Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आज से सात साल पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया गया था । ऐसा आंदोलन, जिसने सरकार की चूले तक हिला दी थी। इसमें दो मत नही कि यह आंदोलन जनआंदोलन बन गया था । श्री अन्ना हजारे जैसे लोग इससे जुड़े हुए थे । अन्ना जी ही सफलता की गारंटी थे। उस समय समानांतर एक दो आंदोलन और चले, वो अपने परिणति तक नहीं पहुंच पाये । पर अन्ना जी के आशीर्वाद के कारण लोगों ने भी इस आंदोलन पर सहसा विश्वास कर लिया । निश्चित ही उस समय किसी ने भी इस आंदोलन के अंदर चल रही राजनीति पर ध्यान नही दिया । इस आंदोलन के अंदर भी लोगों ने अपने इतने गुप्त एजेंडे रखे होंगे, कोई सोच भी नहीं सकता था ।
उल्लेखनीय है यह आंदोलन चालू करने के पहले ही अर्जुन के निशाने की तरह अपना एक ध्येय बना लिया था । आंदोलन में अन्ना जी के कंधे का बहुत दुर्भाग्य पूर्ण से दुरूपयोग कर लिया गया । हालात तो यह हो गए थे कि सरकार की हठधर्मीता के चलते अन्ना जी की जान पर भी बन आई थी । उल्लेखनीय हैं कि मीडिया ने भी बहुत स्पेस दिया, जिसके कारण आंदोलन जनआंदोलन मे तब्दील हो गया । हालात तो यह थे कि लोगों ने देश के नाम से इस आंदोलन के नाम से अपनी बड़ी बड़ी नौकरियों को छोड़कर पूर्ण रूप से इसके लिए समर्पित हो गए थे ।
इस जनआन्दोलन की सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था भ्रष्टाचार और इस तरह से चली आ रही राजनीति पर व्यापक फेर बदल; जिसके नाम से लोग इसका हिस्सा बनते चले गए । लोगों में इतना जुनून था कि स्थानीय स्तर पर भी आंदोलन के समर्थन के नाम पर छोटे मोटे रैली आदि तो निकाल ही रहे थे । दूर क्यो, हम ही इसका हिस्सा बन गए थे ।
लोगों को परिवर्तन चाहिए था जैसा एक बार उन्होंने लोकनायक स्व.जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भी एक कोशिश की थी जो दुर्भाग्य रूप से राजनीति के हत्थे चढ गई । कोई बंदा अपनी इतनी बड़ी नौकरी छोड़कर यू ही नही आ जाता ? यही कारण है कि जब आंदोलन खत्म हुआ तो इतिहास ने फिर करवट ली।
जिस तरह आजादी मिलने के बाद महात्मा गाँधी जी कांग्रेस को खत्म करना चाहते थे, वैसे ही अन्ना जी भी इसकी उपयोगिता के बाद इसे खत्म करना चाहते थे । पर जिस जनआंदोलन के पाए मजबूती से खड़े थे, फिर फसल खडी होने के बाद कैसे कोई इस मौके को हाथ से जाने देता ? अंततः अंततोगत्वा अन्ना जी भी थक हारकर अपने गांव वापस आ गये ।
फिर पार्टी बनी । लोगों के हित टकराते रहे । बाद में यह भी दूसरी पार्टियों के ढर्रे में आ गई । इसके कारण जो चर्चित नाम जुड़े थे, सब एक एक कर अलग अलग हो गए और अपनी अलग राह तय कर ली । कुछ लोग तो अपने राजनीतिक एजेंडा के चलते शामिल हुए थे पर उसमे सफल नहीं हो पाए । जब यह पार्टी बनी तो इसके मीटिंग की खूबसूरती के भी बहुत चर्चा हुई । आदर्श का लबादा ओढ़े इन लोगों में शर्ट फटते तक की मीटिंग भी देश ने देखा है ।
दुर्भाग्य से सत्ता में आने के बाद ये लोग बदले बदले से दिखने लगे । जनआंदोलन के समय जो लोग देश भक्ति के नारे व गाने गाते दिखते थे वही लोग जब जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारों में शामिल होते देश ने देखा; तो लोग कितने आहत हुए होंगे, कहना मुश्किल है ।
फिर अपने राजनीतिक फायदे के लिए शाहीन बाग में ऐसे नेताओं का समर्थन कम से कम उस आंदोलन से तो मेल नहीं खाता । वैसे ही जनआंदोलन के समय प्रतिदिन उस समय के नेताओं पर सबूतो के साथ, मीडिया पर खुलेआम भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर, लोगों मे उस समय सनसनी पैदा करने वाले; उन्ही लोगों के साथ जब गलबहियाँ करते दिखाई देने लगे, हाथों में हाथ डालकर वी का निशान दिखाते हुए कम से कम उन लोगों को तो मायूस कर ही दिया। जिन्होंने तन मन धन से सहयोग किया उन्हे तो दिन दहाड़े ही धोखा दे दिया गया ।
वैसे ही दिल्ली दंगे में धर्म निरपेक्षता के नाम से आरोपियों को इनके नेताओं को जिस बेहया ढंग से बचाने की कोशिश की गई, उसे भी देश ने देखा है । इनके शासन के एक आयोग के नेता द्वारा, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के लिए बाहर के देशों पर गुहार; निश्चित ही देश को बदनाम करने की साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है । इस मुद्दे पर इनके नेताओ की खामोशी, कहीं समर्थन की ओर इशारा तो नहीं कर रहा है?
इसलिए आज के संदर्भ मे अन्ना हजारे जी को कहना पड़ा कि लोग श्री नरेन्द्र मोदी जी और मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी जी को समर्थन करे । क्योकि इनके बच्चे भी नही है । पर यह तय है कि अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए, पूरे देश को अपनी बैशाखी बनाने की कला, इन्हें बखूबी आती है जिसकी तारीफ तो करनी ही होगी । आज बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)