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अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं

एक ग़ज़ल दयानंद पांडेय की कलम से

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Positive India:दयानंद पांडेय:
बात बेबात वह पागल बताने लगे हैं
अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं

रास्ते पर आए हैं धीरे-धीरे और आएंगे
वाट्सअप पर अब वह बतियाने लगे हैं

हम से मिलना उन्हें ख़ुश करता बहुत है
बिना पूछे ऐसा वह सब को बताने लगे हैं

किनारे नहीं बीच धारे मिल कर भी वह
बीच रास्ते अनायास अचकचाने लगे हैं

समय ही समय था जब मिलते थे पहले
जाने क्यों वह अब जल्दी घर जाने लगे हैं

मिलता ही नहीं हूं मैं जब अरसे से उन से
अब इसी गम के मारे वह पियराने लगे हैं

जैसे लतीफा हूं कोई मेरे क़िस्से सुना कर
वह अब दुनिया जहान को हंसाने लगे हैं
साभार:दयानंद पांडेय

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