तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू में गौ मांस विवाद के बाद बाजार से पूजा वाला घी लेना बंद कीजिये
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
घी विवाद के बीच कल माँ से पूछा तो पता चला गाँव में भैंस का घी बारह सौ रुपये किलो और गाय का घी पन्द्रह सौ रुपये किलो मिलता है। यह सबसे सस्ता रेट है। मेरे यहाँ कभी खरीदना हो तो अधिकांश उन्ही परिवारों से आता है जिनके पारंपरिक कुलगुरु हैं हम! तो हमारे लिए कोई रेट नहीं होता, बल्कि स्वेच्छा से देते हैं और बाजार मूल्य से कम ही देते हैं।
अब इस हिसाब से सोचिये तो दिल्ली बम्बे टाइप बड़े शहरों में घी कम से कम तीन से चार हजार रुपये किलो मिलने चाहिये। और यदि इससे कम का आप खरीद रहे हैं, तो वह क्या है इसकी कोई गारंटी नहीं।
मेरे घर पूजा के लिए घी मम्मी खुद निकालती हैं, और सुखद यह है कि अब पत्नी भी निकालती हैं। दूध पड़ोस से खरीद कर ही आता है, उसी की छाल्ही से घर पर घी निकाला जाता है। मुझे याद नहीं कि कभी भी पूजा के लिए बाजार से घी खरीदा गया हो। यह कठिन काम नहीं है, हर तीन चार दिन पर घण्टे भर समय लगता है उनका, पर विशुद्ध घी उपलब्ध हो जाता है।
यह भी सच है कि सबके लिए इतना करना सम्भव नहीं है। शहर में मिलने वाले दूध की ही गारंटी नहीं तो घी का क्या कहियेगा! और दूध मिले भी, तो घी निकालने का समय किसके पास है? और बाजार से खरीदे जा रहे समान में शुद्धता की गारंटी तो नहीं ही है। फिर??
दरअसल प्राचीन समय में घी के दिये जलाना राजसी बात होती थी। यह आम जन के लिए था ही नहीं। आज से पचास साल पहले तक गाँव देहात के अधिकांश लोग जीवन मे दो चार बार ही जलेबी खा पाते थे, वह भी किसी बड़े सेठ महाजन, भुइयां-भोपाल के श्राद्ध में… और अगर मार्किट में डालडा नहीं आया होता तो आज भी वही बात होती। देश में शुद्ध घी इतना नहीं उपजता कि हर व्यक्ति साल में दो बार जलेबी खा सके। 6 लाख क्विंटल घी होगा, तब जा कर देश एक बार जलेबी खा पायेगा। और आप रोज रोटी में लपेटने के लिए ढूंढ रहे हैं?
तो भाई साहब! यदि शुद्ध चीज उपलब्ध नहीं है, तो कम से कम धार्मिक कार्यों में अशुद्ध वस्तुओं का प्रयोग बंद हो। हमलोगों की ओर पिछले कुछ वर्षों से दीपक जलाने के लिए तिल का तेल खरीदना छोड़ दिया गया है। तिल के तेल के नाम पर केमिकल क्यों जलाना? सरसो का तेल ही ठीक है। दीपावली आदि पर कभी पूजा घर में घी का दीपक जल गया तो जल गया, वरना सरसो का तेल जिन्दाबाद।
पूजा के लिए यदि शुद्ध घी उपलब्ध नहीं तो उसके बिना काम चलाइये। अशुद्ध सामग्री उपयोग कर के पाप बटोरने की क्या आवश्यकता?
तिरुपति बालाजी मंदिर के विवाद से यदि कुछ सीखना चाहते हैं तो बाजार से पूजा वाला घी लेना बंद कीजिये। बल्कि पूजा के लिए सस्ता समान लेना ही बन्द कीजिये। महंगा नहीं खरीद पा रहे तो खरीदिये ही मत। हमारे यहाँ पण्डित सत्यनारायण कथा में वस्त्राभावे शुक्तम समर्पयामि (वस्त्र के अभाव में सूत समर्पित करता हूँ) पढ़ कर भी देव को प्रसन्न रख लेते हैं। कोई जरूरी नहीं कि आप पॉलिस्टर की धोती खरीदें।
मन्दिर में चढ़ाना हो तो प्रसाद घर से बना कर ले जाइए। देव अधिक प्रसन्न होंगे। वहाँ वाले प्रसाद की कोई गारंटी नहीं।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।