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संघ और राष्ट्रवाद का जुनून

जाति आधारित राजनीति का कोई भविष्य नही है

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh: पिछले कुछ सालो से विपक्ष का आरोप है कि संघ सवर्णों का ही प्रतिनिधित्व करता है। ये आरोप आम है । वही ये भी सच है कि सवर्ण समाज संघ से ज्यादा जुड़े हुए है । पिछले कुछ साल मे संघ ने आदिवासी क्षेत्रो मे वनवासी आश्रम कल्याण केंद्र के माध्यम से काफी अच्छा काम किया है । इसके कारण इस अंचल मे समाज सेवा के नाम से धर्म परिवर्तन करने वालो को तकलीफ भी हुई क्योंकि उनके कामों मे बाधा आने लग गई थी । आज इसका परिणाम यह हुआ कि इसका परोक्ष लाभ आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी को ही हुआ । पर आज भी यहाँ काम की बहुत संभावनाएं है । पर ऐसा लगता है की दलित वर्ग मे जितना काम होना था वो नही हुआ है । संघ मे शुरू से ही भेदभाव नही है । वहा वर्ण व्यवस्था की कोई जगह नही है । शाखा मे आने वाला हर व्यक्ति स्वयंसेवक है । ये मूल मंत्र बचपन से ही सिखाया जाता है । ये राजनीति है जो सब करवा देती है । ऐसा नही हुआ तो दुकान बंद हो जाएगी । इसके बाद भी यहा से जितने लोग को हम से जुड़ना था किसी कारण वश नही जुड़ पाऐ । इस क्षेत्र मे काफी मेहनत करने की आवश्यकता है । यहां के लोग जिस दिन जुड़ जाएंगे फिर इन टुकड़े टुकड़े गैंग का विनाश सुनिश्चित है । जो आरोप लगाए जाते है वो मिथ्या साबित होंगे । इसी का डर आज इनके मन मे समाया हुआ है । कमोबेश पश्चिम बंगाल मे भी यही स्थिति थी । संघ ने जब काम करना चालू किया तो कार्यकर्तायो पर निशाना साधा जाने लगा । ये हताशा का परिचायक है । अब तो स्थिति इतनी विकराल हो गई है की इन्हे पाकिस्तान से मदद लेनी पड़ रही है । आज इन्हे केरल और बंगाल मे अपना अस्तित्व खतरे मे नजर आ रहा है । जिस दिन दलित वर्ग मे संघ के काय॔कम से इन लोग प्रभावित हुए तो इन धर्म निरपेक्ष दलो के ताबूत मे कील ठोकने के दिन पास ही है समझो । इसी का डर इन बंदो को है । ऐसा कर हम एक बहुत बड़े वंचित लोगो को अपने से जोड़ पाएंगे ।राष्ट्रवाद का जुनून सर चढ कर बोलता है । जिस दिन ये लोग संघ को आत्मसात कर लेंगे उस दिन विपक्ष की पूरी राजनीति खत्म होने के कगार पर आ जाएगी । जाति आधारित राजनीति का कोई भविष्य नही है । पर अपनी राजनीति के लिए उसे बचाए रखना मजबूरी है । यही कारण है पूरा विपक्ष एक छत्री के नीचे आ गया है । परिवार वाद की राजनीति के लिए इनका संगठित होना स्वाभाविक है । यहा पर लड़ाई नेतृत्व के लिए है जो इनके मैत्री मे बाधक है । संघ को खुलकर इनके बीच जाकर विश्वास अजित करना होगा । वहा नया नेतृत्व पैदा करने की आवश्यकता है । जितने भी विधमान दलित नेता है उन्हे पहले किनारे करने की जरूरत है । ये लोग सत्ता के लिए समाज मे वैमनस्यता पैदा कर रहे है । यही कारण है की आज समाज बटा हुआ लगता है । अगर संघ इस तरफ कदमबढ़ाती है तो हम लोग भी साथ है । ऐसा कर हम नये भारत व नये समाज के निर्माण मे सफल होंगे ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार है)

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