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महान उद्घोषक अमीन सयानी ने अंग्रेजी उद्घोषणा से अपने कॅरियर की शुरूआत की थी लेकिन जब वह आकाशवाणी के हिन्दी प्रभाग के लिए आडिशन देने गये तो उनसे कहा गया कि उनके उच्चारण में अंग्रेजी और गुजराती का आभास आता है।
मगर अमीन सयानी उन लोगों में से नहीं थे जो हतोत्साहित हो जाते और एक वक्त ऐसा भी आया जब वह भारत के हर-दिल-अजीज रेडियो प्रस्तोता बन गये।
पटकथा लेखक राकेश आनंद बख्शी ने अपनी नयी किताब ‘लेट्स टॉक आन एअर : कन्वर्सेशन विद रेडियो प्रजेंटर्स’ में अमीन सयानी के वृत्तांत का जिक्र किया गया है।
सयानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में एक बहुभाषी परिवार में हुआ था और ‘बंबई की खिचड़ी हिन्दुस्तानी भाषा’ में पले बढ़े।
पेंगुइन द्वारा प्रकाशित किताब में उन्होंने बताया,मैंने शुरूआती शिक्षा न्यू इरा स्कूल में की थी जिसमें प्राथमिकी स्तर में गुजराती माध्यम का उपयोग होता था। पांचवीं कक्षा से अंग्रेजी पर अधिक जोर दिया जाता था।
उन्होंने बहुत कम उम्र में अपनी मां के पाक्षिक पत्रिका ‘रहबर’ के छोटे छोटे लेख लिखने शुरू कर दिए जो तीन लिपियों देवनागरी, गुजराती और उर्दू में छपती थी।
सयानी ने बताया कि 13 साल की उम्र में अंग्रेजी में धाराप्रवाह उद्घोषक बन गये थे। बंबई आल इंडिया रेडियो के बच्चों के कार्यक्रम में शिरकत करना शुरू कर दिया था और बाद में रेडियो रूपक में भूमिका निभानी शुरू कर दी थी।
कुछ समस्याओं के चलते उन्हें मुंबई में अपने स्कूल को छोड़कर ग्वालियर के सिंधिया स्कूल जाना पड़ा।
आजादी के बाद वह मुंबई वापस आये और हिन्दी प्रभाग में आडिशन देने के लिए गए।
वे मुस्कुराये और कहा,मैंने अपनी स्क्रिप्ट पूरे आत्मविश्वास से पढ़ी। लेकिन उनका उत्तर था, तुमने बहुत अच्छा पढ़ा लेकिन तुम्हारे उच्चारण में अंग्रेजी और गुजराती का आभास होता है। इसलिए हम आपको नहीं रख सकते।’
Sabhar Bhasha