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हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित मोहन भागवत के बाद दूसरे नंबर पर बाबा रामदेव ही क्यों नजर आ रहे हैं?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
हिंदू राष्ट्र की मांग करना कितना कर्णप्रिय है! लेकिन जब प्रश्न हो कि इस दिशा में बड़े नियोजित तरीके से पूरी निष्ठा के साथ भारत के कौन-कौन से ऐसे महापुरुष लगे हैं, जो एक लंबी रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिनके पास असल में हिंदू राष्ट्र का कोई अघोषित ब्लूप्रिंट हो, हिंदू राष्ट्र की पूरी संकल्पना उन्हें स्पष्ट नजर आ रहा हो? इस देश का अपना एक सांस्कृतिक मूल्य है। वह मूल्य है सनातन धर्म। और यह कितना सत्य है कि इस मूल्य की संरक्षा के लिए आज देश में कोई भी विधिगत परम्परागत संस्था कार्य नहीं कर रही। शंकराचार्य पीठ व अखाड़ा परिषद तो केवल इस देश में गद्दी की लड़ाई के लिए खबर बनते हैं और स्वयं ही किसी स्टेट इंस्टीट्यूशन अर्थात् अदालत के मोहताज होते हैं।

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बाबा रामदेव ने रामनवमी के अवसर पर आज हरिद्वार स्थित हर की पैड़ी में एक दीक्षांत समारोह का आयोजन किया तथा 100 से ऊपर ब्रह्मचारियों को ऋषि परंपरा की दीक्षा दी। जिसमें सनातन के मूल्यों पर हिंदू राष्ट्र के निर्माण का संकल्प है। साथ में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे। प्रश्न हो यदि कि बाबा रामदेव कौन हैं तो भारत की ऐसी कोई परंपरागत संस्था का नाम हम नहीं ले सकते, जिसके माध्यम से हम उनका परिचय कर सकें। यदि बाबा रामदेव पतंजलि योगपीठ के योग गुरु हैं तो पतंजलि को उन्होंने अपने निजी उद्यम से खड़ा किया है। अतः उनकी संस्था का क्या दायित्व है, वह स्वयं तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन उन्होंने स्वयं को और अपनी संस्था को भारत में सनातन मूल्यों की स्थापना के लिए समर्पित कर दिया है, एक संकल्प, एक रणनीति के साथ। बड़ी बात है कि इतनी स्पष्टता, समर्पण और दायित्व की भावना के साथ ऋषि परंपरा से राष्ट्र निर्माण के लिए आज देश में एक भी संस्था नहीं है।

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निष्ठा की समानता के आधार पर देखा जाए तो आरएसएस राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा हुआ। दोनों में दो बातों का अंतर है। पहला, पतंजलि योगपीठ ब्रह्मचारियों के माध्यम से यह कार्य कर रहा है, जबकि आरएसएस अपने लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा में गृहस्थ और सन्यासियों जैसी शर्तों से मुक्त है। दूसरा अंतर है कि आरएसएस स्वयंसेवी संस्था है, वित्त व्यवस्था जैसी कारकों से मुक्त है और पतंजलि पूर्ण रूप से वित्त आधारित संस्था है। मजे की बात है कि पतंजलि अपने वित्त के लिए किसी चैरिटी की मोहताज नहीं है। बल्कि स्वयं अपना उद्यम करती है और अपने वित्त की आपूर्ति करती है। जबकि ऐसे कार्य में कोई भी संस्था निश्चित रूप से चैरिटी के लिए लालायित होते हैं।

बाबा रामदेव को लाला रामदेव कहा जाता है। लाला कहकर उनका उपहास किया जाता है। जबकि राजीव दीक्षित कांड में आरोप को छोड़ दें तो बाबा रामदेव का कोई नकारात्मक पक्ष नहीं। एक सवाल लोग उठाते हैं कि जो ऋषि परंपरा का अनुगामी कोई सन्यासी हो, उसे व्यापार क्यों करना चाहिए? लेकिन यह गौरव की बात है कि ऋषि परंपरा का अनुगमन करते हुए कोई सन्यासी राष्ट्र निर्माण जैसा बड़ा संकल्प धारण करता है, और जब इसके लिए वित्त की आवश्यकता पड़ती है तब वह स्वयं उद्यम कर इसकी व्यवस्था भी करता है। हर प्रकार से स्वयं सक्षम है। इसलिए आरएसएस के बाद पतंजलि ऐसी संस्था है, जिसे सनातनी अपनी निष्ठा का विषय मान सकते हैं। इस प्रकार सनातन मूल्य पर हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित मोहन भागवत के बाद भारत के दूसरे व्यक्ति आज के वक्त यदि कोई नजर आ रहा तो वह हैं बाबा रामदेव।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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