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बॉलीवुड हीरो सलमान खान को धमकाने वाला एक हिन्दू डॉन लॉ(रेंस) उभरकर सामने आया है।

-सुशोभित की कलम से-

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Positive India:Sushobhit:
लॉ(रेंस) बि(श्नो)ई की तेज़ी से बढ़ती लोकप्रियता का सुराग़ सामूहिक-अवचेतन के अनेक रहस्यों में निहित है। शक्ति में अदम्य आकर्षण होता है। ताक़त चुम्बक की तरह खींचती है। जब उसके समीकरण बहुसंख्यजन को अपने अनुरूप लगते हैं तो वे उससे बेतरह प्रभावित हो जाते हैं। लोग भगवान को पूजते हैं, लेकिन मन ही मन जानते हैं कि दुनिया को शैतान चलाता है। बुराई की ताक़तों का बोलबाला है। घी टेढ़ी उंगली से निकलता है। लोहा लोहे को काटता है। बाल-बच्चेदार, सद्-गृहस्थ लोग इस स्याह दुनिया से रोज़ मुठभेड़ करते हैं, लेकिन अपनी असमर्थता से मन ही मन घुटकर रह जाते हैं। जब वे किसी दिलेर को नियम तोड़ते देखते हैं तो इससे प्रभावित होते हैं। उसमें नायक की छवि की तनिक भी कल्पना से उस पर मुग्ध हो जाते हैं। ‘एंग्री यंग मैन’ का रूपक ऐसे ही रचा गया था, जिसने सत्तर के दशक में नियति-वंचित, मध्य-वित्त के नौकरीपेशाओं को अपनी दमित-भावनाओं के विरेचन का सुख दिया था। लॉ(रेंस) की दबंगई भी जनमानस को निर्भार होने का रोमांच देती है।

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लॉ(रेंस) की लोकप्रियता का दूसरा कारण उसकी ‘हिन्दू गैंग्स्टर’ की छवि का होना है। दाऊद इब्राहीम, छोटा शकील, टाइगर मेमन, अबू सलेम के किस्से सुनकर बड़ी हुई पीढ़ी को उसमें अपनी सामुदायिक-पहचान का एक योद्धा दिखता है। नव-हिन्दुत्व को इधर निरन्तर अपने लिए उग्र प्रतीकों की ज़रूरत महसूस हुई है। राम और हनुमान की सौम्य-छवियाँ भी इधर अधिक आक्रामक रूप में प्रस्तुत की गई हैं। राजनीति के क्षेत्र में पौरुषपूर्ण चेहरे उभरे हैं। इस नव-हिन्दुत्व को लॉ(रेंस) के रूप में नया नायक मिला है।

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लॉ(रेंस) भाल पर तिलक लगाता है, उसने अपनी बाँह पर जय श्री राम गुदवा रखा है, वह धार्मिक भावना आहत होने की बिनाह पर सलमान ख़ान को ललकारता है। हत्याकाण्डों को वह ‘प्रभु की लीला’ क़रार देता है। “शत्रु के शरीर से मेरी लड़ाई थी, उनकी आत्मा तो अब परमात्मा में लीन हो चुकी”- ऐसे बयान बिना किसी लाग-लपेट के देता है। आम धारणा में यह पैठा है कि बॉलीवुड का झुकाव इस्लामिक-नैरेटिव की तरह रहता है। हाल के सालों में ख़ान-त्रयी के वर्चस्व को तोड़ने वाले सुपर-सितारों के रूप में अक्षय कुमार, अजय देवगन, सनी देओल, संजय दत्त को सैलिब्रेट किया जाता रहा है। दर्शकों ने विवेक ओबेरॉय को सलमान के सामने याचना करते देखा है। सुशान्त सिंह राजपूत की आत्महत्या देखी है। वे इस बात से ख़ुश होते हैं कि बॉलीवुड को धमकाने वाला एक हिन्दू डॉन उभरकर सामने आया है। इस नए रोमांच ने सोशल मीडिया की उत्तेजित धमनियों में करंट दौड़ा दिया है!

लॉ(रेंस) का नामकरण अंग्रेज़ अफसर हेनरी लॉरेंस के नाम पर किया गया था, जो ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब सूबे में लोकप्रिय थे। जन्म के समय उसका रंग गोरा-चिट्टा था और उसे फिरंगी कहने की ग़रज़ से उसका यह नाम रखा गया। लॉ(रेंस) ने कैमरे पर ऑन-रिकॉर्ड, और एक से ज़्यादा मर्तबा यह कहा है कि उसकी जिंदगी का एक ही मक़सद है, सलमान ख़ान को मारना। शर्त उसने यह रखी है कि अगर सलमान मुक्तिधाम, मुकाम में बिश्नोइयों के धर्मस्थल पर जाकर क्षमायाचना कर ले तो उसकी जान बख़्श दी जाएगी। उसका यह तेवर लोगों की नसें फड़काता है। सलमान पर इलज़ाम है कि उसने साल 1998 में जोधपुर के जंगलों में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान काले हिरणों (कृष्णमृग) का शिकार किया था। इन कृष्णमृग को बिश्नोई समुदाय में पूज्य माना जाता है। जब वह घटना घटी, तब लॉ(रेंस) महज़ 4 साल का था, लेकिन ग़ुस्से और अपमान को उसने ज़हर की गाँठ की तरह मन में पाला। सलमान बॉलीवुड के भाईजान हैं। दबंग हैं, टाइगर हैं। उनका नाम चलता है। सलमान माफ़ी कैसे माँगें और लॉ(रेंस) पीछे कैसे हटे? इसने एक बॉलीवुड-शैली के नाटकीय कथानक को जन्म दिया है, जिसने सनसनी के भूखे लोगों को सुबह-शाम का मसाला दे दिया है।

जो क़ौम करोड़ों जानवरों का गला काटकर अपना एक त्योहार मनाती है, उसके बंदे समझ नहीं पा रहे हैं कि हिरण को मारने पर ऐसा कौन-सा बवाल हो गया? उन्हें नहीं पता कि बिश्नोइयों के गुरु जम्भेश्वर ने अपने जीवन के 27 साल गायें चराई थीं। उनका जो चित्र है, उसमें आप गाय और मोर के साथ हिरणों को देख सकते हैं। एक कृष्णमृग तो स्नेह से उनके अंक लगा हुआ है। भारत में बिश्नोइयों की संख्या 6 लाख के क़रीब है और उनकी बड़ी आबादी राजस्थान-पंजाब के उसी इलाक़े की है, जहाँ लॉ(रेंस) पला-बढ़ा। अपने समुदाय के एक पवित्र-प्रतीक की केवल थोथे मन-बहलाव और नुमाइश के लिए क़त्ल कर देने की ख़बर ने लॉ(रेंस) के भीतर नफ़रत का बूटा रोपा। वह ख़ुद को भगत सिंह से कम नहीं समझता और सरफ़रोशी की तमन्ना ज़ाहिर करता है। उसने क़ानून की पढ़ाई की है, लेकिन कॉलेज के दिनों से ही वह एक युवातुर्क के रूप में जाना गया। चंडीगढ़ में छात्र-राजनीति के दौरान लॉ(रेंस) पर सात आरोप लगे, जिनमें से चार में उसे दोषमुक्त कर दिया गया। शेष तीन मुक़दमे अभी तक चल रहे हैं और वह दस साल से जेल में है। कहने वाले कहते हैं कि उसने कॉलेज में जो किया, वह तो ट्रेलर था, असली खेल तो उसने जेल जाने के बाद शुरू किया है। गुनाह की लहलहाती फ़सल तो उसने सज़ा की मियाद के दौरान काटी। ये गैंगवारी की दुनिया की एक अनूठी कहानी है।

लेकिन कौन जानता है, इसमें कितना सच है, कितना झूठ है। लॉ(रेंस) के नाम से जितने गुनाह हो रहे हैं, उनमें से कितनों के लिए वह जिम्मेदार है, और कितनों के लिए नहीं? मिसाल के तौर पर, बहुत मुमकिन है बाबा सिद्दीक़ी का क़त्ल बम्बई के करोड़ों क़ीमत के ज़मीन-मसले में किया गया हो और लॉ(रेंस) के माथे उसकी जिम्मेदारी मढ़ दी गई हो, क्योंकि सलमान ख़ान से बाबा सिद्दीक़ी की क़ुरबत एक रोचक-कथानक गढ़ती है। सिद्धू मुसेवाला, सुखदूल सिंह, सुखदेव गोगामेड़ी के क़त्ल से भी लॉ(रेंस) का नाम जुड़ा है। सनसनी तब मची, जब कनाडा की सरकार ने लॉ(रेंस) का नाम लेते हुए कहा कि वह हिन्दुस्तान की हुकूमत के लिए काम करता है और कनाडा में खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर के क़त्ल के लिए जिम्मेदार है। लॉ(रेंस) के दायें हाथ गोल्डी ब्रार के तार कनाडा में कइयों से जुड़े हैं, तो यह नैरेटिव पूरी तरह से हवा-हवाई नहीं लगता। अचानक, लॉ(रेंस) का नाम अंतरराष्ट्रीय अपराधी के रूप में दुनिया में गूँजने लगा है। न्यूयॉर्क टाइम्स और अल जज़ीरा वाले उस पर स्टोरी कर रहे हैं, पाकिस्तान के यूट्यूबर उसके नाम का इस्तेमाल करके फ़ॉलोअर्स जुटा रहे हैं, भारत में तो ख़ैर तहलका है ही।

लेकिन आप लॉ(रेंस) को बोलते हुए सुनें- ख़ासतौर पर वो दो सनसनीख़ेज़ इंटरव्यू जो उसने जेल से दिए- तो आपको देहाती शैली में बात करने वाला एक बेलाग नौजवान दिखाई देगा, जिसकी आँखों में झॉंककर देखने पर यह नहीं लगता कि वह झूठ बोल रहा है- शातिर या ख़ूँख्वार वह चाहे जितना हो। इंटरव्यू लेने वाले मीडिया-एंकर को वह ‘सर-सर’ कहकर सम्बोधित करता है। ‘जी-कारे’ में बात करता है। पर ये कहने से संकोच नहीं करता कि “आप चाहे मुझको बीच में से काट दो, जो बात सच है वो मैं हज़ार बार बोलूँगा कि सलमान को मुक्तिधाम, मुकाम में आकर माफ़ी माँगनी होगी।” जेल से ऑपरेट करने वाला यह दुर्दान्त माना जाने वाला गैंग्स्टर- जिसके तार रॉ और होम मिनिस्ट्री तक से जोड़े जा रहे हैं- आज भारत में कइयों के कौतूहल का केंद्र बना हुआ है। उस पर फिल्में भी यक़ीनन बनेंगी। उसके जैसे दिलेर जीवन और मृत्यु की संधिरेखा पर जीते-मरते हैं। उसकी लोकप्रियता में मनुष्य के सामूहिक-अवचेतन के अनेक रहस्य निहित हैं!

Courtesy:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer only)

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