एक तरफ अतुल सुभाष की क्रूर पत्नी तो दूसरी तरफ़ कैंसर से जूझते विवेक पंगेनी की पत्नी सृजना
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
पिछले दिनों अतुल सुभाष की क्रूर पत्नी के बहाने लोभी स्त्रियों पर ख़ूब चर्चा हुई। हालांकि उसकी क्रूरता, उसका दुर्व्यवहार और परिवार विरोधी असभ्य रवैया आलोचना के ही लायक था, पर यह बात भी सच है कि वह भारतीय स्त्री चरित्र का प्रतीक नहीं है। ऐसी दुष्ट स्त्रियां बहुत कम हैं, नाम मात्र के बराबर…
कल विवेक पंगेनी के बारे में पढ़ा। विवेक पंगेनी के बारे में अधिक जानकारी नहीं है मुझे, शायद वे पति-पत्नी रील बनाने के कारण लोकप्रिय हुए थे। नेपाल के विवेक चर्चित कंटेंट क्रियेटर थे, पत्नी भी उनके साथ दिखा करती थी। कुछ वर्षों पहले लोगों ने उन्हें एक हँसमुख जोड़े की तरह पहचाना था।
समय का अपना विधान है। वह कब किसके साथ कैसा व्यवहार करेगा, यह कोई नहीं जानता। एक दिन पता चला कि विवेक को ब्रेन कैंसर है। उनके जीवन में इसके बाद का पूरा समय विवेक की पत्नी सृजना सुवेदी द्वारा की गई सेवा का समय है।
उस महिला ने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य तय कर लिया था जैसे, केवल बीमार पति की सेवा! रील बनाना उस जोड़े का शौक था सो वे इन दिनों भी रील बनाते थे, और इसी के माध्यम से उनके प्रशंसकों तक उनकी खबरें पहुँचती रहीं।
इलाज के दौरान जब विवेक के सर के बाल गिरे तो सृजना ने भी अपने बाल काट दिए। लम्बी बीमारी के कारण उपजने वाले अवसाद से बचाने के लिए किया गया यह एक पवित्र प्रयास था।
विवेक का स्वास्थ्य गिरता गया, पर पत्नी का समर्पण बढ़ता गया। अमेरिका से पीएचडी कर चुकी लड़की पिछले कुछ वर्षों से सबकुछ छोड़ कर पति की सेवा ही करती रही है।
आप यकीन कीजिये, विवेक पंगेनी की पत्नी का चरित्र ही भारतीय स्त्रियों का मूल चरित्र है। बस उनकी कहानियां कही-सुनी नहीं जातीं। हमें लगता है कि इसमें कौन सी बड़ी बात है, यह तो होना ही चाहिये। और अतुल की पत्नी जैसी स्त्रियां अपवाद हैं, इसी के कारण उनपर दृष्टि अधिक जाती है।
दो दिन पहले कैंसर से पराजित हो कर विवेक पंगेनी चले गए। उनके हिस्से शायद इतनी उम्र आयी थी। पर उनकी पत्नी ने अपने प्रेम को सिद्ध कर लिया…
समाज में सृजना सुवेदी स्त्रियों की ही चर्चा अधिक होनी चाहिये। न केवल स्त्री, बल्कि उन पुरुषों की भी चर्चा होनी चाहिये जो अपनी पत्नी के प्रति अपना प्रेम निभाते हैं। ऐसे लोग ही समाज के नायक होते हैं, आदर्श होते हैं।
साभार: सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)