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भारत के लिए एक नया संविधान समय की आवश्यकता है

- राजकमल गोस्वामी की कलम से -

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Positive India: Rajkamal Goswami:
फ़्रांस में सन १९५८ से पाँचवा संविधान चल रहा है और आधुनिक फ़्रांस अपने को पाँचवा गणतंत्र [ Fifth Republic) कहता है । १७७९ की फ्रेंच रिवोल्यूशन के बाद कई संविधान आए और अपनाये गये । १९५८ से पहले वहाँ संसदीय लोकतंत्र था और अब सेमी ऑथरिटेटिव रूल है यानी अधिकार प्राप्त राष्ट्रपति प्रणाली ।

फ़्रांस व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अलमबपदार है । चार्ली हेब्डों की हत्या के बाद भी उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाई ।

लोहिया कहते थे कि ज़िंदा क़ौमें पाँच साल इंतज़ार नहीं करतीं और फ़्रांस कहता है कि ज़िन्दा क़ौमें एक संविधान से चिपकी नहीं रहतीं ।

सौ से ऊपर संशोधन हो चुके हैं हमारे संविधान में । मूल संविधान तो कब का विलीन हो चुका है । प्रस्तावना में समाजवाद घुसा दिया गया जिसका अब कहीं कोई नामलेवा नहीं बचा । न्यायपालिका और विधायिका जूझ रही हैं जजों की नियुक्ति के लिए ।

यूँ तो केंद्र और राज्यों द्वारा बनाए गए क़ानूनों का न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन किया जा सकता है परन्तु जो क़ानून नौवीं अनुसूची में डाल दिए जाते हैं वे चाहे मौलिक अधिकारों का हनन करते तो भी वे न्यायालय के पुनर्विलोकन की परिधि से बाहर हो जाते हैं । यद्यपि इस नियम के भी कुछ अपवाद हैं ।
आज की तारीख़ में २८४ क़ानून नौवीं अनुसूची में दाखिल हैं जिन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

भारत का संविधान एक अजीब घालमेल हो गया है । वकीलों की फ़ीस लाखों से बढ़ कर करोड़ों में जा पहुँची है । इस संविधान को वकीलों के लिए स्वर्ग माना जाता है तो ज़ाहिर है कि मुवक्किलों के लिए यह नर्क भी है । जिनके पास पैसा है या जिनकी पीठ पर पेट्रो डॉलर है वे आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेते हैं । जिनके पास दिल्ली जाने का किराया नहीं है वे विधना को दोष लगा कर अन्याय सहते रहते हैं ।

एक नया संविधान समय की आवश्यकता है जो अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी न्याय सुलभ करा सके ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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