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आओ, सफाई दरोगा ! -कनक तिवारी

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Positive India:Kanak Tiwari:
9 जनवरी 1915 को अठारह वर्षों के दक्षिण अफ्रीकी प्रवास के बाद गांधी भारत वापस लौटे थे। दक्षिण अफ्रीका के अब्दुल्ला सेठ एवं अन्य प्रवासी भारतीय व्यापारियों के मुकदमे लड़ने युवा मोहनदास करमचंद गांधी को बुलाया गया था। मुकदमों के बहाने गांधी वहां जनजीवन की समस्याओं में ऐसे फंसे कि बाईस वर्षों तक लौट नहीं पाए। महात्मा गांधी ने अपमान, शारीरिक हमले, उपेक्षा और तरह तरह की जिल्लत झेली। उनके वैवाहिक जीवन में भी कई चुनौतियां आईं। भारतीयों सहित नीग्रो आदिवासियों में भी गांधी ने स्वतंत्रता और समानता की चेतना की अलख जगाई। उन्हें गोरों ने बूटों तले रौंदा। गिरफ्तार किया गया। उनके अखबार और प्रेस पर हमला किया गया। मर्द कद काठी के गांधी ने हार नहीं मानी। दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टर गांधी ने अपनी महान क्लासिक कृति ‘हिन्द स्वराज‘ का प्रकाशन किया।

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भारत लौटकर गांधी को स्वतंत्रता आंदोलन की जद्दोजहद से जुड़ना पड़ा। लोकमान्य तिलक की गिरफ्तारी के बाद वे कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बन गए। उन्होंने राजनीतिक फिज़ा में स्वदेशी, सिविल नाफरमानी, सत्याग्रह, आमरण अनशन, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सर्वधर्म समभाव, हिन्दोस्तानी भाषा, बुनियादी तालीम, हरिजन सेवक संघ जैसे कई शब्दों का आविष्कार किया। गांधी समन्वित भारतीय प्रज्ञा के कुतुबनुमा बने। गांधी जिधर जाते। देखते या कहते राष्ट्रीय प्रश्नों के उत्तर उनके इशारों की बाट जोहते थे। राष्ट्रपिता ने संस्कृतनिष्ठ हिन्दी और मुगल बादशाहत के जमाने से चली आ रही फारसी के बीच और उर्दू सहित स्वाभाविक बहती जनवाणी हिन्दी अर्थात हिन्दोस्तानी को देश की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। अंगरेज़ी हुकूमत की शहरी समझ के मुकाबिल गांव को आर्थिक विकास का केन्द्र बनाया। उनकी धारणा थी नमक को छोड़कर प्रत्येक गांव में सब कुछ उत्पादित होना चाहिए। गांव शहरों पर निर्भर नहीं रहें। उन्होंने ईश्वर और अल्लाह को एक कर दिखाया। वे बर्तानवी हुकूमत की अकड़ू संस्थाओं संसद और न्यायपालिका को भारत में रोपने के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने नौकरशाहों, वकीलों, डाॅक्टरों और पेशेवर लोगों से आम आदमी की हिफाजत करने के गुर भी बताए। वही गांधी एक सिरफिरे द्वारा कुछ षड़यंत्री ताकतों के प्रतिनिधि के रूप में छाती पर गोली दागकर मार डाले गए।

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प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपिता के विचार दर्शन से बेरुख होकर केवल शहरों, गांवों, दफ्तरों, गलियों और सड़कों की झाडू से सफाई के लिए गांधी को सरकारी विज्ञापनों में रेखाचित्र बना दिया है। महात्मा गांधी तन से कहीं ज़्यादा मन की सफाई के पैरोकार हैं। आज होते तो उन्हें किसानों की आत्महत्या से गहरा सरोकार होता। वे ‘लव जेहाद‘ और ‘घर वापसी‘ जैसे चोचलों का विरोध करते। राजनेताओं के भड़कीले वस्त्र, विलासिता का जीवन, पांच सितारा संस्कृति, स्टार्ट अप, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, विदेशी प्रत्यक्ष पूंजी निवेश, परमाणु संधि करार, अमेरिकापरस्ती, संसद के विशेषाधिकार, मंत्रियों के चेहरों के विज्ञापन वगैरह पर हठवादी आपत्ति होती।

गांधी ने विदेशी उद्योगों की जबरदस्त मुखालफत की। मौजूदा प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इण्डिया‘ नारे के विरुद्ध 1942 में ‘क्विट इण्डिया‘ अर्थात ‘अंगरेज़ों भारत छोड़ो‘ का नारा दिया। इक्कीसवीं सदी में गांधी के प्रदेश गुजरात से ही प्रधानमंत्री बने मोदी के आह्वान पर वे भारत वापस बुलाए गए। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में बापू की स्मृति में अहिंसा विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा भी की थी। विश्वविद्यालय नहीं बना लेकिन हिंसा का दावानल इतिहास ने गोधरा के दंगों को लेकर पूरे गुजरात में देखा। हिंसा दिल्ली और अन्य जगहों में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद भी भड़काई गई। उसमें निर्दोष सिक्खों का कत्लेआम हुआ। गांधी ने खानपान की शुचिता और सादगी का ध्यान भी रखा था। देश में हो रही सरकारी पार्टियों और भोज समारोहों में क्या क्या परोसा जाता है। कितना भोजन बरबाद होता है। उसके दाम कितने होते हैं। यह जनता जानना चाहती है।

गांधी ने वाइसराॅय की कोठी सहित बड़े सरकारी बंगलों में स्कूल, अस्पताल और अन्य सेवाभावी संस्थाएं खोलने का सुझाव दिया था। लुटियन की नगरी में बहुत अधिक लुटेरों का साम्राज्य कारपोरेट दुनिया की नकाब लगाकर फैलता जा रहा। शहरों, गांवों, मुहल्लों में सफाई के गांधी पक्षधर थे। सेवाग्राम में गोबर लिपी धरती पर भारत के वाइसराॅय को बैठना पड़ा था। यह खबर तैर रही है कि केन्द्र सरकार ने राज्यों को समझाइश दी है कि धीरे धीरे नगरपालिक संस्थाओं में काम कर रहे सफाई कर्मियों के पदों पर कोई भरती नहीं करें। सफाई का काम निजी राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों को दिया जाने का इरादा बताया जा रहा है। गांधी स्वावलम्बन और विकेन्द्रीकरण के पक्षधर और प्रवक्ता थे। वे ‘हर हाथ को काम‘, हर पेट को अनाज‘, और ‘हर खेत को पानी‘ देने का ऐलान करते थे। उनके अनुसार सरकार को निःषुल्क शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का प्रबंध करना चाहिए। आज महंगे निजी स्कूलों काॅलेजों में ​शिक्षा को उत्पाद की तरह बेचा जा रहा है। निजी अस्पतालों में इलाज कराना सरकारों की साठगांठ के कारण मजबूरी है। सरकारें लोक कल्याण के सभी कार्य किराए और ठेके पर निजी संस्थाओं को देने पर आमादा हैं। उनके पास महंगे वस्त्र पहनकर फोटो खिंचवाने के लिए नई झाडू खरीदकर चमचमाती सड़कों पर सफाई का जतन करना ही बच जाएगा। गांधी इसी संभावित मुद्रा के ब्रांड अम्बेसडर बना दिए गए हैं। यदि उन्हें यह सब बताया जाता तो वे दक्षिण अफ्रीका में रहना ही पसंद करते।
साभार:कनक तिवारी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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