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न्यायालय के मीठे फैसले गप गप, कड़वा फैसला थू थू

हम लोग लोकतंत्र के नाम से राजतंत्र मे ही रह रहे है।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh: सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का मतलब न्याय की अंतिम दहलीज है। यहां के फैसले पर जन सामान्य कोई तकलीफ नहीं है। न्यायालय के फैसले आमतौर पर हर को मान्य रहते है। पर इन नेताओ को और उनकी पार्टीयो को,अगर उनकी सुविधा से फैसला नही आया,तो अपने राजनीतिक शक्ति, जो इन्हे मिली है उसका दुरूपयोग करते है। यही कारण है कि न्यायालय के निर्णय को अपने राजनीतिक फायदे के लिए बदल देते है। इसी कारण न्यायालय मे न्यायाधीश के नियुक्ति के मामले में एक दूसरे की आलोचना आम बात है। सबसे पहले तो न्यायालय के फैसले के मामले मे पहला हस्तक्षेप स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी के केस के संदर्भ मे ही आया था। स्व.राजनारायण ने चुनाव हारने के बाद केस कर दिया था,जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला इंदिरा जी के विपरीत हुआ था। बात श्रीमती इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने की नौबत तक आ गई थी।उससे बचने के लिए उन्हे अंततः आपातकाल जैसे कदम उठाने पड़े। बाद मे तीन न्यायाधीश की वरिष्ठता लांघकर जूनियर को मुख्य न्यायाधीश बनाया। और फिर बाद मे फैसला उनके हक मे आया। पर न्यायालय के फैसले मे हस्तक्षेप हो ही गया था। वैसे ही उन्होंने प्रिविप॔स के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को संसद के माध्यम से बदल दिया। अपने रियासतो का विलय इसी शर्त पर ही हुआ था। कारण था देश का पैसा बचा सके।
वैसे ही स्व.राजीव गांधी के समय, अपने गुजारा भत्ता का केस, सर्वोच्च न्यायालय ने जो हक मे फैसला दिया था, उसे सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए बदल डाला। फिर मोदी सरकार कैसे पीछे रहती? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ए.सी एस.टी के प्रावधान मे संशोधन सवर्णो के पक्ष मे दिए गए फैसले को अपने राजनीतिक लाभ के लिए बदल दिया । सौ बात की एक बात, अगर कोई फैसला इनके राजनीतिक मकसद मे बाधा डालती है तो सही गलत देखे बगैर उसकी अकाल मृत्यु निश्चित है। कुल मिलाकर, हम लोग लोकतंत्र के नाम से राजतंत्र मे ही रह रहे है। अंतिम फैसला तो राजा को ही लेना है। फिर न्यायालय के फैसले, जो देश का दिशा-निर्देशन करते है, उस पर ये राजनैतिक पार्टियाँ कई बार प्रहार करती है। बस इतना भर है, चेहरे बदल जाते है। वही जिन संवेदनशील मुद्दे पर निर्णय लेने से इन्हे खुद बचना होता है उसे कोर्ट के पाले मे डाल देते है । न्यायालय के मीठे फैसले गप गप, कड़वा फैसला थू थू । कुल मिलाकर न्यायालय के सामने फैसला सत्य के हक मे दिया जाता है । अदालत को राजनीतिक लाभ हानि से कोई मतलब नही रहता । न्यायालय मतलब सत्य-मेव जयते है।बस एक ही शिकायत हैं,बहुत देर हो जाती है ।

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लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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