नोटबंदी के बाद कुछ लेखकों के एन जी ओ को मिलने वाले लाखों , करोड़ों की फंडिंग में ब्रेक क्यों लग गया ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
2024 में नई लोकसभा और नई सरकार आ जाएगी। एन डी ए की यह नरेंद्र मोदी सरकार जब 2014 आई थी तो लेखकों , कवियों के एक ख़ास पाकेट से मोदी और मोदी सरकार से नफ़रत , विष बुझी बातों की बहार आ गई थी । सरकार बनने से पहले ही कोई देश छोड़ने का ऐलान कर रहा था , कोई समुद्र में डुबोने की चर्चा में व्यस्त था । गरज यह कि सरकार बनते ही लोकतंत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया था । संविधान खतरे में पड़ गया था । फासिज्म और असहिष्णुता की बदबूदार बयार में अभिव्यक्ति का गला घोंट दिया गया था । ऐसा सुनने में बहुत बार आया है । अभी भी यह शोर थमा नहीं है । बहस जारी है , बतर्ज ख़ामोश अदालत जारी है । बहुत सी आंधियों , भूकंप और सुनामी की आहट कहिए , दस्तक दी गई , बखानी गई । मई , 2014 से पहले की कविता जैसे पड़ाव भी रचे गए ।
लेकिन इन आठ सालों में कुछ फुटकर व्यंग्य , कुछ चित्कार , कुछ एलर्जी में सनी टिप्पणियां , सेमिनारी बयान बहादुरी , कुछ इकहरी कविताओं को छोड़ दें तो क्या इन विषयों पर कोई बड़ी रचना भी आई क्या ? शाश्वत साहित्य , कालजयी जैसा कुछ ? मुझे नहीं मालूम । इस लिए भी कि मैं बहुत आलसी और अपढ़ व्यक्ति हूं । सो जानकार लोगों से जानने की उत्सुकता है । कोई बड़ी कविता , कहानी , उपन्यास , या महाकाव्य , नाटक , निबंध आदि-इत्यादि जिस भी किसी विधा में कुछ शाश्वत आया हो , कोई हाहाकारी किताब आई हो तो विद्वतजन कृपया परिचित करवाएं । या कि यह सब कोरी लफ्फाजी थी , बौद्धिक जुगाली थी , जो रचना के सरोकार में बदल नहीं पाई । क्यों नहीं बदल पाई , विद्वतजन इस बिंदु पर भी रौशनी डाल सकते हैं । और जो कोई रचनात्मक सरोकार सामने आया हो तो उस का डंका बजा सकते हैं ।
पता चल जाए तो मैं उन की जय-जयकार करना चाहता हूं । अच्छा अगर नोटबंदी आदि की हाहाकार पर , गोमांस खाने के अधिकार और लाभ , बलात्कारी सेना आदि जैसे विषय पर भी कोई उल्लेखनीय रचना हो तो कृपया जिज्ञासा शांत करें । इस सब से इतर भी कुछ हो तो भी कृपया ज़रुर बताएं । सब का स्वागत है । हां , एक जानकारी मुझे ज़रूर है , वह दिए देता हूं । कुछ लेखकों के एन जी ओ को मिलने वाले लाखों , करोड़ों की फंडिंग में ब्रेक लग गया है । ज़्यादातर सरकारी विदेशी यात्राएं बंद कर दी गई हैं । तीन यात्राएं तो मेरी ही रद्द हो गईं । बारी-बारी । दो बार मारीशस की , एक बार चीन की । जाने की तारीख़ , बोलने का विषय आदि तय हो कर भी रद्द हो गईं यह यात्राएं । यहां तक कि मारीशस में तो निमंत्रण पत्र तक छप गए थे , कुछ बंट भी गए थे । यात्रा रद्द होने से तकलीफ़ भी बहुत हुई मुझे । गुस्सा भी बहुत है । लेकिन इस विषय पर कुछ रच नहीं पाया अभी तक । बहुतों की बहुतेरी यात्राएं रद्द हुई होंगी । लेकिन सब की सूचना मेरे पास नहीं है ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)