा जो कि छोटे जैविक किसानों के लिए यह प्रमाणपत्र प्राप्त करना संभव नहीं है. कृषि सुधार अध्यादेश में इस पर कोई चर्चा नहीं की गई है.
आईफा के दक्षिण भारत के संयोजक जयपाल रेड्डी का कहना था कि इस अध्यादेश को लेकर किसानों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. मीडिया में खबरें विरोधाभाषी प्रकाशित-प्रसारित हो रही है. सरकार व मीडिया को चाहिए कि कृषि सुधार के लिए जब इन अध्यादेश को लाया गया है तो इसकी पूरी जानकारी किसानों तक पहुंचाये.
किसान नेता जसवीर का कहना था कि कोरोना संक्रमण के दौर में किसानों को भारी मुश्किलों का समाना करना पड़ा है. उम्मीद की जा रही थी कि केंद्र सरकार द्वारा जो आर्थिक राहत पैकेज दिया गया है, उसमें किसानों के लिए राहत होगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि किसानों को बैंकों का रास्ता दिखा दिया गया. पहले स आर्थिक अवसाद में आये किसानों को सरकार ने निराश किया है और उसके कृषि सुधार के नाम पर ‘एक देश, एक बाजार’ किसानों के जले पर निमक छिड़कने जैसा है.
जब कि नार्थ एफपीओ महासंघ के अध्यक्ष पुनीत थिंड ने कहा कि सरकार द्वारा लाया गया यह अध्यादेश किसानों के लिए अच्छा है. कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर बहस हो सकती है. कुछ इसमें कमिया है लेकिन यह किसानों को आर्थिक रूप से सबल भी बना रहा है. हर चीज में नकारात्मकता ढूढने के बजाय सकारात्मकता भी ढूंढी जानी चाहिए. कांट्रैक्ट फार्मिंग से पंजाब में किसानों का एक बड़ा तबका लाभान्वित हो रहा है.
इस परिचर्चा में दिल्ली से वरिष्ठ कालमिस्ट राजेश ने कहा कि आवश्यक वस्तु भंडारण अधिनियम सुधार के बारे में विचार करें तो देश के किसानों को भला इससे क्या लाभ मिलने वाला है. किसान का उत्पादन जैसे ही खलिहान में आकर तैयार होता है किसान उसे जल्द से जल्द मंडी में ले जाकर बेच कर अपने पैसे खड़े करना चाहता है ताकि वह अपनी पिछले सीजन की खाद, बीज ,दवाई की दुकानदारों की उधारी अथवा बैंकों का कर्ज़ चुका सके तथा बचे खुचे पैसे से घर परिवार के आवश्यक खर्चे, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि को पूर्ण कर सके . हमारा किसान अपनी अनाज भंडारण करके अच्छा बाजार भाव आने का इंतजार करने में समर्थ नहीं है.
कोलकाता से कृषि नीति विशेषज्ञ अनवर हुसैन ने कहा कि कृषि बाजार को मुक्त बाजार की ओर सरकार ले जा रही है औऱ इसके फायदे हैं तो इसके सामानांतर नुकसान भी है, सरकार को ऐसी नीतियों पर बल देना चाहिए जिससे किसानों की स्वतंत्रता और उनकी आर्थिक हित प्रभावित ना हो. पत्रकार डॉ एके त्रिपाठी ने ने पूछा कि इन हालातों में अब किसान संगठनों की भूमिका क्या होगी?
इसका जवाब देते हुए डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा, ” सबसे पहले इन अध्यादेशों पर केंद्रित कर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की श्रृंखला शुरू की जाएगी. इसके बाद इसकी खामियों को लेकर अखिला भारतीय किसान महासंघ विभिन्न किसान संगठनों के साथ मिल कर सरकार को अवगत कराते हुए इससे संशोधन की मांग करेगी. वक्त आ गया है कि सारे किसान संगठन तथा सारे किसान एकजुट होकर हाथ जोड़कर सरकार से अपील करें कि अगर सरकार वास्तव में उनका भला नहीं कर सकती तो उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दे. सिर्फ कागजी योजनाएं ना बनाएं और ना ही इस तरह के आत्मघाती अधिनियम बनाकर किसानों हाथ पैर बांधकर कारपोरेट के सामने परोसने की कोशिश करें”.