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अमेरिका में ट्रंप की जीत से बिलबिलाया वामपंथ भारत में यह नॉरेटिव सेट करने वाला है कि मोदी हेलेलुइया हो गया है

-राजीव मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Rajeev Mishra:
अंग्रेजी में एक कहावत है, Horses for courses. यानि अलग अलग मैदानों में दौड़ने के लिए अलग अलग घोड़े होते हैं.

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वामपंथ बिल्कुल इस सिद्धांत पर विश्वास करता है. वे अलग अलग स्थितियों के लिए अलग अलग किस्म के नैरेटिव तैयार रखते हैं. उदाहरण के लिए स्त्रियों के अधिकार अफगानिस्तान में या माइनॉरिटी के अधिकार पाकिस्तान या बांग्लादेश में उनके विषय नहीं बनते, वहां उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार महत्व का होता है. जब हमास इजरायल में बच्चों की हत्या और स्त्रियों का बलात्कार करता है तो ह्यूमन राइट्स का विषय सो जाता है. जब यूनिवर्सिटी में LGBTQ का झंडा उठता है तो फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का अधिकार महत्व का नहीं रह जाता. स्त्रियों को फेमिनिज्म पर बहलाते हैं, तो फैक्ट्री वर्कर्स को कम्युनिज्म से ललचाते हैं, और अब व्यापारियों को मोनोपॉली से डरा रहे हैं.

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हर वर्ग के लिए एक नए तरह की विक्टिम आइडेंटिटी तलाशना, हर समाज के लिए नया कॉन्फ्लिक्ट नैरेटिव खड़ा करना और हर स्थिति के लिए नई रणनीति बनाना वामपंथ के थिंकटैंक का काम है. अभी जब अपने सबसे एंबीशियस प्रोजेक्ट, अमेरिका में उन्हें गहरा झटका लगा है और वामपंथ का यह किला गिरता दिखाई दे रहा है, और इसको लेकर भारत में विशेष उत्साह है तो ऐसे में हम क्या नई रणनीति की उम्मीद करते है? कौन से विंदु हैं जिनपर ट्रम्प सरकार पर भारत के विरुद्ध स्टैंड लेने का दबाव डाला जा सकेगा?

ट्रम्प का एक बड़ा जनाधार अमेरिका की चर्च जाने वाली, रिलीजियस कैथोलिक ग्रामीण जनता है. ऐसे में भारत को यदि एंटी क्रिश्चियन दिखाया जा सके तो ट्रम्प पर इस विषय पर कड़ा स्टैंड लेने का दबाव होगा. तो अपेक्षा करें कि एक बार फिर से भारत में चर्च पर हमलों की खबरें आएंगी. चर्च की खिड़कियों के शीशे टूटने लगेंगे. ननों पर बलात्कार की खबरें फैलाई जाएंगी. मणिपुर एक सेंसिटिव राज्य है जहां से इनकी शुरुआत हो सकती है, लेकिन झारखंड, उड़ीसा या छत्तीसगढ़ भी इस नैरेटिव की उपजाऊ जमीन हैं.
और जब भारत सरकार जवाब में यह आश्वासन देगी कि हम ऐसी घटनाएं नहीं होने देंगे और उनपर कड़ा एक्शन लेंगे तो फिर मोदी से खार खाए अपने लोगों को यह कहने का मौका मिलेगा कि मोदी हेलेलुइया हो गया है.

मुझे बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होगा यदि यह पूरी तैयारी हो चुकी हो और जनवरी में ट्रम्प के शपथ ग्रहण के साथ साथ न्यूयॉर्क टाइम्स और सीएनएन पर ये कहानियां चल पड़ें कि चर्च की खिड़की का शीशा टूट गया…चर्च पर हमले हो रहे हैं… चर्च के फादर बाथरूम में फिसल गए, कूल्हे की हड्डी टूटी… भारत में क्रिश्चियन सुरक्षित नहीं हैं.

तैयार रहें, अगले सीजन की पहली एपिसोड के लिए…

साभार:राजीव मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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